Muni Shri Tarun Sagar- हम स्वर्ग तो चाहते हैं, मगर स्वर्गीय होना नहीं चाहते
punjabkesari.in Wednesday, May 28, 2025 - 05:59 PM (IST)

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स्वर्ग जाने की जरूरत नहीं
प्रश्न पूछा है : स्वर्ग मेरी मुट्ठी में हो इसके लिए मैं क्या करूं?
कुछ मत करो। बस इतना ही करो कि दिमाग को ‘ठंडा’ रखो, जेब को ‘गर्म’ रखो, आंखों में ‘शर्म’ रखो, जुबान को ‘नरम’ रखो और दिल में ‘रहम’ रखो। अगर तुम ऐसा कर सके तो फिर तुम्हें किसी स्वर्ग तक जाने की जरूरत नहीं है। स्वर्ग खुद तुम तक चल कर आएगा। विडम्बना तो यही है कि हम स्वर्ग तो चाहते हैं, मगर ‘स्वर्गीय’ होना नहीं चाहते।
बोलचाल बंद मत करना
भले ही लड़ लेना-झगड़ लेना, पिट जाना-पीट देना, मगर बोलचाल बंद मत करना क्योंकि बोलचाल के बंद होते ही सुलह के सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं। गुस्सा बुरा नहीं है। गुस्से के बाद आदमी जो वैर पाल लेता है वह बुरा है। गुस्सा तो बच्चे भी करते हैं, मगर बच्चे वैर नहीं पालते। वे इधर लड़ते-झगड़ते हैं और उधर अगले ही क्षण फिर एक हो जाते हैं। कितना अच्छा हो कि हर कोई बच्चा ही रहे।
मौत की हंसी
मौत दो बातों पर हंसती है। एक तब, जब डाक्टर मरीज को कहता है कि तुम निश्चिंत रहो, मैं हूं न। और दो तब, जब किसी के मरने पर कोई आदमी कहता है ‘बेचारा चल बसा।’ बेचारा चल बसा यह कहने वाला इस अंदाज में कहता है जैसे वह कभी नहीं मरेगा। मौत उसके इस अंदाज पर हंसती है और कहती है ठीक है बच्चू, तुमने उसको ‘बेचारा’ कहा तो अब तेरा ही नम्बर है। यहां कौन है, जो मृत्यु की ‘क्यू’ में न खड़ा हो?
बुजुर्गों की संगत
बुजुर्गों की संगति करो क्योंकि बुजुर्गों के चेहरे पर एक-एक झुर्री पर हजार-हजार अनुभव लिखे होते हैं। उनके कांपते हुए हाथ, हिलती हुई गर्दन, लड़खड़ाते हुए कदम और मुरझाया हुआ चेहरा संदेश देता है कि जो भी शुभ करना है वह आज, अभी और इसी वक्त कर लो। कल कुछ नहीं कर पाओगे। बूढ़ा इंसान इस पृथ्वी का सबसे बड़ा शिक्षालय है क्योंकि उसे देखकर उगते सूरज की डूबती कहानी का बोध होता है।