चंपारण सत्याग्रह के 100 साल- गांधी जी की अनोखी लड़ाई, न दागी तोप न बंदूक चलाई

punjabkesari.in Tuesday, Apr 11, 2017 - 02:08 PM (IST)

नई दिल्ली: चंपारण सत्याग्रह के सौ साल पूरे होने पर आज राज्यसभा में इस आंदोलन के प्रणेता महात्मा गांधी को याद किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सोमवार को कहा कि स्वच्छाग्रह और 'पंचामृत' के जरिए देश में बड़ा बदलाव करने की जरूरत है। चंपारण सत्याग्रह के शताब्दी के अवसर पर पीएम ने देश की जनता से अपील की कि स्वच्छता मिशन को सफल बनाकर को वे महात्मा गांधी को सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं।

ब्रिटिश सरकार से परेशान थी जनता
चंपारण की 19 लाख प्रजा के दुख-दर्द की है, जिनकी पीढ़ियां ब्रिटिश नील प्लांटरों की तिजोरियां भरने में तबाह होकर रह गई थीं जिनके घरों में अनाज का एक दाना भी नहीं होता, फिर भी वे अपने खेतों में धान-चावल के बदले इन परदेसी साहबों के लिए बहुत कम मेहनताने पर नील की फसल उगाते थे। इतने पर भी उनके शोषकों का मन नहीं भरता, वे बात-बात पर उन पर टैक्स लगाते और लगान न चुकाने पर उनकी खाल उधेड़ डालते। यह कहानी शेख गुलाब, शीतल राय, खेनहर राय, संत भगत और पीर मोहम्मद मूनिस जैसे अल्पज्ञात योद्धाओं की तो है ही, जिन्होंने अपना जीवन चंपारण के लोगों को इस शोषण से मुक्ति दिलाने में होम कर दिया।

चंपारण सत्याग्रह ने गांधी को गांधी ' महात्मा'
इस आंदोलन से जुड़े इतिहासकार और स्थानीय जानकार मानते हैं कि महात्मा गांधी का जन्म भले ही गुजरात के पोरबंदर में हुआ लेकिन चंपारण सत्याग्रह से ही भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की राजनीति में महात्मा गांधी की असली पहचान बनी। नील के किसानों पर हो रहे अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार के खिलाफ आंदोलन का बिगुल फूंकने के लिए महात्मा गांधी जब देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद, आचार्य कृपलानी और अनुग्रह नारायण सिंह के साथ चंपारण पहुंचे, तो उस वक्त की अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें मारने की एक ऐसी साजिश रची थी, जिसे सुनकर आज भी लोगों का दिल दहल उठता है। अंग्रेजी हुकूमत ने गांधी को खत्म करने का पूरा इंतजाम कर लिया था। वह तो शुक्र है उस गुमनाम नायक बत्तख मियां का, जिन्होंने महात्मा गांधी की जान बचा ली। अंग्रेजों ने बत्तख मियां के माध्यम से गांधी को विष मिले दूध देकर मारने की योजना बनाई थी। बत्तख मियां ने राष्ट्र और सत्याग्रह को सर्वोपरि रखते हुए गांधी को आगाह कर दिया कि इसमें जहर मिला हुआ है। बताया जाता है कि यह बात 1917 की है और इसके खुद गवाह देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद थे। बत्तख मियां को इस राष्ट्रवाद की कीमत भी चुकानी पड़ी और उन्हें कई तरीके से प्रताड़ित भी किया गया। 

प्रण लिया कि खत्म करवा कर रहेंगे नील की खेती
यह चंपारण सत्याग्रह ही था कि राजेंद्र प्रसाद, ब्रजकिशोर प्रसाद और मजहरूल हक जैसे नामी-गिरामी वकीलों का जुड़ाव स्वतंत्रता आंदोलन से हुआ और उनका पूरा जीवन बदल गया। अगर राजकुमार शुक्ल जबरन गांधी को चंपारण लेकर नहीं आये होते, तो यह सब होता भी तो किसी और रूप में होता. सतवरिया गांव के किसान राजकुमार शुक्ल स्वतंत्र व्यक्तित्व के स्वामी थे और यह बात उस इलाके के नील प्लांटर एसी एम्मन को खटकती थी। वे कई तरीके से राजकुमार शुक्ल को दबाने की कोशिश करते थे। उन्होंने शुक्ला जी की आलू की खेती उजाड़ दी। उन पर झूठा इल्जाम लगा कर तीन हफ्ते के लिए जेल की सजा करवा दी। इसके बाद राजकुमार शुक्ल ने प्रण कर लिया कि वे चंपारण से नील की खेती खत्म करवा कर ही दम लेंगे।

हासिल हुई बड़ी जीत
गांधी जी ने पूरे चंपारण में घूम कर किसानों और नील प्लांटरों के बयान लिए, उनकी इस गतिविधि से प्लांटर और प्रशासन दोनों घबराए हुए थे क्योंकि, किसानों को लगने लगा था कि उनका तारणहार आ गया है। गांधी जी की मौजूदगी और उनके सामने मोतिहारी के प्रशासन और अदालत को घुटने टेकते हुए देख कर चंपारण की रैयत का आत्मविश्वास काफी बढ़ गया था। प्लांटरों और प्रशासनिक अधिकारियों ने कई झूठे आरोप गढ़ कर गांधी को चंपारण से भगाने की कोशिश की. मगर उन्हें सफलता नहीं मिली. थक हार कर बिहार सरकार को चंपारण के मसले की जांच के लिए 10 जून, 1917 को सरकारी जांच समिति का गठन करना पड़ा और महात्मा गांधी को भी उस समिति का महत्वपूर्ण सदस्य बनाना पड़ा। समिति ने जांच की और किसानों के आरोप सही पाए गए। इस जांच के आधार पर कानून बना कर 4 मार्च, 1918 को तिनकठिया प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया और लगभग एक साल की कोशिशों के बाद चंपारण के किसानों को शोषण के अंतहीन चक्र से मुक्ति मिल गई।


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