इस मंत्र से तुलसी पर चढ़ाएं जल, घर की अनबन से लेकर जेब की तंगी तक होगी दूर

punjabkesari.in Friday, May 29, 2020 - 09:09 AM (IST)

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Tulsi Mantra: अपने घर में एक तुलसी का पौधा जरूर लगाएं। इसे उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्वी दिशा में लगाएं या फिर घर के सामने भी लगा सकते हैं। पारंपरिक ढंग के बने मकानों में रहने वाले ज्यादा सुखी और शांत रहते थे। इसका एक बड़ा कारण तुलसी चौरा, क्यारी और वहां सुबह के वक्त चढ़ाया जाने वाले जल के अलावा शाम के समय रखा गया दीप होता था।

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मान्यता है कि तुलसी का पौधा घर में होने से घर वालों को बुरी नजर प्रभावित नहीं कर पाती और अन्य बुराइयां भी घर और घर वालों से दूर ही रहती हैं। तुलसी का पौधा घर का वातावरण पूरी तरह पवित्र और कीटाणुओं से मुक्त रखता है। इसके साथ ही देवी-देवताओं की विशेष कृपा भी उस घर पर बनी रहती है। 

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तुलसी दर्शन करने पर समस्त पापों का नाश होता है, स्पर्श करने पर शरीर पवित्र होता है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचने पर यमराज को भी भय पहुंचाती है, तुलसी का पौधा लगाने से जातक भगवान के समीप आता है। तुलसी को भगवद चरणों में चढ़ाने पर मोक्ष रूपी फल प्राप्त होता है। गले में तुलसी की माला धारण करने से शरीर में विद्युतशक्ति का प्रवाह बढ़ता है तथा जीव-कोशों द्वारा धारण करने के सामर्थ्य में वृद्धि होती है। अंत काल के समय तुलसीदल या आमलकी को मस्तक या देह पर रखने से नरक का द्वार बंद हो जाता है। द्वादशी, रविवार, सूर्य या चंद्र ग्रहण काल में तुलसी का पत्ता नहीं तोड़ना चाहिए। 

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घर-परिवार में रहती है अनबन, सता रहे हैं रोग या जेब में तंगी की समस्या से जूझ रहे हैं तो करें इन विशेष मंत्रों से तुलसी का पूजन।

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जल चढ़ाते समय करें इस मंत्र का जाप-
महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।। 

तुलसी पूजा के समय करें इस मंत्र का पाठ-
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी। 
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमनः प्रिया।। 
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्। 
तुलसी भूर्महालक्ष्मीः पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।

तोड़ने से पहले तुलसी मां से अनुमति लेनी चाहिए या इस मंत्र का उच्चारण करें-
ॐ सुभद्राय नमः
ॐ सुप्रभाय नमः

मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां

तुलसी स्तुति
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः 
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।

 

 


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Niyati Bhandari

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