कैसे घुल गया दिल्ली की हवा में जहर?

punjabkesari.in Sunday, Jul 23, 2017 - 02:18 PM (IST)

नई दिल्ली: यह बात तय है कि दिल्ली की हवा बेहद सूक्ष्म कणों से भरी पड़ी है लेकिन क्या इस वजह से यह अपने आप 'जहरीली' हो जाती है? एक अध्ययन में पाया गया है कि दिल्ली की हवा में पाए जाने वाले अत्यधिक सूक्ष्म कण, खासतौर पर पीएम 2.5 और पीएम 10 तुलनात्मक रूप से कम नुकसानदायक रासायनिक घटकों से बने हैं। पिछले दिसंबर में यह अध्ययन करने वाले सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (एसएएफएआर) के परियोजना निदेशक वैज्ञानिक गुफरान बेग ने कहा कि हवा की विषाक्तता इस बात से तय होती है कि वे कण रासायनिक तौर पर किस चीज से बने हैं।  

'दिल्ली की हवा में विषाक्तता बढ़ी'
एसएएफएआर विश्लेषण के अनुसार, हवा में मौजूद विस्थापित कणों का 7.6 प्रतिशत हिस्सा काले कार्बन से बना है। इसके अलावा सल्फेट कण सात प्रतिशत हैं। इनकी अधिक मात्रा के कारण ही दिल्ली की हवा में विषाक्तता बढ़ी होगी। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत आने वाली एजेंसी ने पाया है कि इन विस्थापित कणों का सबसे बड़ा हिस्सा लगभग 38 प्रतिशत है और यह हिस्सा एलुमीनियम एवं सिलिकॉन ऑक्साइड्स से बना है, जो की पृथ्वी की परत में मौजूद हैं और काले कार्बन या सल्फेट की तरह हानिकारक नहीं हैं। बेग ने कहा कि जब काला कार्बन या सल्फेट कण की मौजूदगी 15-20 प्रतिशत से ज्यादा हो जाती है तो ये प्रमुख कारकों के तौर पर काम करने लगते हैं। मुंबई में, दिल्ली की तुलना में प्रदूषकों की कुल मात्रा कम है लेकिन काले कार्बन का प्रतिशत वहां ज्यादा है। बेग ने स्थिति को कम करके आंकने के खिलाफ चेतावनी दी है। 

'श्वसन तंत्र के लिए नुकसानदायक'
उन्होंने कहा, जहरीले तत्वों की मौजूदगी कम हो सकती है लेकिन हमें दिल्ली की हवा में विस्थापित कणों की अत्यधिक मात्रा को ध्यान में रखना चाहिए। एेसे में तय अवधि में बढऩे वाले विस्थापित कणों की मात्रा कम हानिकारक रासायनिक घटकों की मौजूदगी से हो सकने वाले लाभों को कम कर सकती है। उन्होंने कहा कि काले कार्बन का स्तर भी चरणबद्ध तरीके से बढ़ता है, खासतौर पर बायोमास जलाने के मौसम में या स्थानीय तौर पर खुले में कचरा जलाने पर। अपूर्ण या कम तापमान पर किए जाने वाले दहन के मुख्य उत्पाद काला कार्बन या सल्फेट हैं। एसएएफएआर के अनुसार, दिल्ली की हवा में मौजूद विस्थापित कणों की मात्रा इस प्रकार है- सल्फेट-7 प्रतिशत, कार्बनिक कार्बन-28.9 प्रतिशत, नाइट्रेट-12 प्रतिशत, लवण-एक प्रतिशत, अमोनिया-4.6 प्रतिशत और एलुमीनियम-38.4 प्रतिशत। यदि तय सीमा से ज्यादा समय के लिए पीएम 2.5 और पीएम10 के संपर्क में रहा जाता है तो ये श्वसन तंत्र को नुकसान पहुंचा सकती है। ये कण दरअसल फेफड़ों में गहराई तक पहुंच जाते हैं और रक्तप्रवाह में प्रवेश कर जाते हैं।


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