श्रीमद्भगवद्गीता : अर्जुन की ध्वजा पर हनुमान जी का चिन्ह...
punjabkesari.in Sunday, Apr 12, 2020 - 12:32 PM (IST)

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स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्।
नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलोऽभ्यनुनादयन्॥
अथ व्यस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्कपिध्वज:।
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डव:।
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते॥
अनुवाद : इन विभिन्न शंखों की ध्वनि कोलाहलपूर्ण बन गई जो आकाश तथा पृथ्वी को शब्दायमान करती हुई धृतराष्ट्र के पुत्रों के हृदयों को विदीर्ण करने लगी।
उस समय हनुमान से अंकित ध्वजा लगे रथ पर आसीन पाण्डुपुत्र अर्जुन अपना धनुष उठा कर तीर चलाने के लिए उद्यत हुआ। हे राजन! धृतराष्ट्र के पुत्रों को व्यूह में खड़ा देख कर अर्जुन ने श्री कृष्ण से ये वचन कहे।
तात्पर्य : जब भीष्म तथा दुर्योधन के पक्ष के अन्य वीरों ने अपने-अपने शंख बजाए तो पांडवों के हृदय विदीर्ण नहीं हुए। ऐसी घटनाओं का वर्णन नहीं मिलता किन्तु इस विशिष्टï श£ोक में कहा गया है कि पाण्डव पक्ष के शंखनाद से धृतराष्ट्र के पुत्रों के हृदय विदीर्ण हो गए। इसका कारण स्वयं पांडव और भगवान कृष्ण में उनका विश्वास है। परमेश्वर की शरण ग्रहण करने वाले को किसी प्रकार का भय नहीं रह जाता चाहे वह कितनी ही विपत्ति में क्यों न हो। युद्ध प्रारंभ होने ही वाला था। उपर्युक्त कथन से ज्ञात होता है कि पांडवों की सेना की अप्रत्याशित व्यवस्था से धृतराष्ट्र के पुत्र बहुत कुछ निरुत्साहित थे क्योंकि युद्धभूमि में पांडवों का निर्देशन भगवान कृष्ण के आदेशानुसार हो रहा था।
अर्जुन की ध्वजा पर हनुमान का चिन्ह भी विजय का सूचक है क्योंकि हनुमान ने राम तथा रावण युद्ध में राम की सहायता की थी जिससे राम विजयी हुए थे। इस समय अर्जुन की सहायता के लिए उनके रथ पर राम तथा हनुमान दोनों उपस्थित थे।
भगवान कृष्ण साक्षात राम हैं और जहां भी राम रहते हैं वहां उनका नित्य सेवक हनुमान होता है तथा उनकी नित्यसंगिनी, वैभव की देवी सीता उपस्थित रहती हैं। अत: अर्जुन के लिए किसी भी शत्रु से भय का कोई कारण नहीं था।
इससे भी अधिक इंद्रियों के स्वामी भगवान कृष्ण निर्देश देने के लिए साक्षात उपस्थित थे। इस प्रकार अर्जुन को युद्ध करने के मामले में सारा सत्परामर्श प्राप्त था। ऐसी स्थितियों में, जिनकी व्यवस्था भगवान ने अपने शाश्वत भक्त के लिए की थी, निश्चित विजय के लक्षण स्पष्ट थे। (क्रमश:)
श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्याख्याकार :
स्वामी प्रभुपाद
अध्याय 1
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता