ब्रेस्ट कैंसर की जांच के लिए क्या मैमोग्राफी रिपोर्ट भी दे सकती है धोखा? डॉक्टरों ने बताया बड़ा सच!
punjabkesari.in Wednesday, Nov 12, 2025 - 12:09 PM (IST)
नेशनल डेस्क। हाल के वर्षों में भारत में महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामलों में तेज़ी से वृद्धि देखी गई है जो इसे अब देश में सबसे आम कैंसर बनाता जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि 20 साल की उम्र के बाद महिलाओं को नियमित जांच करानी चाहिए ताकि इस गंभीर समस्या का अर्ली स्टेज में पता चल सके और समय रहते उपचार शुरू किया जा सके।
मैमोग्राम पर निर्भरता क्यों है खतरनाक?
दुनिया भर में ब्रेस्ट कैंसर की जांच के लिए मैमोग्राम को एक मानक टेस्ट माना जाता है लेकिन भारतीय स्वास्थ्य विशेषज्ञ आगाह करते हैं कि केवल मैमोग्राम पर निर्भर रहना सही नहीं है खासकर भारत जैसे देश में जहां कैंसर का पैटर्न पश्चिमी देशों से काफी अलग है।

भारत और पश्चिम में अंतर
पश्चिमी देशों में यह बीमारी आमतौर पर 55 साल की उम्र के बाद शुरू होती है जबकि भारतीय महिलाओं में यह 45 साल की उम्र से ही शुरू हो जाती है। भारतीय महिलाओं में ब्रेस्ट टिश्यू अक्सर अधिक डेंस (सघन) होते हैं जबकि मैमोग्राम फैटी टिश्यू में बेहतर काम करता है।

डॉक्टर्स बताते हैं कि डेंस ब्रेस्ट टिश्यू के कारण मैमोग्राम टेस्ट के दौरान कैंसर के शुरुआती लक्षण छूट जाते हैं या रिपोर्ट गलत आ सकती है जिससे यह उतना फायदेमंद नहीं रह जाता। देरी से निदान होने के कारण भारत में लगभग 40 से 50 प्रतिशत महिलाएं इस बीमारी से अपनी जान गंवा देती हैं।
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अल्ट्रासाउंड और CBE क्यों हैं बेहतर विकल्प?
एक्सपर्ट्स के अनुसार भारतीय महिलाओं को केवल मैमोग्राम पर निर्भर रहने के बजाय अल्ट्रासाउंड जैसे विकल्पों को प्राथमिकता देनी चाहिए:
अल्ट्रासाउंड: डॉक्टर्स का मानना है कि डेंस ब्रेस्ट टिश्यू में जांच के लिए अल्ट्रासाउंड का विकल्प ज्यादा बेहतर है क्योंकि यह अधिक सटीक जानकारी प्रदान करता है।

सेल्फ ब्रेस्ट एग्जामिनेशन (SBE): संजय गांधी पीजीआई की एक स्टडी बताती है कि महिलाएं अगर हर महीने खुद अपने ब्रेस्ट की जांच करें तो वे शुरुआती बदलावों जैसे गांठ या निप्पल में चेंजेस को जल्दी पहचानकर तुरंत इलाज शुरू करा सकती हैं।
टारगेटेड इमेजिंग: किसी भी तरह की परेशानी महसूस होने पर टारगेटेड इमेजिंग करवाना आवश्यक है।
टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल की एक रिसर्च में भी यह पाया गया था कि क्लिनिकल ब्रेस्ट एग्जामिनेशन (CBE) के साथ मैमोग्राम को जोड़ने पर भी वांछित (Desired) डिटेक्शन नहीं हो सका और मौतें होती रहीं। इसलिए जागरूकता, नियमित SBE और सही इमेजिंग इस समस्या से निपटने की कुंजी है।
