Report: तुर्की बार-बार कर रहा भारत की संप्रभुता पर वार, एर्दोगान की साजिश का फिर पर्दाफाश
punjabkesari.in Saturday, May 17, 2025 - 05:40 PM (IST)

International Desk: जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता है, तब अधिकांश देश तटस्थ रहते हैं लेकिन तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगान हर बार खुलकर पाकिस्तान का पक्ष लेते हैं। यह रुख न केवल भारत की संप्रभुता पर सवाल उठाता है, बल्कि तुर्की की विदेश नीति में पनप रही पक्षपातपूर्ण और असंतुलित सोच को भी दर्शाता है। एक ओर एर्दोगान मुस्लिम एकता की बात करते हैं, दूसरी ओर चीन में उइगर मुसलमानों के उत्पीड़न पर चुप्पी साध लेते हैं। विदेश मामलों के जानकार अशरफ जैदी के अनुसार एर्दोगान द्वारा बार-बार भारत के आंतरिक मामलों में दखल देना यह दर्शाता है कि वे भारत को कमजोर और अस्थिर समझने की भूल कर रहे हैं।
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लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए कि भारत न तो सीरिया है, न लीबिया और न ही कोई युद्धग्रस्त राष्ट्र। भारत एक मजबूत लोकतंत्र, सैन्य ताकत और सांस्कृतिक विविधता से भरपूर राष्ट्र है, जो अपनी सीमाओं की रक्षा करना अच्छी तरह जानता है। रिपोर्ट के मुताबिक अशरफ जैदी ने कहा कि एर्दोगान की पाकिस्तान-परस्त नीति न सिर्फ तुर्की की छवि को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि भारत की स्थिर और जिम्मेदार शक्ति की छवि को और मज़बूत कर रही है। आज भारत एक उभरती वैश्विक शक्ति है, जो किसी भी झूठे प्रचार या दबाव से डरने वाला नहीं है। ऐसे में भारत से टकराव तुर्की के लिए दीर्घकालिक रूप से नुकसानदेह होगा। क्या एर्दोगान इस्लामी देशों के नेता बनने की कोशिश कर रहे हैं? या फिर यह पाकिस्तान के साथ धार्मिक गठजोड़ है? या तुर्की के भीतर की राजनीतिक विफलताओं से जनता का ध्यान हटाने की एक रणनीति?
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जैदी के अनुसार, भारत-विरोधी बयानबाज़ी उनका निजी राजनीतिक एजेंडा लगती है, न कि कोई निष्पक्ष कूटनीतिक सोच। तुर्की में पत्रकारों की गिरफ्तारी, कुर्दों पर कार्रवाई, और संविधान में बार-बार बदलाव यह सब दर्शाता है कि एर्दोगान की नीतियां लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ हैं। ऐसे में उन्हें भारत जैसे खुले और मजबूत लोकतंत्र पर टिप्पणी करने से पहले अपने देश की हालत पर ध्यान देना चाहिए।भारत हमेशा शांति की राह पर चलता है, लेकिन जब कोई उसकी संप्रभुता को चुनौती देता है, तो वह उसका करारा जवाब देना भी जानता है। भारत की न्यायपालिका, सैन्य शक्ति, और राजनीतिक स्थिरता इसे विश्व मंच पर एक मज़बूत राष्ट्र बनाते हैं।एर्दोगान को यह समझ लेना चाहिए कि भारत न तो किसी विदेशी दबाव में झुकता है और न ही किसी इस्लामी प्रोपेगेंडा से डरता है। भारत की चुप्पी को उसकी कमजोरी नहीं, बल्कि उसकी परिपक्वता समझें। तुर्की को चाहिए कि वह भारत से दुश्मनी नहीं, परिपक्वता और सम्मान के साथ रिश्ते बनाने की दिशा में कदम बढ़ाए।
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