चीन के सर्वशक्तिमान बनते जा रहे हैं शी जिनपिंग

punjabkesari.in Saturday, Apr 30, 2016 - 12:53 PM (IST)

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग स्वयं को सर्वेसर्वा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हाल में उन्होंने अपने आप को चीन की तीनों सेनाओं का कमांडर इन चीफ घोषित कर दिया है। इसके लिए संसद अथवा कैबिनेट की मंजूरी लेने की जरुरत नहीं समझी। शी ने सेना का प्रमुख बनते ही कार्य भी शुरू कर दिया है। उन्होंने सैन्य अधिकारियों को उनका निर्देश है कि वे ज्वाइंट मिलीटरी कमांड बनाएं, जो दक्षिणी चीन सागर में किसी अन्य देश को प्रभावी नहीं होने देगा और उन्हें कड़ा जवाब देगा। इस कमांड के अधिकारियों को उन्होंने कह दिया है कि वे विश्व की फौजी क्रांतियों के तौर-तरीकों का अध्ययन करें। संयुक्त युद्ध नियंत्रण प्रणाली विकसित करें और लड़ाई जीतने की रणनीति बनाएं। 

अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए शी जिनपिंग हाल में संसद में वे सभी प्रस्ताव पारित कर दिए जिनके पक्ष में वह थे। चीन को साफ-सुथरा प्रशासन देने के लिए उन्हांने भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान शुरू कर दिया है। जितने अधिकारियों की भ्रष्टाचार में लिप्त होने की खबर उनके पास पहुंची उन सभी को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इससे सभी विभागों में अधिकारी सतर्क हो गए हैं। ताकतवर नेता शी ने प्रचार माध्यमों को भी नियंत्रित कर दिया है। घबरा कर इन माध्यमों ने उनकी महिमा का बखान शुरू कर दिया। फिर भी वह संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने कई पत्रकारों को जेल में ठूंस दिया। ये वे पत्रकार थे जो दूसरे देशों की अखबारों में सरकार के विरुद्ध खबरें भेजा करते थे। 

सरकार की आलोचक कई बेवसाइट को ब्लॉक कर दिया गया। इससे जाहिर होता है​ शी जिनपिंग को आलोचना बिल्कुल पसंद नहीं है। वे नहीं चाहते कि दुनिया सरकार की कमियों को जानें। चीन के मीडिया पर सेंसरशिप लगा दिया गया है। इस बीच मार्च 2016 में एक बार वहां के मीडिया ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग को ''द लास्ट लीडर'' कह दिया यानि अंतिम नेता। पूरी दुनिया में यह जानने की उत्सुकता बढ़ गई कि मीडिया ने ऐसा क्यों किया। फिर पता चला कि यह टाइपिंग की गलती थी। इसे करने वाली थी चीन की आधिकारिक न्यूज एजेंसी शिन्हुआ। हालांकि इसे सुधारा गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

इन दिनों चीन में जो कुछ हो रहा है ऐसी ही परिस्थितियां 1989 में भी उत्पन्न हो गई थीं। उस समय माओत्से तुंग ने दमनकारी नीतियों को अपनाया था। उनहोंने आंदोलन करके देश को आजादी दिलाई थी। चीन में साम्यवाद लाने का श्रेय माओ को दिया जाता है,लेकिन सत्ता संभालते ही माओ ने कई जनविरोधी कार्य किए थे। देश में लोकतंत्र की आवाज को दबा दिया गया। बीजिंग में प्रदर्शन करने वालों पर टैंक चलवा दिए गए। इसकी चर्चा दुनिया भर के अखबारों में हुई थी। माओ की दमनकारी नीतियों के सबसे बड़े विरोधी देंग थे। जिसे उसने नजरबंद कर दिया था। चीन में क्रांति हुई और सत्ता देंग के पास आ गई। उन्होंने चीन को उदारवाद की ओर मोड़ दिया। देंग की आर्थिक नीतियों से चीन संपन्न राष्ट्र बन गया। चीन के अब जो हालात हैं उनके बारे कहा जा रहा है कि शी जिनपिंग माओत्से तुंग की राह पर चलने लगे हैं। वे तीनों सेनाओं के अलावा कम्युनिस्ट पार्टी के भी महासचिव बन गए हैं और केंद्रीय सैन्य आयोग के वे अध्यक्ष हैं ही। हालात इतने खराब हैं कि देश में आर्थिक सुधार दम तोड़ रहे है। मंदी का दौर शुरू हो गया है। क्या शी दक्षिणी चीन सागर का मुद्दा गरमाकर लोगों का ध्यान बंटाने की कोशिश तो नही कर रहे।

यह सही है कि शी जिनपांग चीन की सेना को शक्तिशाली बनाना चाहते हैं जबकि उनके देश को किसी ने खुली चुनौती नहीं दी है। चीन की विदेश नीति काफी आक्रामक हो गई है खासतौर विवादित दक्षिणी चीन सागर पर। वह उस पर अपनी दावेदारी पेश कर रहा है। चीन की दक्षिणी चीन सागर में बढ़ती गतिविधियों पर कई देशों ने आपत्ति जताना शुरू कर दिया है। इनमें अमरीका भी शामिल है,उसकी भारत के साथ बढ़ रही निकटता से चीन खुश नहीं है। अमरीका को लगातार चुनौ​ती दे रहे उत्तर कोरिया से उसके अच्छे संबंध है। परमाणु शक्ति के बाद चीन ने लंबी दूरी की अपनी कई बैलिस्टिक मिसाइलें बना ली हैं। वह दक्षिण चीन सागर में विवादित द्वीपों पर सैन्य वायुक्षेत्र बना रहा है। वह इसे चीन का ''वायु रक्षा पहचान क्षेत्र'' बनाना चाहता है। यहां विवादित आइलैंड पर चीन एक पावरफुल रडार सिस्टम लगा रहा है। उसकी दलील है कि जिस तरह अमेरिका, हवाई में डिफेंस सिस्टम लगा रखा है, वह भी उसी तरह दक्षिणी चीन सागर में यह काम कर रहा है। 

यदि यह सिस्टम लगाने में चीन कामयाब हो गया तो वह आसपास की गतिविधियों पर पूरी नजर रख सकेगा। जब अमेरिका ने इसका विरोध किया तो उसकी परवाह न करते हुए चीन ने इस विवादित आइलैंड पर लड़ाकू विमान भी तैनात कर दिए हैं। यह सब शी जिनपिंग की देखरेख में हो रहा हे। वे इतने ताकतवर होते जा रहे हैं कि उनकी नीतियों को देखकर अमरीका के साथ टकराव की आशंका बढ़ती जा रही है। हालांकि अमरीका को खुली चुनौती देने में उत्तर कोरिया आगे है,लेकिन उसका समर्थक चीन भी कम नहीं है। 


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