दुनिया भर में एक फोन से चीजें बदल देता था ये जासूस, की थी रॉ की शुरूआत

punjabkesari.in Tuesday, Apr 11, 2017 - 12:55 PM (IST)

बीजिंग: भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को जासूसी के आरोप में पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने मौत की सजा की सजा दी गई है। पाकिस्तान का दावा है कि जाधव पहले इंडियन नेवी में नौकरी कर चुके हैं और रॉ  के जासूस है । बता दें कि रॉ यानि 'रिसर्च एंड एनालिसिस विंग' की शुरुआत आर.एन. काव ने की थी। काव ने ही उस दौर में इजरायली इंटेलिजेंस एजेंसी मोसाद से सीक्रेट कॉन्टेक्ट बनाए थे, जब भारत-इजरायल के रिलेशन न के बराबर थे।  1962 में चीन और 1965 में पाकिस्तान से वॉर के बाद भारत को रियलटाइम फॉरेन इंटेलिजेंस की जरूरत महसूस हुई।  तत्कालीन प्रधानमंत्री  इंदिरा गांधी ने इंटेलिजेंस ब्यूरो के अलावा 1968 में दूसरी विंग शुरू करवाई। इसे 'रिसर्च एंड एनालिसिस विंग' यानि रॉ कहा गया। 

रामेश्वर नाथ काव इसके पहले चीफ थे। वे 1977 तक रॉ के चीफ रहे। वह भारत सरकार के केबिनेट सेक्रेटिएट में सेक्रेटरी (रिसर्च) भी रहे।  काव जवाहर लाल नेहरू के पर्सनल सिक्युरिटी चीफ और राजीव गांधी के सिक्युरिटी एडवाइजर भी रहे।  काव की पर्सनल लाइफ बेहद प्राइवेट थी। रिटायरमैंट के बाद वे शायद ही कभी पब्लिक में देखे गए। उनकी कुछ ही तस्वीरें इंटरनेट पर अवेलेबल हैं। 1982 में फ्रेंच एक्सटर्नल इंटेलिजेंस एजेंसी SDECE के चीफ एलेक्जेंडर दे मेरेन्चेस ने काव की गिनती 70 के दशक में दुनियाभर के पांच टॉप इंटेलिजेंस ऑफिसर्स में की। काव का जन्म 10 मई 1918 को यूपी के कानपुर में एक कश्मीरी पंडित फैमिली में हुआ। उनका परिवार श्रीनगर से कानपुर माइग्रेट हुआ था।  1940 में उन्होंने इंडियन इम्पीरियल सर्विसेज (इंडियन सिविल सर्विसेज) में 'असिस्टेंट सुपरीटेंडेंट ऑफ पुलिस' (कानपुर) से करियर की शरुआत की। 

उनका पहला असाइनमैंट आजादी के बाद इंडियन वीआईपी की सिक्योरिटी देना था।  आजादी के बाद उन्हें इंटेलिजैंस ब्यूरो में डेप्युटेड कर दिया गया। उन्हें वी.आई.पी. सिक्योरिटी का चार्ज दिया गया।  50 के दशक में उन्हें घाना भी भेजा गया। वहां उन्हें तत्कालीन इंटैलिजेंस और सिक्योरिटी ऑर्गेनाइजेशन बनाने में सरकार की मदद के लिए भेजा गया था। शुरुआत में रॉ के लिए 250 एजैंट चुने गए। एजैंसी को ऑपरेशन शुरू करने के लिए 2 करोड़ रुपए का बजट अलॉट किया गया। अगले कई सालों में रॉ ने काव के नेतृत्व में कई कॉवर्ट ऑपरेशन्स को अंजाम दिया। काव की टीम को 'काउबॉयज' कहा जाने लगा था। 
 रॉ बनाए जाने के 3 साल बाद ही पूर्वी पाकिस्तान को आजाद करवाकर बांग्लादेश बनाया गया।

इसमें भी काव का अहम रोल था। बताया जाता है कि इस इंटेलिजेंस एजेंसी ने इतनी सटीक इन्फॉर्मेशन दी, जिससे इंडियन आर्मी को ऑपरेशन चलाने में काफी मदद मिली। रॉ ने चिटगांव पोर्ट पर पहुंचे पाकिस्तानी नेवी शिप की भी सही लोकेशन इंडियन नेवी तक पहुंचाई। 1975 में सिक्किम को भारत का 22वां राज्य बनाना भी काव और उनकी टीम की मदद से पॉसिबल हो पाया।  कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि 70 और 80 के दशक में तमिल गुरिल्ला फाइटर्स को ट्रेनिंग और श्रीलंका से जुड़े मामलों में भी काव की भूमिका है। ज्वाइंट इंटेलिजेंस कमेटी के चेयरमैन के.एन. दारूवाला के मुताबिक, "काव के दुनियाभर में जबरदस्त कॉन्टेक्ट्स थे। एशिया, अफगानिस्तान, ईरान, चीन हर जगह। वो एक फोन कॉल से चीजें बदल देते थे।"
 


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