सिर कलम करवाया पर इस्लाम नहीं कुबूला, कौन थे वीर हकीकत राय? जिनकी याद में मनाया जाता है बलिदान दिवस!

punjabkesari.in Monday, Feb 03, 2025 - 09:30 AM (IST)

नेशनल डेस्क। एक बालक का अपने धर्म के प्रति समर्पण और प्राणों की कीमत पर भी न डिगने का संकल्प सदियों से लोगों को रोमांचित करता रहा है। हकीकत राय की बलिदान गाथा उनके प्रति नतमस्तक करती है। कबड्डी के बहाने वो कट्टरपंथियों के निशाने पर आए और उन पर इस्लाम कुबूल करने का दबाव बना पर उन्होंने जान दे दी पर इस्लाम कुबूल नहीं किया। आइए जानते हैं उनके बारे में।

पंजाब के सियालकोट (अब पाकिस्तान) में जन्मे वीर हकीकत राय का नाम आज भी श्रद्धा और सम्मान से लिया जाता है। उन्होंने अपनी आस्था की रक्षा के लिए 14 साल की उम्र में अपना बलिदान दे दिया। उनकी शहादत की याद हर साल बसंत पंचमी पर श्रद्धा के साथ मनाई जाती है।

वीर हकीकत राय का जन्म और परिवार

हकीकत राय का जन्म 1719 में एक संपन्न व्यापारी परिवार में हुआ था। उनके पिता भागमल और माता गौरां उन्हें अच्छी शिक्षा दिलाना चाहते थे ताकि वे सरकारी नौकरी पा सकें। उन दिनों सरकारी नौकरी के लिए फारसी भाषा की पढ़ाई जरूरी थी इसलिए उन्हें मदरसे में दाखिला दिलाया गया। हकीकत राय पढ़ाई में बहुत तेज थे लेकिन उनके साथ पढ़ने वाले कुछ लड़के उनसे ईर्ष्या करने लगे।

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धर्म के लिए संघर्ष की शुरुआत

एक दिन स्कूल से लौटते समय उनके कुछ मुस्लिम दोस्तों ने देवी-देवताओं का अपमान किया। इस पर हकीकत राय ने जवाब दिया कि यदि वे उनकी पूज्य फातिमा बीबी के बारे में ऐसा कहें तो कैसा लगेगा? इस पर उन लड़कों ने गुस्से में आकर हकीकत राय पर ईशनिंदा का आरोप लगा दिया। उन्हें पकड़कर सियालकोट के शासक मिर्जा बेग के पास ले जाया गया।

 

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इस्लाम कबूल करने का दबाव

मिर्जा बेग ने हकीकत राय को दो विकल्प दिए – या तो इस्लाम कबूल करो या फिर मौत को गले लगाओ। लेकिन हकीकत राय ने साफ मना कर दिया और कहा कि वे अपने धर्म से कभी नहीं हटेंगे। इसके बाद उन्हें लाहौर के नवाब जकरिया खान के सामने पेश किया गया जहां भी उन पर धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डाला गया।

मौत की सजा

जब हकीकत राय ने अपना धर्म बदलने से इनकार कर दिया तो नवाब जकरिया खान ने उन्हें मौत की सजा सुनाई। उनके सिर को धड़ से अलग करने का आदेश दिया गया। यह घटना 1734 में बसंत पंचमी के दिन घटी।

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पत्नी का बलिदान

हकीकत राय की शादी 12 साल की उम्र में बटाला निवासी लक्ष्मी देवी से हुई थी लेकिन कम उम्र होने के कारण वे अपने ससुराल नहीं गई थीं। जब उन्हें पति की शहादत की खबर मिली तो उन्होंने भी चिता पर बैठकर सती होने का निर्णय लिया।

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वीर हकीकत राय की स्मृति

आज भी पंजाब के बटाला में हकीकत राय और उनकी पत्नी लक्ष्मी देवी की याद में एक स्मारक बना हुआ है। हर बसंत पंचमी पर वहां मेला लगता है और लोग वीर हकीकत राय के बलिदान को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। वहीं उनकी कहानी हमें सिखाती है कि सच्चे संकल्प और निडरता से जीवन जीने वालों को इतिहास हमेशा याद रखता है।


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Content Editor

Rohini Oberoi

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