इस देश के भिखारी भी हुए डिजिटल-कैशलेस, छुट्टे नही का बहाना हुआ खत्म

punjabkesari.in Tuesday, Jul 03, 2018 - 02:34 PM (IST)

इंटरनैशनल डेस्कः क्या आपने कभी सुना है कि भिखारी मोबाइल पेमेंट यूज करके भीख मांग रहे हो। सुनकर ही अजीब लगेगा ना पर ये सच है। भारत में पिछले कुछ सालों में डिजिटल इंडिया, कैशलेस ट्रांजैक्शन की खूब बातें हो रही हैं, लेकिन इस मामले में चीन काफी आगे बढ़ चुका है।

खबरों के मुताबिक चीन के भिखारी मोबाइल पेमेंट जैसी डिजिटल प्रणाली का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं, क्योंकि इससे उनको भीख ज्यादा मिल रही है। चीन के पर्यटन स्थलों और सबवे स्टेशनों के आसपास ऐसे तमाम भिखारी देखे जा सकते हैं, जो डिजिटल पेमेंट या क्यूआर कोड सिस्टम से लैस होते हैं। असल में डिजिटल पेमेंट होने का एक फायदा यह है कि जिन लोगों के पास खुले नहीं होते वे भी भीख दे सकते हैं। फुटकर का चक्कर न होने की वजह से भिखारियों को ज्यादा भीख मिलती है। कोई यह बहाना नहीं बना पाता कि छुट्टे नहीं है।

चीन में अब ऐसे बहुत से भिखारी देखे जा रहे हैं, जिनके कटोरे में क्यूआर कोड का प्रिंटआउट होता है। भिखारी लोगों से यह अनुरोध करते हैं कि वे अलीबाबा ग्रुप के अलीपे या टैन्सेंट के वीचैट वॉलेट के माध्यम से इन कोड को स्कैन कर उन्हें भीख दें। एक चीनी चैनल के मुताबिक इस पूरी व्यवस्था में बाजार आकर जुड गया है। कई तरह के स्पांसर्ड कोड आ गए है। भिखारी को अगर कोई कुछ न दे, लेकिन सिर्फ उसके स्पांसर्ड क्यूआर कोड को स्कैन कर दे, तो भी उसे कुछ न कुछ रकम मिल जाती है।

असल में कई स्थानीय स्टार्ट-अप और छोटे कारोबारी भिखारी के क्यूआर कोड के हर स्कैन के बदले उसे एक निश्चित रकम प्रदान करते हैं।ऐसे हर स्कैन के माध्यम से कारोबारियों को लोगों के डेटा मिल जाते हैं। इस डेटा को कंपाइल कर बाजार में बेचा जा सकता है। इस तरह अब डिजिटल और कैशलेस सिस्टम से हफ्ते में 45 घंटे भीख मांगकर चीनी भिखारी 4500 युआन (करीब 47,000 रुपये) से ज्यादा कमा लेते हैं। हालांकि, चीन के हिसाब से यह बहुत ज्यादा नहीं है, यह वहां के न्यूनतम मजदूरी के बराबर है।


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Isha

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