मुस्लिम समुदाय और फर्टिलिटी रेट... क्या ये भी है एक सियासी मुद्दा ?

punjabkesari.in Thursday, Apr 25, 2024 - 01:03 PM (IST)

नेशनल डेस्क: मुस्लिम परिवारों में बच्चों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी के कारण हमेशा ही विवाद रहा है। भारत में भी ये देखने को खुब मिलता है। यहां तक की अक्सर ये भी आरोप लगता रहा कि ये धार्मिक आबादी कई हथकंडे अपना रही है ताकि उनकी संख्या सबसे ज्यादा हो जाए और अब ये बात तो ग्लोबल लीडर भी कह रहे हैं। इसे धार्मिक और सामाजिक संरचना के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन क्या वाकई इसमें कोई धार्मिक उत्सुकता है, या फिर यह केवल एक भ्रम है, इस पर सवाल उठ रहे हैं। आईए जानते हैं कि किस धर्म की फर्टिलिटी रेट कितनी है और इसका क्या असर होगा। प्रजनन दर या फर्टिलिटी रेट यानी किसी खास आबादी में 15-49 साल के बीच की महिला, औसतन कितने बच्चों को जन्म दे सकती है। 

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बात करें आबादी की तो साल 1900 में मुस्लिमों की आबादी दुनिया की कुल आबादी का 12% थी। लेकिन इसके बाद पॉपुलेशन तेजी से बढ़ीती चली गई। अब प्यू रिसर्च सेंटर दावा कर रहा है कि साल 2050 तक ये धार्मिक पॉपुलेशन 30 फीसदी हो जाएगी।  2010 को देखें तो इस्लाम 1.6 बिलियन अनुयायियों के साथ दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धार्मिक मजहब बन गया। हालांकि किसी धार्मिक आबादी का बढ़ना-घटना काफी हद तक इससे भी प्रभावित होता है कि उसकी महिलाएं कितनी संतानों को जन्म दे रही हैं। इसे फर्टिलिटी रेट कहते हैं। 

किसका फर्टिलिटी रेट है ज्यादा ?
मुस्लिम महिलाओं की फर्टिलिटी रेट सामान्य तुलना में अधिक मानी जा रही है। यह दुनिया भर में ग्लोबल और लोकल स्तरों पर दिखाई देती है। भारत में, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार, साल 2019 से 2021 के बीच, मुस्लिम परिवारों की जन्मदर 2.3 रही। यह अन्य समुदायों की तुलना में काफी अधिक है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे का डेटा ये भी कहता है कि इससे पहले ये दर और ज्यादा थी। यहां तक कि साल 2015 में फर्टिलिटी रेट 2.6 प्रतिशत रिकॉर्ड की गई। नब्बे के दशक में ये 4.4 प्रतिशत रहा। इसका मतलब औसत मुस्लिम महिला 4 से 5 बच्चों को जन्म दे रही थी।

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धार्मिक समूहों के बीच अंतर
हिंदू, ईसाई, और अन्य समुदायों में इस्लाम के मुकाबले फर्टिलिटी रेट कम है। अगर हिंदुओं की बात करें तो ये घटकर 1.94 प्रतिशत रह गई है। इसके बाद 1.88 प्रतिशत के साथ ईसाई धर्म को मानने वाले आते हैं। वैसे फिलहाल धार्मिक समूहों के बारे में विश्वसनीय आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। साल 2011 में आखिरी सेंसस हुआ था, तब भारत में 17.22 करोड़ मुस्लिम थे, जो देश की कुल आबादी का 14.2 फीसदी था।

मुस्लिम देशों की बात करें तो नाइजर में एक महिला औसतन 7 संतानों को जन्म देती है। इसके बाद टॉप 10 में जितने भी देश हैं, उनमें फर्टिलिटी रेट दुनिया में सबसे ज्यादा है। इसमें कांगो, माली, चड, युगांडा, सोमालिया, साउथ सूडान, बुरुंडी और गिनी हैं। इनमें से अधिकतर अफ्रीकी देश हैं, जहां इस्लाम फैल चुका। अगर अरब देशों को देखें तो वहां औसत फर्टिलिटी रेट 3.1 है। 

क्या ईसाई धर्म में हुआ बदलाव
इसे समझने के लिए इंस्टीट्यूट ऑफ फैमिली स्टडीज ने एक रिसर्च की। इसमें दिखा कि औसत अमेरिकी महिला 1.9 बच्चों को जन्म दे रही है। इसकी तुलना रिप्लेसमेंट रेट से की गई। ये बच्चों की वो संख्या है, जो किसी कपल को अपने रिप्रोडक्टिव समय के दौरान पैदा करना होगा। जितनी मौतें हुई, उनकी जगह कम से कम उतने ही जन्म हो जाते हैं। इससे बैलेंस बना रहता है। लेकिन अमेरिकी ईसाई कम्युनिटी के मामले में रिप्लेसमेंट दर महिला के बच्चों को जन्म देने की दर से कहीं ज्यादा है। ऐसे में ईसाई आबादी कम होती जाएगी।

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फर्टिलिटी रेट के प्रमुख कारण
फर्टिलिटी रेट के मुख्य कारणों में महिलाओं की कम उम्र में शादी, शिक्षा के स्तर, और परिवार नियोजन की जागरूकता और प्राथमिकता की कमी शामिल हैं। मुस्लिम परिवारों में बच्चों की संख्या में वृद्धि का कारण सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं हो सकता, बल्कि यह सामाजिक, आर्थिक, और शैक्षिक परिवेश के संदर्भों का भी परिणाम है। इस विषय पर साही जानकारी और समझ के साथ ही समाज को विचार करना चाहिए। 

पढ़ाई-लिखाई से कितना है फर्टिलिटी रेट का वास्ता NFHS का सर्वे भी ये बात मानता है। इसके मुताबिक, 12वीं पास महिला की तुलना में, उनके बच्चे ज़्यादा होंगे, जो महिलाएं स्कूल नहीं जा पाती हैं।आखिरी जनगणना के अनुसार, देश में मुस्लिम साक्षरता दर सबसे कम लगभग 68 फीसदी थी। इससे भी आबादी में बढ़त वाली बात कनेक्ट होती है। वैसे बहुत से परिवार अबॉर्शन को धार्मिक नजरिए से भी देखते और उसका विरोध करते हैं। इस वजह से भी प्रोडक्टिव उम्र में हुई शादियों में ज्यादा बच्चों का जन्म हो जाता है।

 

 


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Content Editor

Mahima

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