‘प्रोजेक्ट चीता' के दूसरे चरण की तैयारी कर रही सरकार, दक्षिण अफ्रीका से आएगी चीतों की अगली खेप
punjabkesari.in Saturday, Sep 16, 2023 - 02:10 PM (IST)

नेशनल डेस्क: ‘प्रोजेक्ट चीता' के प्रमुख एस पी यादव ने कहा कि भारत की ऐसे चीते मंगाने की योजना है, जिनकी चमड़ी मोटी नहीं होती हो। दरअसल, अफ्रीका से भारत लाए गए चीतों में से कुछ चमड़ी मोटी होने के कारण ही गंभीर संक्रमण की चपेट में आए थे और तीन चीतों की मौत की वजह भी इसे ही बताया गया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नामीबिया से लाए गए चीतों को पिछले वर्ष 17 सितंबर को मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी) में छोड़ा था और इसी के साथ देश में ‘प्रोजेक्ट चीता' की शुरुआत हुई थी। ‘प्रोजेक्ट चीता' का रविवार को एक वर्ष पूरा हो रहा है।
पशुओं के प्रजनन पर दिया जाएगा पूरा ध्यान
पर्यावरण मंत्रालय में अतिरिक्त महानिदेशक (वन) एस पी यादव ने दिए एक साक्षात्कार में कहा कि ‘प्रोजेक्ट चीता' के दूसरे वर्ष में पूरा ध्यान इन पशुओं के प्रजनन पर दिया जाएगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि चीतों को पहनाए गए रेडियो कॉलर के कारण उन्हें कोई संक्रमण नहीं हुआ था। हालांकि, अधिकारियों ने इन कॉलर की जगह दक्षिण अफ्रीका के उसी निर्माता के बनाए नये कॉलर लगाने का फैसला किया है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के प्रमुख यादव ने कहा कि चीतों की अगली खेप दक्षिण अफ्रीका से मंगाई जाएगी और उन्हें मध्य प्रदेश के गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में छोड़ा जाएगा। इस अभयारण्य में चीतों को छोड़ने की तैयारी साल के अंत तक पूरी कर ली जाएगी।
दक्षिण अफ्रीका से आएंगे चीते
यादव ने कहा, ‘‘चीता कार्रवाई योजना में इस बात का जिक्र है कि कूनो में 20 चीतों को रखे जाने की क्षमता है। इस वक्त वहां एक शावक सहित कुल 15 चीते हैं। जब हम देश में चीतों की अगली खेप लाएंगे,तो इन्हें किसी और क्षेत्र में रखेंगे। हम मध्य प्रदेश में दो ऐसे स्थान तैयार कर रहे हैं। एक है गांधी सागर अभयारण्य और दूसरा है नौरादेही।'' उन्होंने कहा, ‘‘ गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में चीतों को लाए जाने की तैयारी जोर शोर से चल रही है। मुझे लगता है कि यह काम नवंबर के अंत में या दिसंबर में पूरा हो जाएगा। एक बार हमें काम पूरा होने के संबंध में सूचना मिल जाए फिर हम वहां जाएंगे। हम तैयारी की हर पहलू से जांच करेंगे और दिसंबर के बाद चीतों को लाने के संबंध में निर्णय करेंगे।''
यादव ने इस बात को स्वीकार किया कि पहले वर्ष में भारत में चीतों की देखभाल में आई मुख्य चुनौती यह थी कि कुछ चीतों ने अफ्रीका की सर्दी की अवधि (जून से सितंबर) के पूर्वानुमान के अनुसार भारत में गर्मी तथा मॉनसून के मौसम में अप्रत्याशित रूप से अपनी शरीर पर मोटी फर विकसित कर ली थी। लेकिन इसकी उम्मीद अफ्रीकी विशेषज्ञों को भी नहीं थी। यादव ने चीतों में संक्रमण और मौत की पूरी घटना को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि मोटी फर, अधिक उमस और तेज तापमान, इन सबके कारण चीतों को खारिश होती है और वे पेडों के तनों या जमीन पर अपनी गर्दन रगड़ते हैं। इससे पशुओं की गर्दनों की खाल फट जाती है जिस पर मक्खियां बैठती हैं और अंडे देती हैं, इससे पशुओं में विषाणु का संक्रमण होने के साथ सेप्टिसीमिया (सड़न) की समस्या होती है और पशुओं की मौत हो जाती है।
यादव में कहा कि प्रोजेक्ट के प्रथम वर्ष की अहम सफलता यह रही कि वन क्षेत्र में चीतों में शिकार की प्रवत्ति पाई गई। उन्होंने कहा,‘‘ चीतों ने शिकार करने में, अपने शिकार की रक्षा करने में तथा वातावरण के अनुकूल खुद को ढलने में कुशलता दिखाई। ये संकेत बेहद उत्साहवर्धक हैं और मेरा मानना है कि हमने प्रोजेक्ट चीता का एक वर्ष पूरा होने पर कई अहम पड़ाव पूरे किए हैं।'' प्रोजेक्ट के दूसरे वर्ष के बारे में पूछे जाने पर यादव ने कहा, ‘‘जो पहली बात मेरे जेहन में आती है वह है चीतों का प्रजनन। अगर हम ज्यादा की उम्मीद करें तो भारत की मिट्टी में जन्में शावक यहां के वातावरण में असानी से ढल सकते हैं।
छह वयस्क चीतों की मौत हो चुकी
एक बार प्रजनन प्रक्रिया पूरी हो जाए फिर हम समझ पाएंगे कि ये चीते हमारे देश में किस प्रकार से रचते बसते हैं, तो अगले वर्ष मुख्य बात रहेगी-भारत की मिट्टी पर और शावकों की उपस्थिति।'' बहुप्रतीक्षित ‘प्रोजेक्ट चीता' के तहत 20 चीतों को नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाया गया था और इन्हें दो खेप में- पहली पिछले वर्ष सितंबर में और दूसरी इस वर्ष फरवरी में, कूनो भेजा गया था। मार्च से अब तक विभिन्न कारणों से छह वयस्क चीतों की मौत हो चुकी है। नाबीमिया से लाई गई मादा चीते से जन्में चार शवकों में से तीन की मई माह में भीषण गर्मी से मौत हो गई थी।