सऊदी अरब-रूस की बढ़ रही नजदीकी, टेंशन में अमेरिका

punjabkesari.in Friday, Oct 18, 2019 - 05:33 PM (IST)

दुबईः इस हफ्ते रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का सऊदी अरब में वहां जोरदार स्वागत किया गया। उन्हें 12 बंदूकों की सलामी दी गई। समारोह में किंग सलमान बिन अब्दुल अजीज अल सउद और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन-सलमान भी शामिल थे। उत्तरी सीरिया में कुर्दों को उनके हाल पर छोड़ने के बाद सऊदी अरब ने रूस के साथ कई द्विपक्षीय समझौते किए और क्षेत्रीय स्थिति की समीक्षा भी की गई। अब चर्चा ये है कि क्या सऊदी अरब और रूस करीब आ रहे हैं और इसकी वजह क्या है ?
 

20 से भी अधिक समझौतों की घोषणा
दरअशल शीत युद्ध के दौरान सऊदी अरब के बेहद गंभीर माने जाने वाले कुछ लोग रूसी नेताओं को 'गॉडलेस कम्युनिस्ट' कहा करते थे। तब यह अकल्पनीय था कि किसी रूसी नेता का सऊदी अरब में तहे दिल से स्वागत होता लेकिन चीजें अब बहुत बदल चुकी हैं और पुतिन का सऊदी में स्वागत इसका सबूत है। राष्ट्रपति पुतिन अपने 12 वर्षों के कार्यकाल में पहली बार सऊदी अरब गए। यह दौरा जितना अभूतपूर्व था उतना ही बहुप्रचारित भी। उनके साथ व्यापार, सुरक्षा और रक्षा अधिकारियों का एक बड़ा प्रतिनिधिमंडल गया था, जिसने वहां 2 अरब डॉलर के द्विपक्षीय सौदे किए और इस दौरान 20 से भी अधिक समझौतों की घोषणा की गई। सऊदी अरब ने रूस को 14 सितंबर को सरकारी तेल कंपनी अरामको पर हुए ड्रोन हमलों में चल रही अंतरराष्ट्रीय जांच में भी शामिल होने का न्योता दिया।

 

अमेरिका के लिए खतरे की घंटी
रक्षा मामलों में रूस की एयर डिफेंस मिसाइल एस-400 की खरीद और भविष्य में उसकी तैनाती पर भी संभावित चर्चा हुई जो कि अमेरिका के लिए खतरे की घंटी है और एक राजनयिक झटके के समान है। जब 2017 में तुर्की ने रूस से एस-400 मिसाइल डिफेन्स सिस्टम खरीदने का सौदा किया था तो अमेरिका ने कहा था कि यदि तुर्की ऐसा करता है तो वो एफ-35 युद्धक विमान देने के सौदे को रद्द कर देगा। बीते दिनों रूस के साथ अपने सौदे पर तुर्की आगे बढ़ा तो अब अमेरिका ने उसके साथ एफ35 के सौदे को रद्द कर दिया है। सऊदी अरब और रूस के बीच जून 2018 से ही द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि हुई है और हाल ही में दोनों के बीच तेल उत्पादन पर प्रतिबंध लगाने को लेकर हुए सहयोग के बाद तेल की वैश्विक कीमतों में इजाफा हुआ है। व्लादिमीर पुतिन के इस दौरे के दौरान ही रूसी प्रत्यक्ष निवेश कोष (आरडीआईएफ) ने भी निवेश को लेकर घोषणाएं की हैं।

 

सऊदी और रूस के बीच संबंधों में गर्मजोशी के संकेत
ये सभी सऊदी अरब और रूस के बीच संबंधों में गर्मजोशी के संकेत देते हैं जो कि 1980 के दशक में अफग़ान मुजाहिदीन को लेकर तल्ख थीं। स्पष्ट शब्दों में कहें तो आज सऊदी अरब को अमेरिका और पश्चिम के देशों पर उतना भरोसा नहीं रह गया जितना वो पहले किया करता था। लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं कि वो रूस पर भरोसा करने लगा है। लेकिन मध्य-पूर्व में इस एक दशक की घटनाओं से सऊदी अरब थिंक टैंक इस पर फिर से विचार कर रहे हैं। सबसे बड़ा झटका अरब स्प्रिंग प्रोटेस्ट 2011 से लगा। अमेरिकी दबाव में जिस तेजी से तीन दशक तक मिस्र के राष्ट्रपति रहे होस्नी मुबारक की सत्ता खत्म हुई उससे सऊदी अरब और खाड़ी के अन्य साम्राज्य में खौफ बैठ गया।इसके विपरीत, वे इस पर भी ध्यान नहीं दे सके कि रूस चारों ओर से घिरे मध्य-पूर्व के सहयोगी सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद के समर्थन में खड़ा है। इसके बाद अगला झटका तब लगा जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2015 में ईरान परमाणु समझौता को समर्थन दिया था।

अमेरिका के अव्यवहारिक दृष्टिकोण को लेकर निराश सऊदी
सऊदी अरब इससे बेहद असहज हुआ था। उन्हें अंदेशा हुआ, जो कि सही है कि ओबामा प्रशासन की मध्य-पूर्व में रूचि खत्म हो रही है। जब नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने 2017 में अपने पहले विदेशी दौरे के लिए सऊदी अरब को चुना तो उन्हें बहुत खुशी हुई। अमेरिका के साथ उनके संबंध पटरी पर लौटते दिखे जब अरबों डॉलर के सौदों की घोषणा की गई।लेकिन अक्टूबर 2018 में सऊदी पत्रकार जमाल खाशोगी की सऊदी सरकार के एजेंटों द्वारा हत्या के बाद दुनिया भर में इसकी बड़े पैमाने पर आलोचना की गई। सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की इसमें संदिग्ध भागीदारी को लेकर पश्चिम के नेताओं ने उनसे दूरियां बनानी शुरू कर दीं। ब्यूनस आयर्स में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में वे अलग-थलग पड़ गए। लेकिन यहां पुतिन उनसे बहुत उत्साह से मिले। हालांकि राष्ट्रपति ट्रंप ने सऊदी नेतृत्व के साथ अच्छे संबंध की वकालत की लेकिन अरब प्रशासन अब भी इस क्षेत्र के प्रति अमेरिका के अप्रत्याशित और अव्यवहारिक दृष्टिकोण को लेकर निराश है।

सऊदी अरब घटा रहा पश्चिम पर अपनी निर्भरता
 इस हफ्ते सऊदी अरब के ब्रिटेन में राजदूत प्रिंस खालिद बिन बनदर ने उत्तरी सीरिया में तुर्की की घुसपैठ को 'आपदा' बताया है। रूस के साथ संबंधों में आई गर्मी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि "पश्चिमी देशों की तुलना में रूस पूर्व के देशों को बेहतर समझता है।" सीरिया में गृह युद्ध के आठ सालों के दौरान रूस ने असद शासन को बचाने में मदद पहुंचाई है। उसने न केवल अपने आधुनिक सैन्य हथियारों का प्रदर्शन किया बल्कि साथ-साथ रणनीतिक पैरे भी पसारे हैं। अमेरिका ने सऊदी अरब एयर डिफेंस को सैन्य उपकरण बेचे, जो 14 सितंबर को अरामको पर हुए ड्रोन हमलों को रोकने में नाकाम रहे। अमेरिका और सऊदी दोनों के संबंध खाशोज्जी हत्याकांड के बाद भी असहज हुए हैं। सऊदी और खाड़ी के उसके सहयोगी देश पश्चिम पर अपनी निर्भरता को कम करने की कोशिश कर रहे हैं।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Tanuja

Recommended News

Related News