प्रशांत किशोर के खुलासों से BJP में उथल-पुथल, सम्राट चौधरी के खिलाफ आरोपों से BJP की मुश्किलें बढ़ीं!
punjabkesari.in Friday, Oct 03, 2025 - 12:48 PM (IST)

नेशनल डेस्क: बिहार में भारतीय जनता पार्टी की राजनीति इन दिनों उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है। कभी नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार में 'छाया सहयोगी' की भूमिका निभाने वाली भाजपा, अब जब सत्ता में हिस्सेदार है, तब भी उसका नेतृत्व सवालों के घेरे में है। पार्टी के मौजूदा डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी पर उठ रहे आरोपों ने भाजपा के भीतर ही खलबली मचा दी है। हालात ऐसे बन गए हैं कि पार्टी के ही सीनियर नेता अब खुले तौर पर सम्राट चौधरी से सफाई मांग रहे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह और अश्विनी चौबे जैसे बड़े नेता चौधरी पर लगे आरोपों को हल्के में नहीं ले रहे।
सम्राट चौधरी पर आरोपों की बौछार, भाजपा नेताओं की चुप्पी टूटी
जन सुराज अभियान के प्रमुख प्रशांत किशोर ने सम्राट चौधरी पर बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं -- उम्र और शैक्षणिक डिग्री में गड़बड़ी, एक से ज्यादा नामों का इस्तेमाल, यहां तक कि हत्या जैसे मामलों से जुड़ा होना। इन आरोपों ने सम्राट की साख को झटका दिया है। आश्चर्य की बात ये है कि चौधरी ने अब तक कोई ठोस जवाब नहीं दिया है, जिससे मामला और गंभीर होता जा रहा है।
प्रशांत किशोर ने दावा किया कि सम्राट चौधरी महज 7वीं कक्षा पास हैं, फिर भी उनके पास D.Litt (डॉक्टर ऑफ लिटरेचर) जैसी डिग्री है। इस पर आरके सिंह ने सीधे सवाल उठाते हुए कहा है कि यदि सम्राट के पास मैट्रिक या ग्रेजुएशन की वैध डिग्री है तो वे सार्वजनिक करें। नहीं तो उन्हें अपने पद से हट जाना चाहिए क्योंकि इससे पार्टी की साख को नुकसान हो रहा है।
आरके सिंह और अश्विनी चौबे की दो टूक
आरके सिंह ने सम्राट से साफ शब्दों में जवाब मांगते हुए यह भी कहा कि अगर आरोप झूठे हैं तो उन्हें प्रशांत किशोर पर मानहानि का केस करना चाहिए। वरना, लोगों को लगेगा कि दाल में कुछ काला है। वहीं, अश्विनी चौबे का गुस्सा भी फूटा। उन्होंने सम्राट चौधरी पर अप्रत्यक्ष रूप से कटाक्ष करते हुए कहा कि जो लोग 'पिछले दरवाजे' से पार्टी में आते हैं, वे अक्सर पार्टी की छवि बिगाड़ते हैं। कुछ सुधर जाते हैं, पर जो नहीं सुधरते, उन्हें जनता सबक सिखा देती है।
चौबे ने सम्राट को आडवाणी जैसे आचरण की सीख देते हुए कहा कि जब लालकृष्ण आडवाणी पर हवाला कांड में आरोप लगे थे, तो उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था और फिर तभी लौटे जब वे अदालत से बरी हुए। यह राजनीतिक शुचिता का आदर्श उदाहरण था।
बिहार भाजपा की पुरानी बीमारी: नेतृत्व का संकट
बिहार भाजपा पर लंबे समय से यह आरोप लगता रहा है कि वह अपने स्वतंत्र नेतृत्व का विकास नहीं कर पाई। एक दौर में सुशील मोदी पार्टी का चेहरा थे, लेकिन उनके बाद कोई सर्वमान्य नेता खड़ा नहीं हुआ। डिप्टी सीएम जैसे अहम पद पर बैठे नेता भी पार्टी को कोई बड़ा जनाधार नहीं दिला सके।