Ganga Dussehra Katha: गंगा दशहरा पर पढ़ें, स्वर्ग से धरती पर आई गंगा जी के जन्मोत्सव की कथा
punjabkesari.in Wednesday, Jun 04, 2025 - 01:54 PM (IST)

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Ganga Dussehra Katha: गंगा जी का हमारे इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है, जिनकी प्राचीन कथा इस प्रकार कही जाती है-
प्राचीन काल में अयोध्या के राजा सगर को अपनी प्रजा प्राणों से भी ज्यादा प्यारी थी। प्रजा के जल संकट को दूर करने के लिए उन्होंने गंगा माता को पृथ्वी पर लाने का दृढ़ निश्चय किया। इसके लिए राजा सगर के 60 हजार पुत्रों ने मिल कर सफल यज्ञ किया। इस यज्ञ का पूरा उल्लेख महर्षि विश्वामित्र ने श्री राम को जनकपुरी की पैदल यात्रा करते समय गंगा के तीर पर खड़े होकर सुनाया जो इस प्रकार कहा जाता है :
एक बार राजा सगर ने बहुत बड़ा यज्ञ आयोजित किया। इस यज्ञ की रक्षा का भार उनके पौत्र अंशुभान ने अपने ऊपर लिया। यज्ञ के घोड़े को देवताओं के राजा इंद्र ने चुराया। चोरी को यज्ञ में विघ्न मान कर 60 हजार पुत्रों ने घोड़े की तलाश शुरू की मगर सारी पृथ्वी पर कहीं भी घोड़ा नहीं मिला। पाताल लोक में तलाश के लिए उन्होंने पृथ्वी का बहुत बड़ा भाग खोद डाला।
पाताल में सनातन भगवान वासुदेव महर्षि कपिल के रूप में बैठे तप कर रहे थे और चोरी किया घोड़ा वहीं खड़ा था। घोड़ा देख सभी में खुशी की लहर दौड़ गई। इस शोर से महर्षि कपिल की समाधि भंग हो गई। योग निद्रा से जागते ही उनके क्रोध की आग से सभी जल गए।
बहुत देर बाद मरे हुए पुत्रों की चिंता से व्याकुल महाराज दलीप (जो राजा सगर के पौत्र अंशुभान के पुत्र थे) के पुत्र भगीरथ ने कठोर तप किया। उनके पिता, दादा तथा परदादा सभी गंगा को लाने में विफल हुए थे और भगीरथ ने इस विफलता को सफलता में बदलने के लिए ही तपस्या की थी।
समय आने पर उन्हें प्रजापति ब्रह्मा जी ने कहा, ‘‘हे राजन तू गंगा को स्वर्ग से धरती पर उतारना चाहता है मगर क्या यह भी सोचा है कि धरती गंगा की गति तथा बोझ को सहन कर पाएगी या नहीं। उनका बोझ तो केवल शिवजी ही संभाल सकते हैं। यदि तुम उनसे गंगा का बोझ संभालने का वर लेकर आओ तो ही गंगा पृथ्वी पर आ सकती है।’’
महाराज भगीरथ ने तपस्या से शिवजी को प्रसन्न करके गंगा जी को संभालने का वर लिया। अपने वचनानुसार प्रजापति ने अपने करमंडल (मानसरोवर) से गंगा की धारा छोड़ी। शिवजी ने जटाओं में गंगा जी कोथाम लिया लेकिन गंगा जी को जटाओं से बाहर आने का रास्ता न मिल सका तो महाराज भगीरथ चिंतातुर हो उठे।
भगीरथ के दोबारा तपस्या करने पर शिवजी खुश हुए तथा गंगा जी उनकी जटाओं से निकल कर हिमाचल की पहाड़ियों से टकराने लगी तथा मैदान की ओर बढ़ चली। इस तरह गंगा जी का पृथ्वी पर आगमन हुआ।