लॉ कमीशन का मुस्लिम महिलाओं को झटका, कहा- समान नागरिक संहिता गैर ज़रूरी

punjabkesari.in Saturday, Sep 01, 2018 - 07:51 PM (IST)

नेशनल डेस्क (मनीष शर्मा): अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रही मुस्लिम महिलाओं की उम्मीदों को झटका देते हुए लॉ कमीशन ने कहा कि देश को न तो समान नागरिक संहिता की ज़रुरत है और न ही यह अपेक्षित है। शुक्रवार को बी एस चौहान की अध्यक्षता में कमीशन ने कार्यकाल के आखिरी दिन अपने परामर्श पत्र में कहा कि सरकार को चाहिए वो सामान नागरिक संहिता लागू करने की बजाय पर्सनल लॉ में कुछ बदलाव करे। आपको बता दें कि 17 जून, 2016 को केंद्र सरकार ने लॉ कमीशन को इस विवादित मुद्दे पर जल्द से जल्द एक रिपोर्ट सौंपने को कहा था।

PunjabKesari
क्यों बेतुका है पर्सनल लॉ में बदलाव का तर्क ?
 

  • भारत में सभी धर्मों के ‘पर्सनल लॉ हैं। 
  • पर्सनल लॉ में शादी, तलाक तथा ज़मीन-जायदाद में बंटवारे आदि विषय होते हैं। 
  • ईसाईयों, पारसियों और मुस्लिमों का अपने-अपने पर्सनल लॉ हैं।
  • मुस्लिमों को छोड़ कर सभी के पर्सनल लॉ में समय-समय पर सुधार हुए। 
  • शरीयत लॉ करीब सौ सालों से जैसे का तैसा है।
  • मुस्लिम शरीयत लॉ में सुधार को इस्लाम के विरुद्ध मानते हैं। 
  • तीन तलाक़ पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मुस्लिमों ने अभी तक नहीं अपनाया है। 


क्यों ज़रूरी है समान नागरिक संहिता ?
फ्रांस, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, यूके जैसे धर्मनिरपेक्ष देशों में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून है। फिर ऐसी क्या बात है जो भारत में अब तक यह लागू नहीं हो सका। संविधान सभा में बहस के दौरान डॉ भीम राव अम्बेडकर ने सामान नागरिक संहिता के समर्थन में कहा था कि मुझे समझ नहीं आता हम धर्म को क्यों इतना विशाल क्षेत्राधिकार दें की वो हमारे जीवन से जुड़ी बुराईयों को दूर करने में रोड़ा अटकाए। हमें जो आज़ादी मिली है उससे हम समाज की कुरीतियों को दूर करें जो हमारे मौलिक अधिकारों का हनन करता है। 

PunjabKesari
अम्बेडकर ने कहा था कि भारत का संविधान भी भारत सरकार से अपेक्षा रखता है कि वह सामान नागरिक संहिता को लागू करे। संविधान का आर्टिकल 44 कहता है कि केंद्र को भारत के संपूर्ण क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता बनाने का प्रयास करना चाहिए। सभ्य मानव समाज में हर धर्म को उन कुरीतियों से किनारा कर लेना चाहिए जो अत्याचार या शोषण का जरिया बनता हो। शाह बानो से लेकर शायरा बानो तक जब भी सामान नागरिक संहिता की ज़रुरत महसूस हुई उसे तुष्टिकरण की राजनीति ने कुचल दिया। जिस मुद्दे को आज़ादी के दौरान ही ख़त्म हो जाना चाहिए था उसे अभी तक वोटों की राजनीति ने ज़िंदा रखा हुआ है। 
PunjabKesari


सबसे ज्यादा पढ़े गए

vasudha

Recommended News

Related News