पाकिस्तान-सऊदी रक्षा समझौता: क्या भारत के लिए खतरे की घंटी?
punjabkesari.in Thursday, Sep 18, 2025 - 11:05 PM (IST)

इंटरनेशनल डेस्कः पाकिस्तान और सऊदी अरब ने एक ‘रणनीतिक पारस्परिक रक्षा' समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके अनुसार उनमें से किसी भी देश पर किसी भी हमले को ‘दोनों के विरुद्ध आक्रमण' माना जायेगा। यह समझौता कतर में हमास नेतृत्व पर इजराइली हमले के कुछ दिनों बाद हुआ है, जो खाड़ी क्षेत्र में अमेरिका का एक प्रमुख सहयोगी है।
भारत ने इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि वह अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ-साथ क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता पर इस समझौते के प्रभावों का अध्ययन करेगा। एक संयुक्त बयान के अनुसार, इस समझौते पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान ने बुधवार को पाकिस्तानी नेता की खाड़ी देश की एक दिवसीय यात्रा के दौरान हस्ताक्षर किए।
संयुक्त बयान के अनुसार, रणनीतिक पारस्परिक रक्षा समझौते में कहा गया है कि ‘‘किसी भी देश के विरुद्ध किसी भी आक्रमण को दोनों के विरुद्ध आक्रमण माना जायेगा।'' इसमें आगे कहा गया है, ‘‘यह समझौता, जो दोनों देशों की अपनी सुरक्षा बढ़ाने और क्षेत्र तथा विश्व में सुरक्षा एवं शांति प्राप्त करने की साझा प्रतिबद्धता को दर्शाता है, दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग के पहलुओं को विकसित करने और किसी भी आक्रमण के विरुद्ध संयुक्त प्रतिरोध को मजबूत करने का लक्ष्य रखता है।''
इस घटनाक्रम पर टिप्पणी करते हुए, नई दिल्ली में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ-साथ क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता पर इस कदम के प्रभावों का अध्ययन करेगा। उन्होंने कहा कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा और “सभी क्षेत्रों में व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने” के लिए प्रतिबद्ध है। यह समझौता मई में भारत और पाकिस्तान के बीच चार दिवसीय सैन्य संघर्ष के चार महीने बाद हुआ। पाकिस्तान-सऊदी संयुक्त वक्तव्य के अनुसार, यह समझौता सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच लगभग आठ दशक से चली आ रही ऐतिहासिक साझेदारी पर आधारित है, और यह भाईचारे और इस्लामी एकजुटता के बंधनों के साथ-साथ दोनों देशों के बीच साझा रणनीतिक हितों और घनिष्ठ रक्षा सहयोग पर आधारित है। दोनों पक्षों ने दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक और रणनीतिक संबंधों और साझा हितों के कई विषयों की भी समीक्षा की।
सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में, शरीफ ने बृहस्पतिवार को कहा कि उनकी बातचीत में ‘‘विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हुई, क्षेत्रीय चुनौतियों की समीक्षा की गई और द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ाया गया''। शरीफ ने यह भी कहा कि वह सऊदी युवराज के ‘‘लगातार समर्थन और दोनों देशों के बीच सऊदी निवेश, व्यापार और व्यावसायिक संबंधों को बढ़ाने में उनकी गहरी रुचि'' को बहुत महत्व देते हैं। यह समझौता दोनों देशों के बीच दशकों में रक्षा संबंधों में सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
पाकिस्तान और सऊदी अरब ने 1982 में एक द्विपक्षीय सुरक्षा सहयोग समझौते पर दस्तखत किए थे, जिसमें कर्मियों के प्रशिक्षण सहित दोनों पक्षों के बीच रक्षा और सैन्य सहयोग बढ़ाने का प्रावधान था। इस समझौते को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए, पूर्व अमेरिकी राजनयिक जालमे खलीलजाद ने कहा कि यह ‘‘कई सवाल'' खड़े करता है और ‘‘खतरनाक समय'' में आया है। उन्होंने कहा, ‘‘पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार और वितरण प्रणालियां हैं जो इजराइल समेत पूरे पश्चिम एशिया में लक्ष्यों को भेद सकती हैं। वह ऐसी प्रणालियां भी विकसित कर रहा है जो अमेरिका में लक्ष्यों तक पहुंच सकती हैं।''
अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने कहा कि रक्षा समझौते में ‘‘रणनीतिक'' शब्द का अर्थ है कि इसमें ‘‘परमाणु और मिसाइल रक्षा'' शामिल है। ‘द न्यूज' ने पाकिस्तान के पूर्व राजनयिक तौकीर हुसैन के हवाले से अपनी खबर में कहा, ‘‘दोहा शिखर सम्मेलन के बाद हुआ पाकिस्तान-सऊदी समझौता दर्शाता है कि खाड़ी देश सिर्फ खोखले बयानों पर निर्भर नहीं हैं, बल्कि ठोस कार्रवाई की भी बात कर रहे हैं।''
शरीफ की सऊदी यात्रा से पहले, विदेश कार्यालय ने कहा था कि पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच ऐतिहासिक संबंध हैं, जो साझा मूल्यों और आपसी विश्वास पर आधारित हैं। इसमें कहा गया कि यह यात्रा दोनों नेताओं को इस अनूठी साझेदारी को मजबूत करने और दोनों देशों के लोगों के लाभ के लिए सहयोग के नए रास्ते तलाशने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करेगी। यह शरीफ की एक सप्ताह के भीतर खाड़ी क्षेत्र की तीसरी यात्रा थी। इससे पहले उन्होंने बृहस्पतिवार और सोमवार को कतर का दो बार दौरा किया था, ताकि खाड़ी देश में इजराइल के हमले के बाद दोहा के साथ एकजुटता व्यक्त की जा सके और इस मुद्दे पर अरब-इस्लामी देशों की एक आपात बैठक में भाग लिया जा सके।