भारत में रेलवे प्रणाली का विकास: 150 सालों में भाप से लेकर वंदे भारत तक का सफर
punjabkesari.in Thursday, Feb 20, 2025 - 03:30 PM (IST)
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नेशनल डेस्क. भारत में ट्रेनों ने 150 साल से ज्यादा समय से परिवहन व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी का काम किया है। 19वीं सदी की भाप से चलने वाली ट्रेनों से लेकर अत्याधुनिक नांमो भारत और वंदे भारत जैसी ट्रेनों तक इनका सफर बहुत लंबा तय किया गया है। आज देश की मुख्यधारा की और मेट्रो ट्रेनों में हर साल 10 अरब से अधिक यात्री यात्रा करते हैं। इसके अलावा लगभग 1.6 अरब टन माल ढुलाई भी की जाती है, जो इन आंकड़ों को और भी महत्वपूर्ण बना देती है।
भारत की रेलवे प्रणाली में 8,000 से अधिक ट्रेन सेट, 15,000 इंजन, 80,000 यात्री कोच और 3,00,000 से अधिक माल ढुलाई वैगन शामिल हैं। इस विशाल संख्या में हर एक घटक बेहद महत्वपूर्ण है ताकि लोगों और सामान का निर्बाध परिवहन सुनिश्चित हो सके। प्रौद्योगिकी और निर्माण प्रक्रियाओं में सुधार ने कार्यकुशलता, विश्वसनीयता और यात्री सुविधा में कई बदलाव किए हैं।
इसके बावजूद ट्रेनों को भारी भार उठाना होता है और उनका पहनावा स्वाभाविक रूप से उनके जीवनचक्र का हिस्सा होता है। इसलिए यह आवश्यक है कि रखरखाव संचालन को सुव्यवस्थित किया जाए ताकि किसी भी प्रकार के विघटन को कम किया जा सके और इन महत्वपूर्ण संसाधनों की उच्च उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके।
पारंपरिक रेलवे प्रणालियाँ मुख्य रूप से यांत्रिक होती थीं, लेकिन डिजिटल तकनीकों के आगमन के साथ रखरखाव में भी बदलाव आया है। पहले की तुलना में अब हम समस्या आने पर समाधान खोजने के बजाय भविष्य में होने वाली समस्याओं का अनुमान लगाने वाले "पूर्वानुमान रखरखाव" (Predictive Maintenance) का प्रयोग कर रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप डाउनटाइम (काम न करने की अवधि) में बहुत कमी आई है। अब एक "सक्रिय जीवनचक्र आधारित मॉडल" अपनाया जा रहा है, जिसमें रखरखाव लागत को कुल स्वामित्व लागत में शामिल किया जाता है। यह तरीका पूरे रखरखाव प्रक्रिया को व्यवस्थित, समग्र और अधिक कुशल बना रहा है।