भारत-अमेरिका रिश्तों में दरार? पाकिस्तान से नजदीकी और कश्मीर पर ट्रंप की टिप्पणी से भारत में बढ़ी नाराजगी
punjabkesari.in Wednesday, Jul 30, 2025 - 10:20 PM (IST)

नई दिल्लीः 2019 में अमेरिका के ह्यूस्टन शहर में “Howdy Modi” कार्यक्रम के दौरान जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक साथ मंच पर आए थे, तो दोनों देशों के रिश्तों में नई ऊर्जा दिखी थी। हजारों की संख्या में मौजूद भारतीय-अमेरिकी समुदाय ने दोनों नेताओं का जोरदार स्वागत किया। भारत में भी ट्रंप की लोकप्रियता चरम पर थी—यहां तक कि वह उस समय जो बाइडेन और कमला हैरिस (जो भारतीय मूल की हैं) से कहीं अधिक लोकप्रिय माने जा रहे थे।
2024 में ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि भारत-अमेरिका संबंधों में और मजबूती आएगी। लेकिन अब स्थिति बिलकुल उलट होती नजर आ रही है। भारत की सरकार और रणनीतिक विश्लेषक अब अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी पर सवाल उठाने लगे हैं।
पाकिस्तान से अमेरिका की बढ़ती निकटता पर भारत में नाराजगी
25 जुलाई 2025 को अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार से वॉशिंगटन में मुलाकात की। इस बैठक में व्यापार और “क्रिटिकल मिनरल्स” (महत्वपूर्ण खनिजों) पर चर्चा हुई। यह बैठक भारत के लिए महज एक राजनयिक वार्ता नहीं थी—it was a message.
भारत में इसे लेकर गंभीर चिंता जताई गई है। भारत के दृष्टिकोण से यह सवाल अहम है: क्या अमेरिका उस देश के साथ साझेदारी मजबूत कर रहा है, जो भारत की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है? पाकिस्तान पर लंबे समय से आतंकवाद को समर्थन देने के आरोप लगते रहे हैं, खासकर कश्मीर और सीमावर्ती इलाकों में। ऐसे में अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को प्राथमिकता देना भारत को भ्रमित कर रहा है।
कश्मीर पर ट्रंप की टिप्पणी से खुला पुराना घाव
इस सबके बीच, राष्ट्रपति ट्रंप की तरफ से एक बार फिर भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मुद्दे पर 'मध्यस्थता' की बात सामने आई है। भारत इस मसले पर एकदम स्पष्ट है—कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है और किसी तीसरे पक्ष का इसमें हस्तक्षेप स्वीकार नहीं है।
ट्रंप की इस टिप्पणी को भारत ने राजनयिक गलती नहीं, बल्कि संप्रभुता पर चोट माना है। यह संदेश देता है कि भारत के ‘कोर इंटरेस्ट’ (मुख्य हित) अमेरिका के लिए उतने महत्वपूर्ण नहीं हैं, जितना दिखाया जाता है।
एकतरफा नहीं चल सकती साझेदारी: भारत का स्पष्ट संदेश
पिछले कुछ वर्षों में भारत ने अपने विदेश नीति दृष्टिकोण में बड़ा बदलाव किया है। पहले जहां भारत ‘गुटनिरपेक्ष’ (Non-Aligned) नीति पर चलता था, अब वह प्रायोगिक और संतुलित विदेश नीति पर काम कर रहा है।
भारत ने क्वाड (Quad) जैसे मंचों में भागीदारी की है, मालाबार जैसे सैन्य अभ्यासों को मजबूत किया है, और हिंद-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific) में जिम्मेदारी साझा करने की इच्छा भी दिखाई है।
भारत अमेरिका से सिर्फ सहयोग की उम्मीद नहीं करता, बल्कि एक समान दर्जा और सम्मान चाहता है। लेकिन जब अमेरिका पाकिस्तान जैसे अस्थिर और चीन के करीब माने जाने वाले देश को प्राथमिकता देता है, तो भारत को भरोसा करना मुश्किल होता है।
चीन को मिल रहा है रणनीतिक फायदा
चीन दक्षिण चीन सागर (South China Sea) में आक्रामकता बढ़ा रहा है, ताइवान पर दबाव डाल रहा है और एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में अमेरिका का ध्यान भटकना, भारत जैसे स्थिर और विश्वसनीय सहयोगी को अनदेखा करना, सीधा चीन को फायदा पहुंचाने जैसा है।
भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश अकेले इस क्षेत्रीय संतुलन को नहीं संभाल सकते। यदि अमेरिका इसी तरह मिश्रित और विरोधाभासी संदेश देता रहा, तो हिंद-प्रशांत रणनीति कमजोर पड़ सकती है।
क्या अमेरिका पाकिस्तान को तवज्जो देकर भारत को खो देगा?
भारत और पाकिस्तान के बीच मई में सीमा पर झड़पें हुई थीं। उस वक्त अमेरिका के उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने टिप्पणी की, “यह हमारा मामला नहीं है।” इस तरह के बयान भारत को यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या अमेरिका दक्षिण एशिया को लेकर गंभीर है भी या नहीं?
अगर अमेरिका इस क्षेत्र में कोई भूमिका निभाना चाहता है, तो उसे भारत को केवल एक लाभदायक साझेदार नहीं, बल्कि एक बराबरी का रणनीतिक भागीदार मानना होगा।