आजादी के 78 साल बाद भी इस गांव में आज तक किसी ने नहीं डाला गया वोट, जानें अनोखी वजह
punjabkesari.in Thursday, Jun 26, 2025 - 12:31 PM (IST)

नेशनल डेस्क: भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, जहां हर नागरिक को वोट डालने का अधिकार है। लेकिन उत्तराखंड का एक गांव ऐसा भी है, जिसने आज़ादी के 78 सालों में कभी भी चुनाव में हिस्सा नहीं लिया। न यहां कोई बूथ सजा, न कोई वोट पड़ा। फिर भी गांव में विकास की कमी नहीं है। यह कहानी है नैनीताल जिले के तल्ला बोथों गांव की, जहां लोकतंत्र की एक अलग मिसाल देखने को मिलती है। यहां के लोग ना तो चुनाव का बहिष्कार करते हैं और ना ही व्यवस्था से नाराज हैं, फिर भी आज तक किसी ने वोट नहीं डाला। उत्तराखंड के इस गांव की खासियत यह है कि यहां हर बार प्रधान निर्विरोध चुना जाता है। यानी कोई भी चुनाव नहीं होता, कोई प्रचार नहीं होता और मतदाताओं को लाइन में लगने की जरूरत नहीं होती। गांव के लोग पहले ही आपस में मिल-बैठकर तय कर लेते हैं कि अगला प्रधान कौन होगा। जो व्यक्ति गांव की सेवा के लिए सबसे उपयुक्त लगता है, उसी को सब मिलकर चुन लेते हैं।
लोकतंत्र की यह मिसाल कैसे बनी?
गांव में एक परंपरा है कि कोई भी फैसला सर्वसम्मति से लिया जाए। जब ग्राम पंचायत चुनाव का वक्त आता है, तो गांव के बुजुर्ग और जिम्मेदार लोग बैठक करते हैं। इसमें सभी की राय से एक नाम पर सहमति बनाई जाती है। जो भी चुना जाता है वह न सिर्फ योग्य होता है बल्कि सेवा भाव से काम करता है। इसलिए बाकी कोई नामांकन दाखिल ही नहीं करता और वह व्यक्ति निर्विरोध प्रधान बन जाता है।
78 साल में 100 प्रधान, लेकिन एक भी वोट नहीं
रिपोर्ट्स के अनुसार अब तक करीब 100 बार गांव में प्रधान बदला गया है, लेकिन एक भी बार मतदान की जरूरत नहीं पड़ी। हर बार सर्वसम्मति से निर्णय हुआ। यह व्यवस्था इतनी मजबूत और सफल रही है कि किसी को चुनाव प्रक्रिया से शिकायत तक नहीं हुई।
क्या इस सिस्टम से फायदा भी होता है?
बिलकुल। गांव के लोग मानते हैं कि जब आपसी सहमति से प्रधान चुना जाता है तो चुनाव पर खर्च नहीं होता। न तो प्रचार पर पैसा खर्च होता है और न ही प्रशासनिक व्यवस्था पर। जो पैसा बचता है, उसका उपयोग गांव के विकास में किया जाता है। यही कारण है कि गांव में पक्की सड़कें हैं, बिजली और पानी की सुविधा है और सोलर लाइटें भी लगी हैं।
गांव का भूगोल और धार्मिक जुड़ाव
तल्ला बोथों गांव मशहूर नीब करौरी बाबा के कैंची धाम से महज 10 किलोमीटर दूर है। यह क्षेत्र आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी प्रसिद्ध है और यहां अक्सर पर्यटक और श्रद्धालु आते रहते हैं। इस धार्मिक और शांत वातावरण का भी असर गांव की परिपक्व सोच पर पड़ा है। यहां विवाद कम होते हैं और फैसले शांति से किए जाते हैं।