हनुमान जयंती: जानें, कुछ खास जो कम ही लोग जानते हैं

punjabkesari.in Monday, Nov 09, 2015 - 08:56 AM (IST)

श्री हनुमंत लाल जी श्री रामायण के प्रमुख पात्रों में से एक, प्रभु राम के अनन्य सेवक भक्त, वेदाध्यायी, राक्षस संहारी वानर देश के राजा केसरी एवं अंजनी के पुत्र हैं, यद्यपि इनके प्राकट्य के बारे में कई पौराणिक एवं अध्यात्मिक गाथाएं भी हैं। स्वयं राजा केसरी अति बलवान एवं बुद्धिमान थे, हाथियों के एक झुंड से ऋषियों की रक्षा करने पर प्रसन्न होकर आशीर्वाद स्वरूप उन्होंने उनको यह आशीर्वाद दिया था, ‘‘तुम्हारे ऐसा पुत्र होगा जो सहस्र हाथियों के समान बलशाली एवं अति विद्वान होगा।’’
 
भगवान विष्णु जब अपने आशीर्वाद को सत्य करने रामावातर होने को उद्यत हुए तब समस्त देवी-देवताओं को ब्रह्मा जी ने वानर रूप में भूलोक गमन करने को कहा। त्रिलोकी के नाथ भगवान शंकर भी प्रभु श्री राम को अपना सर्वस्व मानते थे, वह भी जब देवताओं का साथ देने को हुए तो मैया पार्वती को यह अच्छा न लगा, अपने स्वामी को उन्होंने स्मरण कराया, ‘‘हे नाथ आपने तो रावण को उस द्वारा अपने दस शीश सहर्ष काट कर आपको समर्पित करने पर आशीर्वाद स्वरूप उसे अजर, अमर रहने का वर दे रखा है, उस वचन का क्या होगा प्रभु?’’
 
पौराणिक गाथा अनुसार तब भोले शंकर ने कहा, ‘‘देवी मैं अपने ईष्ट प्रभु श्रीराम की सेवा के लिए अपने ग्यारहवें अंश से हनुमान जी के रूप में अवतार लेकर अपने स्वामी की ही सेवा करूंगा।’’ तभी तो भगवान श्री राम भी भगवान शंकर के प्रति अगाध श्रद्धा एवं प्रेम लिए कहते हैं-
 
शिब द्रोही मम् दास कहावा
सो नर सपने हों मुझे न पावा।
 
एक बार राजा केसरी पत्नी अंजनी जब श्रृंगारयुक्त वन में विहार कर रही थीं तब पवन देव ने उनका स्पर्श किया, जैसे ही माता कुपित होकर शाप देने को उद्यत हुईं, वायुदेव ने अति नम्रता से निवेदन किया, ‘‘मां! शिव आज्ञा से मैंने ऐसा दु:साहस किया परन्तु मेरे इस स्पर्श से आपको पवन के समान द्युत गति वाला एवं महापराक्रमी तेजवान पुत्र होगा।’’
 
इसी पवन वेग जैसी शक्ति युक्त होने से सूर्य के साथ उनके रथ के समानांतर चलते-चलते अनन्य विद्याओं एवं ज्ञान की प्राप्ति करके अंजनी पुत्र पवन पुत्र हनुमान कहलाए। इंद्र द्वारा वज्र के प्रहार से इनकी हनु टेढ़ी हो गई, मूर्छित अवस्था में जब इन्हें ब्रह्मा जी के पास लाया गया तो समस्त देवताओं ने क्षमायाचना करते हुए आशीर्वाद स्वरूप इन्हें अपनी दिव्य शक्तियां प्रदान कीं। भगवान सूर्य नारायण ने भी अपने तेज का सौवां हिस्सा इन्हें आशीर्वाद स्वरूप दिया। ऐसे बलशाली पराक्रमी तेजस्वी देवता को अभिमान लेशमात्र भी छू नहीं पाया।
 
तुलसीकृत श्री रामायण में इनका चरित्र सबसे ऊंचा है इसीलिए अपनी नि:स्वार्थ सेवा निष्ठा के कारण अपने स्वामी प्रभु श्रीराम की सर्वाधिक निकटता उन्हीं को प्राप्त हुई। जो जन इनकी नित्य श्रद्धा निष्ठा से पूजा-अर्चना, श्री हनुमान चालीसा का नित्य 11 बार पाठ अथवा इनके स्वामी के प्रति इन्हीं की तरह से श्रद्धा भाव रखता है ऐसे जीव पर सरल सहज हनुमान जी कृपा करके उसके संकट दूर करते हैं और संकटमोचन कहलाते हैं।

—ज्योति मर्मज्ञ भगतराम हांडा

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