Vedic astrology past life analysis: ज्योतिष से जानें, पूर्वजन्म के दोष कहीं आपकी परेशानी का कारण तो नहीं

punjabkesari.in Thursday, May 11, 2023 - 11:55 AM (IST)

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Past life sins astrology: मनुष्य की मृत्यु के समय जो कुंडली बनती है, उसे पुण्य चक्र कहते हैं। इससे मनुष्य के अगले जन्म की जानकारी होती है। मृत्यु के बाद उसका अगला जन्म कब और कहां होगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। जातक-पारिजात में मृत्युपरांत गति के बारे में बताया गया है। यदि मरण काल में लग्न में गुरु हो तो जातक की गति देवलोक में, सूर्य या मंगल हो तो मृत्युलोक, चंद्रमा या शुक्र हो तो पितृलोक और बुध या शनि हो तो नरक लोक में जाता है। यदि बारहवें स्थान में शुभ ग्रह हों, द्वादशेश बलवान होकर शुभ ग्रह से दृष्टि होने पर मोक्ष प्राप्ति का योग होता है। यदि बारहवें भाव में शनि, राहु या केतु की युति अष्टमेश के साथ हो, तो जातक को नरक की प्राप्ति होती है। जन्म कुंडली में गुरु और केतु का संबंध द्वादश भाव से होने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। पत्रिका में गुरु, शनि और राहू की स्थिति आत्माओं का सम्बन्ध पूर्व कर्म के कर्मों से प्राप्त फल या प्रभाव बतलाती है 

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How to know about previous birth from horoscope: गुरु यदि लग्न में हो तो पूर्वजों की आत्मा का आशीर्वाद या दोष दर्शाता है। अकेले में या पूजा करते वक्त उनकी उपस्थिति का आभास होता है। ऐसे व्यक्ति को अमावस्या के दिन दूध का दान करना चाहिए।

दूसरे अथवा आठवें स्थान का गुरु दर्शाता है कि व्यक्ति पूर्व जन्म में सन्त या सन्त प्रकृति का या और कुछ अतृप्त इच्छाएं पूर्ण न होने से उसे फिर से जन्म लेना पड़ा। ऐसे व्यक्ति पर अदृश्य प्रेत आत्माओं के आशीर्वाद रहते हैं। अच्छे कर्म करने तथा धार्मिक प्रवृति से समस्त इच्छाएं पूर्ण होती हैं। ऐसे व्यक्ति सम्पन्न घर में जन्म लेते हैं। उत्तरार्ध में धार्मिक प्रवृत्ति से पूर्ण जीवन बिताते हैं। उनका जीवन साधारण परंतु सुखमय रहता है और अन्त में मौत को प्राप्त करते हैं।

गुरु तृतीय स्थान पर हो तो यह माना जाता है कि पूर्वजों में कोई स्त्री सती हुई है और उसके आशीर्वाद से सुखमय जीवन व्यतीत होता है किन्तु शापित होने पर शारीरिक, आर्थिक और मानसिक परेशानियों से जीवन यापन होता है। कुल देवी या मां भगवती की आराधना करने से ऐसे लोग लाभान्वित होते हैं।

गुरु चौथे स्थान पर होने पर जातक ने पूर्वजों में से वापस आकर जन्म लिया है। पूर्वजों के आशीर्वाद से जीवन आनंदमय होता है। शापित होने पर ऐसे जातक परेशानियों से ग्रस्त पाये जाते हैं। इन्हें हमेशा भय बना रहता है। ऐसे व्यक्ति को वर्ष में एक बार पूर्वजों के स्थान पर जाकर पूजा-अर्चना करनी चाहिए और अपने मंगलमय जीवन की कामना करनी चाहिए।

गुरु नवें स्थान पर होने पर बुजुर्गों का साया हमेशा मदद करता रहता है। ऐसा व्यक्ति माया का त्यागी और सन्त समान विचारों से ओतप्रोत रहता है। ज्यों-ज्यों उम्र बढ़ती जाती है वह बली, ज्ञानी बनता जाएगा। ऐसे व्यक्ति की बददुआ भी नेक असर देती है।

गुरु का दसवें स्थान पर होने पर व्यक्ति पूर्व जन्म के संस्कार से सन्त प्रवृत्ति, धार्मिक विचार, भगवान पर अटूट श्रद्धा रखता है। दसवें, नवें या ग्यारहवें स्थान पर शनि या राहु भी है, तो ऐसा व्यक्ति धार्मिक स्थल या न्यास का पदाधिकारी होता है या बड़ा सन्त। दुष्ट प्रवृत्ति के कारण बेइमानी, झूठ और भ्रष्ट तरीके से आर्थिक उन्नति करता है, किन्तु अन्त में भगवान के प्रति समर्पित हो जाता है।

ग्यारहवें स्थान पर गुरु बतलाता है कि व्यक्ति पूर्व जन्म में तंत्र-मंत्र गुप्त विद्याओं का जानकार या कुछ गलत कार्य करने से दूषित प्रेत आत्माएं पारिवारिक सुख में व्यवधान पैदा करती हैं। मानसिक अशान्ति हमेशा रहती है। राहू की युति से विशेष परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति को मां काली की आराधना करनी चाहिए और संयम से जीवन यापन करना चाहिए।

बारहवें स्थान पर गुरु, गुरु के साथ राहु या शनि का योग पूर्वजन्म में इस व्यक्ति द्वारा धार्मिक स्थान या मंदिर तोड़ने का दोष बतलाता है और उसे इस जन्म में पूर्ण करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति को अच्छी आत्माएं दृश्य रूप से साथ देती हैं। इन्हें धार्मिक प्रवृत्ति से लाभ होता है। गलत खान-पान से तकलीफों का सामना करना पड़ता है।

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शनि का लग्न या प्रथम स्थान पर होना दर्शाता है कि यह व्यक्ति पूर्वजन्मों में अच्छा वैद्य या पुरानी वस्तुओं जड़ी-बुटी, गूढ़ विद्याओं का जानकार रहा होगा। ऐसे व्यक्ति को अच्छी अदृश्य आत्माएं सहायता करती हैं। इनका बचपन बीमारी या आर्थिक परेशानी पूर्ण रहता है। ये ऐसे मकान में निवास करते हैं, जहां पर प्रेत-आत्माओं का निवास रहता है। उनकी पूजा-अर्चना करने से लाभ मिलता है।

शनि दूसरे स्थान पर हो तो माना जाता है कि ऐसा व्यक्ति पूर्व जन्म में किसी व्यक्ति को अकारण सताने या कष्ट देने से उनकी बद्दुआ के कारण आर्थिक, शारीरिक पारिवारिक परेशानियां भोगता है। राहु का सम्बन्ध होने पर निद्रारोग, डरावने स्वप्न आते हैं या किसी प्रेत आत्मा की छाया उदृश्य रुप से प्रत्येक कार्य में रुकावट डालती है। ऐसे व्यक्ति मानसिक रुप से परेशान रहते हैं।

शनि या राहु तीसरे या छठे स्थान पर हो तो अदृश्य आत्माएं भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पूर्वाभास करवाने में मदद करती हैं। ऐसे व्यक्ति जमीन संबंधी कार्य, घर-जमीन के नीचे क्या है, ऐसे कार्य में ज्ञान प्राप्त करते हैं। ये लोग कभी-कभी अकारण भय से पीड़ित पाये जाते हैं।

चौथे स्थान पर शनि या राहु पूर्वजों का सर्पयोनी में होना दर्शाता है। सर्प की आकृति या सर्प से डर लगता है। इन्हें जानवर या सर्प की सेवा करने से लाभ होता है। पेट सम्बन्धी बीमारी के इलाज से सफलता मिलती है।

पांचवें स्थान पर शनि या राहु की उपस्थिति पूर्व जन्म में किसी को घातक हथियार से तकलीफ पहुंचाने के कारण मानी जाती है। इन्हें सन्तान संबंधी कष्ट उठाने पड़ते हैं। पेट की बीमारी, संतान देर से होना इत्यादि परेशानियां रहती हैं।

सातवें स्थान पर शनि या राहू होने पर पूर्व जन्म संबंधी दोष के कारण आंख, शारीरिक कष्ट, परिवारिक सुख में कमी महसूस करते हैं । धार्मिक प्रवृत्ति और अपने इष्ट की पूजा करने से लाभ होता है।

आठवें स्थान पर शनि या राहु दर्शाता है कि पूर्व जन्म में किसी व्यक्ति पर तंत्र-मंत्र का गलत उपयोग करने से अकारण भय से ग्रसित रहता हैं। इन्हें सर्प चोर मुर्दों से भय बना रहता है। इन्हें दूध का दान करने से लाभ होता है। 

नवें स्थान पर शनि पूर्व जन्म में दूसरे व्यक्तियों की उन्नति में बाधा पहुंचाने का दोष दर्शाता है। ऐसे व्यक्ति नौकरी में विशेष उन्नति नहीं कर पाते हैं।

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शनि का बारहवें स्थान पर होना सर्प के आशीर्वाद या दोष के कारण आर्थिक लाभ या नुकसान होता है। ऐसे व्यक्ति को सर्पाकार चांदी की अंगुठी धारण करनी चाहिए। ऐसे लोग सर्प की पूजा करने से लाभान्वित होते हैं। भगवान शंकर पर दूध पानी चढ़ाने से भी लाभ मिलता है।

जन्म पत्रिका के किसी भी घर में राहु और शनि की युति है, ऐसा व्यक्ति बाहर की हवाओं से पीड़ित रहता है। इनके शरीर में हमेशा भारीपन रहता है, पूजा-अर्चना के वक्त अबासी आना आलसी प्रवृत्ती, क्रोधी होने से दोष पाए जाते हैं।

कुंडली के पंचम भाव के स्वामी ग्रह से जातक के पूर्वजन्म के निवास का पता चलता है। पुनर्जन्म में जातक की दिशा जन्म कुंडली के पंचम भाव में स्थित राशि के अनुसार जातक के पूर्व जन्म की दिशा का ज्ञान होता है। पुनर्जन्म में जातक की जाति जन्म कुंडली में पंचमेश ग्रह की जो जाति है, वही पूर्व जन्म में जाती है।

वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड राष्ट्रीय गौरव रत्न से विभूषित
पंडित सुधांशु तिवारी
9005804317

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Content Writer

Niyati Bhandari

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