इस मंत्र के बिना नहीं पूरी नहीं मानी जाती पूजा
punjabkesari.in Wednesday, Jul 31, 2019 - 04:33 PM (IST)

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हिंदू धर्म में पूजा करना आवश्यक है। इससे संबंधित शास्त्रों व ग्रंथों में कई नियम आदि भी बताए गए हैं। जिनके बारे में आधे से ज्यादा लोगों को पती नहीं है और जिन्हें पता है उनमें कुछ जान बूझकर तो कुछ अनजाने में इनको नहीं अपनाते हैं। उन्हें लगता है कि जिस विधि से वो पूजा आदि कर रहे हैं वही सही है। मगर बता दें ऐसा नहीं है। ज्योतिष विद्वानों के अनुसार शास्त्रों में दिए गए हर नियम को अपनाना आवश्यक होता है। अन्यथा पूजन का फल नहीं मिलता। तो आइए आपको बताते हैं ज्योतिष शास्त्र में बताए गए एक ऐसे मंत्र के बारे में जिसका हर पूजा में जाप करना अति आवश्यक होता है।
हर धर्म के कुछ नियम या कायदे होते हैं, ठीक वैसे ही कुछ सनातन धर्म के भी हैं। यहां तंत्र-मंत्र और यंत्र तीनों की अवधारणा को स्वीकार किया गया है। मंत्र पूरी तरह से वैदिक तरीके से चलते हैं, हालांकि कुछ मंत्र तांत्रिक भी होते हैं लेकिन अधिकांशत: मंत्रों का परिचालन पूर्णत: वैदिक तरीके से ही किया जाता है। इन्हें जपने की विधि वैसे तो पौराणिक काल से ही तय कर दी गई थी, मगर वर्तमान दौर में इसे फेरबदल करके ही इन्हें अपनाया जाता है।
कुछ रिवाजों और विधि में तो हम अपने अनुसार फेरबदल कर चुके हैं लेकिन कुछ बातें वैदिक काल से ही चली आ रही हैं जिनका अनुसरण अत्यंत आवश्यक है। इसमें सबसे ज़रूरी है हर पूजन से पहले स्वस्ति वाचन का पाठ। मान्यता है इस चमत्कारी पाठ से स्मस्त देवी-देवताओं जागृत होते हैं।
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
बता दें स्वास्तिक मंत्र या स्वस्ति मंत्र, शुभ-लाभ और शांति के लिए किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार स्वस्ति, सु अस्ति से मिलकर बना है जिसका अर्थ है कल्याण हो। इसका पाठ करने से हृदय और मन का मेल हो जाता है। ज्योतिष विद्वान के नियमों अनुसार इस मंत्र का उच्चारण करते समय कुशा से जल के छींटें डाले जाने चाहिए। कहा जाता है इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त करता है। बता दें स्वस्ति पाठ करने की क्रिया को ही स्वस्तिवाचन का नाम दिया गया है।