GPS फेल, इंटरनेट डाउन, उड़ानें ठप्प! धरती की ओर बढ़ रहा सौर तूफान, क्या होगा जब टूटेगा विनाश का रेडिएशन?

punjabkesari.in Friday, Jul 11, 2025 - 03:16 PM (IST)

नई दिल्ली: धरती का जीवनदाता सूर्य इन दिनों अपने सबसे उग्र रूप में नजर आ रहा है। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के मुताबिक, सूर्य अब सोलर मैक्सिमम की स्थिति में पहुंच चुका है — यानी वह दौर जब इसकी सतह पर शक्तिशाली विस्फोट, सौर तूफान और घातक रेडिएशन की गतिविधियां सबसे अधिक होती हैं। 

इस स्थिति में सूर्य की सतह पर होने वाले विस्फोट- जैसे सोलर फ्लेयर्स, कोरोनल मास इजेक्शन्स (CMEs) और जियोमैग्नेटिक स्टॉर्म्स- पृथ्वी की तकनीकी संरचनाओं के लिए गंभीर खतरा बन सकते हैं।

नासा और NOAA जैसी प्रमुख स्पेस एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि अगर सूर्य से उठे कोरोनल मास इजेक्शन्स (CMEs) या सोलर फ्लेयर्स सीधे पृथ्वी की ओर आए, तो यह हमारे सैटेलाइट सिस्टम, पावर ग्रिड, इंटरनेट और फ्लाइट्स तक को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। अब सवाल उठता है- अगर यह खतरनाक सौर गतिविधि अपने चरम पर पहुंची, तो इसका धरती पर क्या असर पड़ेगा?  आईए जानते है...

 क्या है सोलर मैक्सिमम?
सूर्य हर 11 साल में एक बार अपनी अधिकतम सक्रियता के चरण में पहुंचता है, जिसे ‘सोलर मैक्सिमम’ कहा जाता है। इस फेज में सूर्य की सतह पर सनस्पॉट्स (काले धब्बे) की संख्या बहुत बढ़ जाती है। ये सनस्पॉट्स अत्यधिक चुंबकीय गतिविधि वाले क्षेत्र होते हैं, जो शक्तिशाली सौर विस्फोटों को जन्म देते हैं। जब ये विस्फोट होते हैं, तो सूर्य से रेडिएशन और प्लाज्मा की बौछार अंतरिक्ष की ओर फैलती है- और कभी-कभी सीधा पृथ्वी की ओर भी।

कब से शुरू हुआ यह चरण?
अक्टूबर 2024 में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA और NOAA के वैज्ञानिकों ने घोषणा की थी कि सूर्य ने सोलर मैक्सिमम में प्रवेश कर लिया है। यह चरण लगभग एक साल तक चलेगा, यानी यह पूरी तरह से 2025 तक सक्रिय रहेगा। इस दौरान सूर्य से निकलने वाली ऊर्जा और कण पृथ्वी और उसके आसपास के अंतरिक्ष ढांचे को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं।

 क्या-क्या हो सकता है प्रभावित?
वैज्ञानिकों के मुताबिक सोलर मैक्सिमम का प्रभाव सिर्फ अंतरिक्ष तक सीमित नहीं है — यह धरती पर भी व्यापक प्रभाव डाल सकता है:

सैटेलाइट सिस्टम: सोलर फ्लेयर्स से निकलने वाला रेडिएशन सैटेलाइट्स के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम को नुकसान पहुंचा सकता है। GPS, इंटरनेट, संचार सेवाएं ठप हो सकती हैं।
स्पेस मिशन: स्पेस स्टेशन और लॉन्च किए जा रहे मिशनों को रद्द या स्थगित करना पड़ सकता है।
पॉवर ग्रिड: भू-चुंबकीय तूफान से पॉवर ग्रिड फेल हो सकते हैं, जिससे ब्लैकआउट हो सकता है।
एविएशन इंडस्ट्री: ऊंचाई पर उड़ने वाली फ्लाइट्स को सौर विकिरण से खतरा हो सकता है, जिससे नेविगेशन और रेडियो कम्युनिकेशन ठप हो सकते हैं।
कम्युनिकेशन सिस्टम: HF रेडियो, मोबाइल नेटवर्क, रेडार और इंटरनेट कनेक्टिविटी पर असर पड़ सकता है।
जलवायु पर असर: कुछ रिपोर्ट्स बताती हैं कि सोलर मैक्सिमम पृथ्वी के तापमान और मौसम पैटर्न को भी अस्थायी रूप से प्रभावित कर सकता है।

 कौन रख रहा है नजर?
NASA का पार्कर सोलर प्रोब - यह अंतरिक्ष यान सूर्य के बेहद करीब जाकर उसके वातावरण की स्टडी कर रहा है।
NOAA का SWFO-L1 सैटेलाइट - यह सोलर मैक्सिमम के हर चरण पर नजर रख रहा है और पृथ्वी के लिए संभावित खतरों की मॉनिटरिंग कर रहा है।
ये एजेंसियां सौर गतिविधियों की रियल-टाइम निगरानी कर रही हैं ताकि यदि कोई बड़ा विस्फोट या तूफान हो, तो पहले ही चेतावनी दी जा सके।

 क्या खतरे से बचा जा सकता है?
वैज्ञानिकों का कहना है कि घबराने की जरूरत नहीं है, लेकिन सतर्कता बेहद जरूरी है। यह कोई नया या असामान्य फेनोमेना नहीं है — सोलर मैक्सिमम हर 11 साल में होता है, और इससे निपटने के लिए अंतरिक्ष एजेंसियों ने एडवांस मॉनिटरिंग और शील्डिंग टेक्नोलॉजी तैयार की हुई है। हालांकि, प्रीपेयर्डनेस की कमी या सिस्टम की विफलता की स्थिति में इसका प्रभाव व्यापक और आर्थिक रूप से भारी पड़ सकता है।


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Content Writer

Anu Malhotra

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