सरकार का बड़ा दांव: 94 लाख गरीब परिवारों को मिलेगा 2-2 लाख रुपये, हर जाति-वर्ग को होगा लाभ
punjabkesari.in Sunday, Jun 22, 2025 - 11:12 AM (IST)

नेशनल डेस्क: बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने जनता को साधने के लिए एक और बड़ा कदम उठाया है। पहले वृद्धावस्था पेंशन में तीन गुना बढ़ोतरी की घोषणा के बाद अब सरकार ने 94 लाख गरीब परिवारों को आर्थिक मदद देने की योजना शुरू करने जा रही है। इसके तहत पात्र परिवारों के खाते में 2-2 लाख रुपये सीधे भेजे जाएंगे, ताकि वे स्वरोजगार शुरू कर सकें और आत्मनिर्भर बन सकें।
योजना की खास बातें
यह योजना राज्य की 2023 की जाति आधारित जनगणना में चिन्हित गरीब परिवारों के लिए बनाई गई है। इसमें जाति या समुदाय का कोई भेदभाव नहीं किया गया है। सवर्ण, पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, महादलित, मुस्लिम सभी गरीब परिवार इस योजना के अंतर्गत आएंगे।
2 लाख रुपये की यह मदद पूर्णतः अनुदान के रूप में दी जाएगी, जिसे लौटाने की जरूरत नहीं होगी। यदि लाभार्थी को आगे और सहायता की आवश्यकता होती है तो इस राशि को बढ़ाने का भी विकल्प खुला रखा गया है।
कौन होंगे पात्र?
इस योजना का लाभ उठाने के लिए कुछ प्रमुख पात्रता शर्तें तय की गई हैं:
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आवेदक गरीबी रेखा (BPL) के नीचे जीवन यापन कर रहा हो।
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उसका नाम बिहार की 2023 जातीय जनगणना में दर्ज पात्र परिवारों की सूची में होना चाहिए।
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बिहार का निवासी होना अनिवार्य है।
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आवेदन के साथ आधार कार्ड, आय प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज़ अनिवार्य होंगे।
किस उद्देश्य से दी जाएगी यह राशि?
सरकार का उद्देश्य केवल पैसे देना नहीं, बल्कि लोगों को खुद का रोजगार शुरू करने के लिए सक्षम बनाना है। इससे न केवल बेरोजगारी घटेगी, बल्कि ग्रामीण और निम्न वर्ग की आर्थिक स्थिति में भी सुधार आएगा। छोटे व्यापार, स्वरोजगार, कृषि से जुड़ी गतिविधियाँ और सेवा क्षेत्र में यह राशि सहारा बनेगी।
बिहार की जातीय तस्वीर क्या कहती है?
2023 की जाति आधारित जनगणना के अनुसार, बिहार की कुल जनसंख्या लगभग 13 करोड़ है। इसमें:
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अति पिछड़ा वर्ग (EBC) – 36.01%
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पिछड़ा वर्ग (OBC) – 27.12%
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अनुसूचित जाति (SC) – 19.65%
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अनुसूचित जनजाति (ST) – 1.68%
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सामान्य वर्ग (General) – 15.52%
मुख्य जातियों में यादव (14.26%), कुशवाहा (4.21%), ब्राह्मण (3.66%), राजपूत (3.45%), भूमिहार (2.86%), मुसहर (3.08%) सहित दर्जनों समुदाय शामिल हैं।
क्या है राजनीतिक संकेत?
नीतीश सरकार की यह योजना सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि राजनीतिक तौर पर भी एक बड़ी रणनीति मानी जा रही है। खासकर तब जब चुनाव नजदीक हैं और जातीय समीकरणों की सटीक गणना के आधार पर ही अधिकांश राजनीतिक दल अपने-अपने दांव चला रहे हैं।