भगवान वाल्मीकि जी प्रकटोत्सव पर जानें, कैसे किया विश्व का पथ प्रदर्शन

punjabkesari.in Sunday, Oct 16, 2016 - 08:39 AM (IST)

हिन्दू संस्कृति के स्वरूप को बतलाने के लिए ‘वाल्मीकि-रामायण’ एक महान आदर्श ग्रंथ है और भगवान वाल्मीकि जी संस्कृत के आदिकवि हैं। उनकी रामायण कथा समूचे मानव समाज का कल्याण करने वाली तथा प्राचीन भारतीय संस्कृति और सभ्यता की अमूल्य निधि है।


भगवान वाल्मीकि जी बचपन से ही स्वाध्याय और तपस्या में लीन रहते थे।  यह  ‘वाल्मीकि रामायण’ की प्रथम पंक्ति ही बताती है : ‘तपस्स्वाध्यायनिरतं तपस्वी वाग्विदां वरम्।’’


‘विष्णुधर्मोत्तर पुराण’ के अनुसार ‘‘उन विशुद्ध ज्ञान वाले भगवान वाल्मीकि जी की ‘कवीश्वर’ के रूप में पूजा करनी चाहिए। वह तपोनिष्ठ  तथा शांत स्वरूप में विराजमान हैं। उन्होंने देश भर में विभिन्न स्थानों पर अपने आश्रमों में विद्या केंद्र स्थापित किए और वह इनके कुलपति थे। यहां दूर-दूर से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। 


भगवान वाल्मीकि जी रचित ‘रामायण कथा’ भारतीय चिंतन का वह मेरुदंड है जिसमें भारतीय साहित्य, कला, संस्कृति के सभी आदर्श विद्यमान हैं जिन्होंने भारतीय जन जीवन को ही नहीं वरन सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित किया। आज हम ‘वाल्मीकि रामायण’ का अनुसरण कर अपनी विकृत सामाजिक व्यवस्था को दूर कर एक ‘सभ्य समाज’ का निर्माण कर सकते हैं।


करुणा के सागर:  एक दिन भगवान वाल्मीकि ने तमसा नदी के तट पर क्रौञ्च पक्षियों के एक जोड़े को परस्पर आनंदमग्न देखा किन्तु उसी क्षण उनके समीप से एक सनसनाता हुआ बाण निकला जिसने उनमें से एक ‘नर-क्रौञ्च’ को मार डाला। ‘क्रौञ्च’ खून से लथपथ भूमि पर आ पड़ा और उसे मृत देख कर ‘क्रौञ्ची’ ने करुण क्रंदन किया जिसे सुनकर इनका करुणापूर्ण हृदय द्रवित हो उठा और उसी शोक के कारण भगवान वाल्मीकि जी के मुखारविंद से लोक कल्याणार्थ पृथ्वी का ‘आदि’ (प्रथम) ‘श्लोक’ प्रकट हुआ जिसका अर्थ है : ‘हे निषाद (शिकारी)! तू भी अनंत काल तक प्रतिष्ठा को प्राप्त नहीं करेगा क्योंकि तूने संगिनी के प्रेम में मग्न एक ‘क्रौञ्च’ पक्षी का वध कर दिया है।’ 

जब भगवान वाल्मीकि बार-बार उस ‘श्लोक’ के चिंतन में ध्यानमग्न थे तभी प्रजापति ‘ब्रह्मा’ जी इनके आश्रम आ पहुंचे और कहा, ‘‘हे मुनिवर! विधाता की इच्छा से ही महाशक्ति सरस्वती आपकी जिह्वा पर श्लोक बनकर प्रकट हुई हैं इसलिए आप इसी ‘छंद’ में श्री रामचंद्र जी के जीवन-चरित्र की रचना करें।’’


तदुपरांत भगवान वाल्मीकि जी ने  अपनी योग-साधना तथा तपबल के प्रभाव से श्री रामचंद्र, सीता माता व अन्य पात्रों के सम्पूर्ण जीवन-चरित्र को प्रत्यक्ष देखा और फिर ‘रामायण महाकाव्य’ की रचना की।


भगवान वाल्मीकि जी ने हमें जीवन कैसे जीना है, समाज व परिवार में कैसे रहना है जैसे मुख्य बिंदू हमें रामायण के भिन्न-भिन्न पात्रों के ‘चरित्र’ द्वारा साकार करके समझाया है। 


रामायण के नायक श्री राम हैं जिनके माध्यम से उन्होंने ‘राजधर्म’, ‘प्रजाधर्म’ तथा ‘गृहस्थ धर्म आदि का जो चित्र खींचा है, वह विलक्षण है।  
 


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