NRC: असम आंदोलन में जान गंवानेवाले शहीद की पत्नी और बेटा विदेशी कैसे ?

punjabkesari.in Saturday, Aug 31, 2019 - 03:54 PM (IST)

गुवाहाटी: ‘मैं असम आंदोलन में शहीद हुए मदन मल्लिक की पत्नी हूं। 1983 में हुए असम आंदोलन में मेरे पति ने अपनी जान गंवाई थी। मेरे पति अखिल असम छात्र संस्था (आसू) के लोगों के साथ देश के लिए शहीद हो गए। उन शहीदों के बलिदान के कारण ही एनआरसी बनी है और अब हमको ही विदेशी बताकर एनआरसी से बाहर कर दिया गया है।’ ये कहना है 66 की सरबबाला सरकार का। जिनके पति असम आंदोलन में शहीद हो गए थे। लेकिन एनआरसी की फाइनल लिस्ट नाम नहीं होने के कारण उनको नागरिकता साबित करने के लिए नगांव ज़िले के फ़ॉरेन ट्रायब्यूनल संख्या-2 से नोटिस भेजा गया है।   

असम आंदोलन में शहीद हुए थे सबरबाला के पति

PunjabKesari

सरबबाला बताती हैं कि उनके पति अखिल असम छात्र संस्था के लोगों के साथ अवैध नागरिकों और बांग्लादेशी घुसपैठियों के ख़िलाफ़ लड़ने गए थे। जब मैंने उनको जाने से रोका तो उन्होंने कहा कि, ‘ऐसे काम में ख़ुद से जाना चाहिए। ये हमारे देश का सवाल है।’ लेकिन इसके बाद वो फिर कभी लौटकर नहीं आए। दो-तीन बाद उनका सिर कटा हुआ शव मिला था। इस दौरान हमारे घर जला दिए गए थे। हमारे सारे दस्तावेज और कागजात जल गए। पति की मौत के बाद मुझे अकेले अपने 4 बच्चों के साथ शरणार्थी कैंपों रहना पड़ा। सरकार के पास इसकी पूरी जानकारी है।

इतना ही नहीं सरबबाला असम सरकार की तरफ से दिए गए मान-पत्र और स्मृति चिह्न को दिखाते हुए कहती हैं, ‘1985 में जब प्रफुल्ल महंत असम के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने हमें 30 हज़ार रुपये और मान पत्र से सम्मानित किया। वहीं छात्र संघ ने गांव में मेरे पति के नाम पर शहीद स्मारक बनवाया। इसके बाद 2016 में भी मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने पांच लाख रुपये और मान पत्र देकर हमें सम्मानित किया। अब आप खुद बताइए कि पहले  शहीद के परिवार होने के नाते हमें इतना सम्मान दिया गया और अब हमें ही अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कहा जा रहा है। जब मेरे पति शहीद हैं तो फिर हम विदेशी कैसे हुए?’

बेटे के मुताबिक पिता के उपनाम में हुई गड़बड़ी है इसकी वजह

PunjabKesari

सरबबाला के मंझले बेटे प्रांतुष अपने पिता के उपनाम में हुई गड़बड़ी को इसके पीछे की वजह मानते है। वो बताते है कि,  ‘मेरे पिता की मृत्यु के वक्त हम सब बहुत छोटे थे और मेरी मां भी पढ़ी-लिखी नहीं थी। ऐसे में जब छात्र संस्था को लोगों ने मेरे पिता के नाम पर शहीद स्मारक बनवाया तो उसपर उनका उपनाम मल्लिक की जगह सरकार लिख दिया। जिसके बाद कई काग़जात में हमारे पिता का नाम मदन सरकार लिखा गया। उस समय हमें यह मालूम नहीं था कि एक उपनाम के कारण हमारी नागरिकता पर सवाल खड़ा हो जाएगा और मेरी मां को फ़ॉरेन ट्रायब्यूनल से नोटिस जारी कर दिया जाएगा।’

इधर अखिल असम छात्र संघ (आसू) के महासचिव लुरिन ज्योति गोगोई कहते हैं, ‘किसी भी भारतीय व्यक्ति का नाम एनआरसी की सूची से नहीं कटेगा। मदन मल्लिक के मामले में मानवीय भूल हुई होगी। लेकिन आपके काग़जात ही सारे सवालों का जवाब हैं। अगर किसी तकनीकी कारण से मल्लिक के परिवार को परेशानी हुई है तो हम उनकी मदद करेंगे।’ वहीं घुसपैठियों के ख़िलाफ़ हुए असम आंदोलन में जान गंवाने वाले मदन मल्लिक के परिवार को नोटिस भेजे जाने से इलाके के लोग भी बेहद नाराज़ हैं।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Edited By

prachi upadhyay

Recommended News

Related News