भूमि अधिग्रहण पर फिर अध्यादेश लाने की तैयारी

punjabkesari.in Wednesday, Apr 01, 2015 - 12:52 AM (IST)

नई दिल्ली: सरकार ने विवादास्पद भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को दोबारा जारी करने का फैसला किया है। सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की आज यहां हुई बैठक में फैसला किया गया कि भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को कुछ संशोधन कर फिर से जारी किया जाए। ये संशोधन भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक पारित करते समय लोकसभा में किए गए थे।  

बैठक के बाद संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने संवाददाताओं के अध्यादेश पुन: जारी करने के बारे में पूछे गए सवाल का कोई सीधा उत्तर नहीं दिया, लेकिन कहा कि यह एक वैधानिक प्रक्रिया है और यह जारी है। सरकार ने बजट सत्र के पहले चरण के दौरान लोकसभा में भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक पेश किया था जिसे सदन ने 9 संशोधनों के साथ पारित किया था।

विपक्ष के कड़े विरोध को देखते हुए सरकार ने इस विधेयक को राज्यसभा में पेश नहीं किया था। संबंधित अध्यादेश की अवधि पांच अप्रैल को समाप्त हो रही है जिसके मद्देनजर अध्यादेश को फिर से जारी करना जरूरी है। इसके मद्देनजर सरकार कुछ दिन पूर्व ही राज्यसभा के बजट सत्र का सत्रावसान कर चुकी है।

कांग्रेस, वामपंथी दल, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, जनता दल यू समेत विभिन्न विपक्षी दल भूमि अधिग्रहण अध्यादेश तथा उसके स्थान पर लाए गए विधेयक का कड़ा विरोध कर रहे हैं। इन दलों के सांसदों ने बजट सत्र के पहले चरण के अंतिम दिन संसद से राष्ट्रपति भवन तक विरोध मार्च भी निकाला था और राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को एक ज्ञापन सौंपा था। कांग्रेस इस मुद्देे पर सरकार को घेरने के लिए 19 अप्रैल को राजधानी में एक विशाल किसान रैली का आयोजन भी कर रही है।

विपक्षी दलों का कहना है कि 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन कर मोदी सरकार किसानों का अहित कर रही है और उसने 1894 के कानून में बदलाव कर बनाए गए नए कानून की आत्मा ही मार दी है। दूसरी ओर सरकार का कहना है कि देश में विकास कार्यों को गति देने के लिए 2013 के कानून में संशोधन करना जरूरी हो गया था और इसमें किए गए संशोधन किसी भी तरह किसानों के खिलाफ नहीं है।

सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को इस संबंध में एक पत्र लिखकर इस मुद्देे पर खुली बहस की चुनौती भी दी थी। इसके जवाब में श्रीमती गांधी ने अपने पत्र में कहा कि इस संबंध में बहस की कोई गुंजाइश नहीं है और इस अध्यादेश के जरिए सरकार किसानों का पूरी तरह अहित कर रही है।


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