उच्चतम न्यायालय ने उप्र में बिना ओबीसी आरक्षण निकाय चुनाव के आदेश पर लगाई रोक

punjabkesari.in Thursday, Jan 05, 2023 - 02:23 AM (IST)

नेशनल डेस्क : उत्तर प्रदेश सरकार को बड़ी राहत देते हुए उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें राज्य सरकार को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण के बिना शहरी स्थानीय निकाय चुनाव कराने का निर्देश दिया गया था। प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा की पीठ ने राज्य सरकार द्वारा नियुक्त एक समिति को यह आदेश भी दिया कि 31 मार्च, 2023 तक तीन महीने के अंदर स्थानीय निकायों के चुनाव के लिए ओबीसी आरक्षण से संबंधित मुद्दों पर फैसला करना होगा।

पीठ ने पहले तय छह महीने के बजाय तीन महीने के अंदर यह कवायद पूरी करने को कहा। पीठ ने राज्य सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलों पर संज्ञान लिया कि निर्वाचित प्रतिनिधियों के कार्यकाल की समाप्ति के बाद प्रशासकों के अधीन स्थानीय निकायों के कामकाज के संबंध में उच्च न्यायालय द्वारा जारी एक निर्देश के परिचालन की अनुमति दी जा सकती है। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि उच्च न्यायालय ने उक्त आदेश में ओबीसी आरक्षण के बिना चुनाव कराने का निर्देश दिया है।

उन्होंने कहा कि इस न्यायालय के अगले आदेश आने तक उक्त निर्देश के परिचालन पर रोक रहेगी। पीठ ने कहा, ‘‘स्थानीय निकायों के प्रशासनिक कामकाज में कोई अवरोध नहीं आये, यह सुनिश्चित करने के लिए सरकार निर्देश 'डी' (उच्च न्यायालय के आदेश में निर्धारित) के अनुरूप वित्तीय शक्तियों का निर्वहन करने के लिहाज से अधिसूचना जारी करने के लिए स्वतंत्र होगी। जो इस केवियेट पर निर्भर होगा कि प्रशासकों द्वारा कोई बड़ा नीतिगत निर्णय नहीं लिया जाएगा।''

पीठ ने शुरू में सॉलिसिटर जनरल की इन दलीलों पर विचार किया कि राज्य सरकार ने स्थानीय निकायों में विभिन्न पिछड़ी जातियों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को ध्यान में रखते हुए आरक्षण के मुद्दे पर फैसला करने के शीर्ष अदालत के फैसलों के अनुरूप उत्तर प्रदेश राज्य स्थानीय निकाय विशिष्ट पिछड़ा वर्ग आयोग बनाया है। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश में कुछ स्थानीय निकायों का कार्यकाल समाप्त हो गया है या 31 जनवरी, 2023 को या उसके आसपास समाप्त होने वाला है, इसलिए याचिकाकर्ता (राज्य) की ओर से दलील दी गयी है कि उच्च न्यायालय के उक्त फैसले में निर्देश ‘डी' में जिस व्यवस्था पर विचार हुआ है, उसे नये सिरे से चुनाव होने तक इस अदालत के आदेश के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।''

पीठ ने राज्य सरकार की इस दलील पर भी संज्ञान लिया कि नव निर्वाचित आयोग का कार्यकाल छह महीने है, लेकिन प्रक्रिया को 31 मार्च तक या उससे पहले यथासंभव शीघ्र पूरा कराने के प्रयास करने होंगे। शीर्ष अदालत ने उन लोगों को भी नोटिस जारी किये जिन्होंने राज्य सरकार की अधिसूचना के खिलाफ उच्च न्यायालय का रुख किया था। शीर्ष अदालत ने सुनवाई तीन सप्ताह बाद करने के लिए सूचीबद्ध की।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने पांच दिसंबर की मसौदा अधिसूचना को रद्द करते हुए आदेश दिया था कि राज्य सरकार चुनावों को “तत्काल” अधिसूचित करे क्योंकि कई नगरपालिकाओं का कार्यकाल 31 जनवरी तक समाप्त हो जाएगा। अदालत ने राज्य निर्वाचन आयोग को मसौदा अधिसूचना में ओबीसी की सीटें सामान्य वर्ग को स्थानांतरित करने के बाद 31 जनवरी तक चुनाव कराने का निर्देश दिया था।


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News Editor

Parveen Kumar

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