Earthquakes Alert: भूकंप पर भूकंप बार-बार हिल रही धरती! वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी, जानिए क्या ये तबाही की दस्तक है?

punjabkesari.in Saturday, Jul 19, 2025 - 12:14 PM (IST)

नेशनल डेस्क: साल 2025 में उत्तर भारत के कई हिस्सों में लगातार आ रहे भूकंप के झटकों ने आम लोगों की चिंता बढ़ा दी है। दिल्ली-एनसीआर, उत्तराखंड, झज्जर समेत कई इलाकों में धरती थरथरा उठी है। 10 जुलाई के बाद से अब तक कई बार भूकंप महसूस किए गए हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या ये झटके किसी बड़े भूकंप का संकेत हैं या फिर यह सामान्य भूगर्भीय गतिविधियाँ हैं। आइए जानते हैं वैज्ञानिकों की राय और भविष्य में इस खतरे से बचाव के उपाय।

कहाँ-कहाँ और कब-कब महसूस किए गए भूकंप?

पिछले कुछ दिनों में उत्तर भारत के विभिन्न इलाकों में लगातार भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं, जिसने लोगों के मन में डर और असमंजस पैदा कर दिया है। 19 जुलाई 2025 को उत्तराखंड के चमोली में सुबह करीब 3:00 बजे 3.3 तीव्रता का भूकंप दर्ज किया गया। इससे पहले 11 जुलाई को हरियाणा के झज्जर जिले में 3.7 तीव्रता का भूकंप आया, जिसकी गहराई 10 किलोमीटर थी। वहीं 10 जुलाई को दिल्ली-एनसीआर, गुरुग्राम और फरीदाबाद तक 4.4 तीव्रता के झटके महसूस किए गए, जिसका केंद्र भी झज्जर ही था। लगातार आ रहे इन झटकों ने न सिर्फ धरती को हिलाया, बल्कि लोगों के मन में भविष्य को लेकर आशंका भी पैदा कर दी है कि कहीं यह किसी बड़े भूकंप का संकेत तो नहीं।

क्यों आ रहे हैं लगातार भूकंप?

भूकंप आने के पीछे कई भूगर्भीय कारण होते हैं, जिनमें प्रमुख भूमिका सक्रिय फॉल्ट लाइनों की होती है। आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर डॉ. जावेद मलिक के अनुसार, भारत सहित दक्षिण-पूर्व एशिया के कई हिस्सों में ऐसी भूगर्भीय दरारें मौजूद हैं जो बार-बार भूकंप का कारण बनती हैं। इनमें सबसे प्रमुख है सागाइंग फॉल्ट, जो भारत, म्यांमार और आसपास के क्षेत्रों में भूकंप की मुख्य वजह मानी जाती है। इसके अलावा गंगा-बंगाल फॉल्ट भी एक अहम कारण है, जिसकी वजह से खासकर सिलीगुड़ी और पश्चिम बंगाल के हिस्सों में लगातार झटके महसूस किए जा रहे हैं। वहीं हिमालयन फॉल्ट ज़ोन पूरे उत्तर भारत के लिए बेहद संवेदनशील क्षेत्र है, जिसमें दिल्ली, उत्तराखंड और कश्मीर जैसे इलाके भूगर्भीय दबाव में हैं और किसी भी समय बड़ा भूकंप आने की आशंका बनी रहती है।

वैज्ञानिक क्या कहते हैं?

प्रो. जावेद मलिक के अनुसार, धरती के नीचे मौजूद टेक्टोनिक प्लेट्स लगातार हलचल करती रहती हैं, जिसके कारण इन प्लेट्स के बीच ऊर्जा जमा होती है। जब यह ऊर्जा एक सीमा के बाद बाहर निकलती है, तो धरती में कंपन होता है और भूकंप आता है। भारत का एक बड़ा हिस्सा भूकंप जोन-4 और जोन-5 में आता है, जो इसे उच्च जोखिम वाला क्षेत्र बनाता है। विशेष रूप से दिल्ली-एनसीआर के नीचे कई सक्रिय भूगर्भीय दरारें मौजूद हैं, जैसे कि दिल्ली-हरिद्वार रिज, महेंद्रगढ़-देहरादून फॉल्ट लाइन और सोहना-मथुरा फॉल्ट, जिनकी वजह से इस क्षेत्र में बार-बार भूकंप के झटके महसूस होते हैं। ये दरारें लगातार हलचल में रहती हैं, जिससे यह इलाका भूकंप के लिहाज़ से अत्यंत संवेदनशील बन जाता है।
सच्चाई यह है कि लगातार आ रहे भूकंप के झटके जरूर चिंताजनक हैं, लेकिन घबराने की नहीं बल्कि सतर्क रहने की जरूरत है। वैज्ञानिकों ने यह जरूर कहा है कि भारत के कुछ हिस्से, खासकर दिल्ली-एनसीआर, उत्तराखंड और उत्तर-पूर्व भारत, भूगर्भीय रूप से संवेदनशील हैं क्योंकि ये क्षेत्र भूकंप जोन-4 और जोन-5 में आते हैं। यहां सागाइंग फॉल्ट, हिमालयन फॉल्ट जोन, और स्थानीय फॉल्ट लाइन्स जैसी भूगर्भीय संरचनाएं सक्रिय हैं, जो छोटे-मोटे झटकों का कारण बनती हैं। हालांकि विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि हर बार छोटे झटके किसी बड़े भूकंप की पूर्व चेतावनी नहीं होते। फिर भी यह एक संकेत जरूर है कि हमें भवन निर्माण, आपदा प्रबंधन और जन-जागरूकता के स्तर पर गंभीरता से तैयारी करनी चाहिए। इसलिए, यह कहना कि "जल्द बड़ा खतरा आ सकता है", एक संभावना मात्र है, न कि तयशुदा भविष्यवाणी। वैज्ञानिक चेतावनियों को गंभीरता से लेते हुए, सुरक्षा उपाय अपनाना और जागरूक रहना ही सबसे सही प्रतिक्रिया होगी।

आगे कितना बड़ा खतरा?

फिलहाल जिन क्षेत्रों में भूकंप आ रहे हैं वे मध्यम तीव्रता वाले भूकंप जोन (जोन-4) में आते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि ये झटके बड़े भूकंप का संकेत भी हो सकते हैं लेकिन जरूरी नहीं कि हर बार ऐसा हो। हालांकि, खतरे को नजरअंदाज करना ठीक नहीं है। विशेष चिंता दिल्ली-एनसीआर की पुरानी और असुरक्षित इमारतों को लेकर है। अगर कोई तेज़ भूकंप आता है, तो इन इलाकों में भारी नुकसान हो सकता है।

क्या कर सकते हैं हम?

भविष्य में भूकंप से होने वाले संभावित खतरों से बचाव के लिए कुछ जरूरी एहतियात बरतना बेहद ज़रूरी है। सबसे पहले भवन निर्माण के समय भूकंपरोधी तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि इमारतें झटकों को सह सकें और जान-माल की हानि न हो। वहीं, पुरानी और जर्जर इमारतों की समय-समय पर जांच करानी चाहिए और जरूरत पड़ने पर उन्हें दुरुस्त करना चाहिए। इसके साथ ही आपदा प्रबंधन की ठोस योजनाएं तैयार की जानी चाहिए और उनमें शामिल लोगों को नियमित अभ्यास (ड्रिल) के जरिए प्रशिक्षित करना चाहिए, ताकि आपातकालीन स्थिति में वे सही फैसले ले सकें। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लोगों को जागरूक किया जाए ताकि वे घबराने के बजाय सावधानीपूर्वक और समझदारी से स्थिति का सामना कर सकें।

जानिए कैसे आता है भूकंप?

धरती के नीचे मौजूद टेक्टोनिक प्लेट्स धीरे-धीरे खिसकती रहती हैं। जब ये प्लेट्स आपस में टकराती हैं या फिसलती हैं, तो उनकी बीच जमा ऊर्जा बाहर निकलती है। यही ऊर्जा जब धरती की सतह तक पहुंचती है, तो हम भूकंप के झटके महसूस करते हैं। भूकंप का एपिसेंटर (केंद्र) वही स्थान होता है, जहाँ चट्टानों की हलचल सबसे ज्यादा होती है। सतह से जितनी कम गहराई पर भूकंप का केंद्र होगा, नुकसान उतना ही ज्यादा हो सकता है।


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Content Editor

Ashutosh Chaubey

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