अफगानिस्तान में तालिबान ने हिंदू-सिखों पर लगाए कठोर प्रतिबंध, जारी किया नया फरमान

punjabkesari.in Sunday, Aug 27, 2023 - 01:26 PM (IST)

इंटरनेशनल डेस्कः अफगानिस्तान पर  2021 में कब्जा करने के बाद तालिबान के अपनी जनता पर जुल्म लगातार बढ़ते जा रहे हैं।  यही वजह है कि  अफगानिस्तान से गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक लगातार पलायन कर रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक दो साल बाद  ये आशंकाएं सही साबित होती जा रही हैं । RFE/RL की रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद सिख और हिंदू समुदाय के चंद परिवार ही रह गए हैं। दरअसल, तालिबान के शासन में सिखों और हिंदुओं को गंभीर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है। सार्वजनिक रूप से उनके धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन और त्याेहारों को मनाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, जिससे कई लोगों के पास वहां से भागने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है।

 

देश का अंतिम यहूदी भी तालिबान के कब्जे के तुरंत बाद देश से भाग गया था। राजधानी काबुल में बचे आखिरी सिखों में से एक फ़री कौर ने कहा कि जब वह बाहर जाती है तो उसे मुस्लिमों की तरह कपड़े पहनने के लिए मजबूर किया जाता है ताकि  उसे सिख के रूप में पहचाना न जा सके।  कौर के पिता 2018 में पूर्वी शहर जलालाबाद में सिखों और हिंदुओं को निशाना बनाकर किए गए आत्मघाती हमले में मारे गए थे। कथित तौर पर हमले के कारण कौर की मां और बहनों सहित 1,500 सिखों को देश छोड़ना पड़ा। RFE/RL की रिपोर्ट  के मुताबिक कौर ने वहां से जाने से इनकार कर दिया और वो काबुल में रुक गई।

 

मार्च 2020 में, जब इस्लामिक स्टेट-खुरासान (ISIS-K) के आतंकवादियों ने काबुल में एक सिख मंदिर पर हमला किया, तो 25 लोगों की मौत हो गई। हमले के बाद, अल्पसंख्यक समुदाय के शेष अधिकांश सदस्यों ने अफगानिस्तान छोड़ दिया  फिर भी कौर ने जाने से इनकार कर दिया। लेकिन अब, तालिबान के सत्ता पर कब्ज़ा करने के दो साल  बाद उन्होंने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता की कमी के कारण उनके पास विदेश में शरण लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। उन्होंने कहा कि तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद से हमने अपने प्रमुख त्योहार नहीं मनाए हैं। अफगानिस्तान में हमारे समुदाय के बहुत कम सदस्य बचे हैं।हम अपने मंदिरों की देखभाल भी नहीं कर सकते।

 

1980 के दशक में अफगानिस्तान में 100,000 हिंदू और सिख थे लेकिन 1979 में छिड़े युद्ध और बढ़ते उत्पीड़न की शुरुआत ने कई लोगों को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया। 1990 के दशक के गृह युद्ध के दौरान  तालिबान और प्रतिद्वंद्वी इस्लामी समूहों ने अल्पसंख्यकों की रक्षा करने का वचन दिया था  लेकिन कई सिखों और हिंदुओं ने अपने घर और व्यवसाय खो दिए और भारत भाग गए। वाशिंगटन में गैर-लाभकारी मुस्लिम पब्लिक अफेयर्स काउंसिल में नीति और रणनीति के निदेशक नियाला मोहम्मद ने कहा कि अफगानिस्तान में हिंदू, सिख, बहाई, ईसाई, अहमदी और शिया मुसलमानों सहित धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति तालिबान के शासन में तेजी से खराब हो गई है। अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग के पहले दक्षिण एशिया विश्लेषक रहे मोहम्मद ने कहा कि इस्लाम का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाले तालिबान जैसे राजनीतिक चरमपंथी गुटों के क्षेत्र में सत्ता में आने से स्थिति लगातार बिगड़ रही है।  विभिन्न धार्मिक समूहों के इस पलायन ने देश के सामाजिक ताने-बाने में एक बड़ा शून्य छोड़ दिया है। 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Tanuja

Related News