शोधकर्ताओं का दावा: आर्सेनिक से दूषित पानी पीना करें बंद, 50 % तक टल जाएगा मौत का खतरा

punjabkesari.in Thursday, Nov 20, 2025 - 04:16 PM (IST)

नेशनल डेस्क: दुनिया के कई देशों में भूजल में आर्सेनिक एक बड़ी समस्या है। आर्सेनिक एक प्राकृतिक धात्विक तत्व है और बिना रंग-गंध के होने के कारण इससे युक्त पानी को लोग पीते रहते हैं। लंबे समय तक आर्सेनिक के संपर्क में रहने से फेफड़े, मूत्राशय और गुर्दे के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा त्वचा में हाइपरकेराटोसिस और पिगमेंटेशन में बदलाव हो सकता है। हालांकि हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन ने साबित किया है कि अगर लोग आर्सेनिक से दूषित पानी पीना बंद कर दें, तो उनकी मौत का खतरा 50 % तक कम हो सकता है, चाहे वे कई सालों तक आर्सेनिक के संपर्क में रहे हों। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के 25 राज्यों के लगभग 230 जिले भूजल में बढ़ती आर्सेनिक समस्या से पीड़ित हैं। दुनिया भर में देखें तो लगभग 50 करोड़ लोग भूजल में आर्सेनिक की समस्या से जूझ रहे हैं।

11,000 वयस्कों पर 20 साल तक की रिसर्च
कोलंबिया यूनिवर्सिटी, कोलंबिया मेलमैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ और न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने बांग्लादेश में लगभग 11,000 वयस्कों पर 20 साल तक शोध किया। यह अध्ययन जर्नल ऑफ द अमरीकन मेडिकल एसोसिएशन में प्रकाशित हुआ है। इसे अब तक का सबसे मजबूत और लंबी अवधि वाला अध्ययन माना जा रहा है, जिसने आर्सेनिक-मुक्त पानी के स्वास्थ्य लाभों को सीधे व्यक्ति-दर-व्यक्ति स्तर पर मापा। डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अमरीका सहित दुनिया के कई देशों में आज भी करोड़ों लोग ऐसे भूजल पर निर्भर हैं जिसमें आर्सेनिक की मात्रा सीमा से ऊपर हो सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) ने 10 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से अधिक आर्सेनिक को असुरक्षित माना है। बांग्लादेश में यह समस्या सामूहिक स्तर पर इतनी बड़ी है कि डब्ल्यू.एच.ओ. इसे “मानव इतिहास का सबसे बड़ा सामूहिक जहर-प्रभाव” कहता है।
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बांग्लादेश के अराईजार क्षेत्र में किया गया अध्ययन
यह अध्ययन बांग्लादेश के अराईजार क्षेत्र में किया गया है, जहां हजारों परिवार पीने के लिए ट्यूबवेल पर निर्भर हैं। इन ट्यूबवेलों में आर्सेनिक का स्तर एक कुएं से दूसरे कुएं तक बहुत अलग-अलग पाया जाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि 10,000 से अधिक कुओं की जांच की गई और प्रतिभागियों के मूत्र में आर्सेनिक स्तर को बार-बार मापा गया। हर व्यक्ति के 20 वर्षों तक स्वास्थ्य के आंकड़े जुटाए गए। इसके बाद मौत के कारणों को दर्ज किया गया। यह तरीका बेहद विश्वसनीय माना जाता है, क्योंकि मूत्र परीक्षण शरीर में पहुंच चुके वास्तविक आर्सेनिक स्तर को दिखाता है। अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि जिन लोगों ने भारी आर्सेनिक वाले पानी से कम-आर्सेनिक पानी की ओर रुख किया, उनकी मौत का खतरा 50 फीसदी तक कम हुआ। जिन लोगों के मूत्र में आर्सेनिक की मात्रा ऊंचे स्तर से घटकर कम स्तर पर आ गई और उनकी मृत्यु दर उन लोगों जैसी हो गई जो कभी अधिक आर्सेनिक के संपर्क में नहीं रहे थे।

ऐप के जरिए सुरक्षित कुओं की जानकारी
शोध में कहा गया है कि जब लोगों को आर्सेनिक-मुक्त पानी मिलता है, तो वे न केवल भविष्य की बीमारियों से बचते हैं, बल्कि पिछले वर्षों के नुकसान से भी उबरने लगते हैं। यह अध्ययन अब तक का सबसे ठोस सबूत है कि आर्सेनिक कम करने से सीधे-सीधे मौत का खतरा घटता है। शोधकर्ताओं ने बांग्लादेश सरकार के साथ मिलकर नलकूप नाम का एक ऐप भी तैयार किया है, जिसमें लाखों कुओं के आर्सेनिक के आंकड़े उपलब्ध हैं। एप पर लोग अपने आस-पास के सुरक्षित कुओं की जानकारी पा सकते हैं। सरकारी अधिकारी यह तय कर सकते हैं कि किन क्षेत्रों में नए गहरे कुओं की सबसे ज्यादा जरूरत है।

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क्या कहते हैं अध्ध्यन के नतीजे
अध्ध्यन के निष्कर्ष कहते हैं कि कई सालों तक आर्सेनिक के संपर्क में रहने वाले लोगों की भी मौत का खतरा कम हो सकता है। साफ पानी की व्यवस्था में निवेश पूरे समुदाय की जान बचा सकता है। परिणाम एक पीढ़ी के भीतर दिखाई देने लगते हैं। बांग्लादेश जैसे देशों में, जहां करोड़ों लोग आज भी असुरक्षित कुओं पर निर्भर हैं, यह शोध नीति-निर्माण के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यह साबित करता है कि सही जानकारी, सही तकनीक और सुरक्षित पानी तक पहुंच, इन तीनों से लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती है।


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News Editor

Radhika

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