अमेठी ने राहुल गांधी को क्यों कहा अलविदा?

punjabkesari.in Monday, Jun 17, 2019 - 09:03 AM (IST)

नई दिल्ली: लोकसभा चुनावों के बाद केंद्र में मोदी सरकार सत्तासीन हो चुकी है। इन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने 303 सीटें जीती हैं। इनमें एक अमेठी संसदीय सीट पर भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को बड़े मतांतर के साथ हराने में कामयाब रहीं। इस जीत के साथ उत्तर प्रदेश के गौरीगंज स्थित कांग्रेस के कार्यालय की दीवारों पर लिखा ‘अमेठी का सांसद 2019 का पी.एम.’ की भविष्यवाणी भी 23 मई को झूठी साबित हो गई है। 23 मई का वह दिन एक बार फिर इतिहास बन गया जब इस लोकसभा सीट पर 42 साल में तीसरी बार कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। कई मायनों में अमेठी में मिली करारी हार ने सबसे पुरानी पार्टी के वर्चस्व को उजागर किया है।

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एक ऐसी पार्टी जिसने भारत की आजादी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, अब अपने ऊपर लगे ‘राष्ट्र-विरोधी’ ब्रांड का बचाव करने में असमर्थ नजर आई। जो प्रदेश 80 निर्वाचित प्रतिनिधियों को संसद में भेजता है उस राज्य में कांग्रेस ने सिर्फ एक सीट जीती है-रायबरेली। 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पार्टी एक भी सीट जीतने में नाकाम रही। 10 राज्यों में सिर्फ एक जीती है।जिन कारणों से राहुल गांधी अमेठी में 55,000 वोटों के अंतर से हार गए (उन्होंने केरल में वायनाड सीट 4,30,000 से अधिक वोटों के साथ जीती) कहीं न कहीं पार्टी के खराब प्रदर्शन का संकेत है, सिवाय पंजाब के (जहां उसने 13 में से 8 सीटें जीती थीं), केरल (20 में से 15 सीटें) और तमिलनाडु (जहां उसने 8 सीटें जीतीं और उसके सहयोगी डी.एम.के. ने 38 सीटों में से 23 सीटें जीतीं), अमेठी में हार का एकमात्र चौंकाने वाला तत्व यह है कि ज्यादातर लोग परिणामों से हैरान नहीं हैं, जमीनी स्तर पर कांग्रेस का कार्यकत्र्ता भी नहीं जो हार के लिए खराब अभियान प्रबंधन को दोषी मानता है।

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अमेठी के तिलोई के अनाज व्यापारी हसमत अली ने रोड शो और सभाओं का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘गांधी को यह अहसास होना चाहिए कि ‘टा टा, बाय-बाय’ को अब वोट नहीं मिलते हैं। 1977 में नसबंदी (जबरन नसबंदी) के कारण संजय गांधी को हार के रूप में लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा था। ...फिर राजीव गांधी (पूर्व पी.एम. और राहुल गांधी के पिता) ने यहां के लोगों के लिए बहुत काम किया लेकिन एक बेटा कब तक जीतता रह सकता है अतीत की विरासत?’’ अली के साथ ही कई लोगों ने केंद्रीय मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की उम्मीदवार स्मृति ईरानी के जीत के प्रयासों के साथ गांधी के लोकप्रिय डिस्कनैक्ट की तुलना की। 2014 में राहुल गांधी से चुनाव हारने के बाद स्मृति ईरानी बार-बार यहां आईं। 2019 के चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद स्मृति ईरानी डेढ़ महीने से अधिक समय तक अमेठी में डेरा डाले रहीं और ग्रामीणों के बीच रहीं।

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अमेठी स्थित जायस तहसील में एक चाय की दुकान पर एक युवा किसान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजनाओं की सराहना की। जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने भाजपा को वोट क्यों दिया तो किसान विश्वेश्वर वर्मा ने कहा कि हमें पी.एम.-किसान योजना के तहत 2-2 हजार की 2 किस्तें मिलीं। मतदान के कुछ दिन पहले हमें दूसरी किस्त आई। इससे पहले किसी ने भी हमारे हाथ में 4,000 नहीं दिए थे। दुकान के अंदर बैठे समूह ने सहमति जताई कि भाजपा को इन चुनावों में जीत की उम्मीद थी और उसने मन-धन से चुनाव लड़ा, कोई कसर नहीं छोड़ी। वहीं कांग्रेस सोती रह गई। दूसरी तरफ कांग्रेस का गौरीगंज कार्यालय जहां से चुनाव अभियान चलाया गया था अब वीरान नजर आ रहा है। पार्टी के एक कार्यकत्र्ता ने बात करने पर कहा कि हमारे स्थानीय नेताओं को कुछ भी किए बिना जीतने की उम्मीद थी। गांवों में कोई अभियान नहीं चलाया गया और न ही लोगों की समस्याओं को सुनने के लिए कोई था।

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हालांकि, उनकी सबसे बड़ी शिकायत यह है कि स्थानीय नेतृत्व ने कार्यकत्र्ताओं को राहुल गांधी से मिलने से रोका जब भी वे मिलने गए और कहा कि हम केवल उन्हें दूर से देख सकते हैं। हमें बताया गया था कि 134 साल पुरानी पार्टी हमारे सुझावों के अनुसार काम नहीं करेगी। जमीनी स्तर पर अभियान में कमी के कारण न्यूनतम आय योजना जो कांग्रेस के घोषणा पत्र में शामिल थी थ वह भी लोकप्रिय नहीं हो सकी। गौरीगंज के रहने वाले जयप्रकाश कौशल के अनुसार स्थानीय नेताओं द्वारा गेटकीपिंग के कारण आम लोगों और पार्टी में व्यापक अंतर पैदा होने से यह सीट महत्वपूर्ण बन गई। उन्होंने कहा कि चुनावी नतीजों ने राहुल गांधी को आईना दिखाया है। चश्मा व्यवसाय चलाने वाले बृजेश कुमार की दुकान पर इक_ा हुए लोग पिछले चुनाव के रुझानों का भी उल्लेख करते हैं, जिसमें 2014 के आम चुनाव में राहुल गांधी को 4,01,651 वोट और स्मृति ईरानी को 3,00,748 वोट पड़े थे, जबकि 2009 में कांग्रेस को 4,64,195 वोट और भाजपा को 37,570 वोट मिले थे। 

2017 के राज्य विधानसभा चुनावों में अमेठी के 5 विधानसभा क्षेत्रों में से प्रत्येक में कांग्रेस हार गई। उन्होंने कहा कि इसका निष्कर्ष यह है कि अमेठी में खराब चुनाव प्रबंधन राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में कांग्रेस के व्यापक पतन का संकेत है, जहां पार्टी राज्य चुनावों से 4 महीने पहले ही जीती है। लखनऊ के एक वरिष्ठ नेता और कांग्रेस के प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह के अनुसार पार्टी के लिए प्रचार करने वाले पैदल सैनिकों की कमी चुनावी नुक्सान का प्रमुख कारण था। उन्होंने कहा, ‘‘हम एक नैतिक लड़ाई लड़ रहे थे...(लोकप्रिय) मोदी का समर्थन आस्था (विश्वास) में डूबा हुआ है, जिसमें कोई योग्यता या अवगुण नहीं दिखता है।’’ 


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Anil dev

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