Smile please: ऐसे लोग सद्गुरु नहीं होते, गुरु घंटाल होते हैं

punjabkesari.in Friday, Mar 31, 2023 - 10:04 AM (IST)

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Smile please: कभी-कभी ऐसा होता है कि जो लोग दूसरों को सिखाने-समझाने में बहुत अधिक व्यस्त होते हैं, उन्हें खुद पर काम करने का समय ही नहीं मिलता। दूसरों को समझा कर उन्हें यह धोखा हो जाता है कि वे स्वयं भी समझ गए हैं, नहीं तो इतने सारे लोग उन्हें क्यों मानते ? प्राय: कीर्तनकार, दार्शनिक, समाज सुधारक इसी भ्रांति में होते हैं कि वे बड़े ज्ञानी हैं लेकिन शब्दों का अंबार लगाकर भी भला कोई ज्ञानी होता है।

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एक गांव में कुत्तों का एक नेता था जो शेष सभी कुत्तों को समझाता था कि देखो व्यर्थ मत भौंको। व्यर्थ भौंकने के कारण ही कुत्तों की ऐसी दुर्गति हुई है और जब तक हम बेवजह भौंकते रहेंगे, हमारी शक्ति व्यर्थ होगी। जब सारी शक्ति व्यर्थ भौंकने में ही व्यय हो जाएगी तो और क्या कार्य करोगे?

कुत्तों की बात तो जंचती थी मगर बेचारे वे भी आखिर बिना भौंके कैसे रहें? कोई भी निकले और कुत्ते बिना भौंके रह जाएं, भला यह कैसे संभव था? वे सोचते, आज भौंक लें, कल की कल देखेंगे मगर परामर्श देने वाले कुत्ते को लोग प्यार करते थे कि यह अच्छा है। ऐसा कुत्ता देखा ही नहीं जो स्वयं तो भौंकता नहीं, दूसरों को भी नहीं भौंकने देता। अद्भुत है। ऐसे वर्षों आए-गए, उपदेशक समझाता रहा और सुनने वाले सुनते रहे, सिर झुका कर कि अब क्या करें, विवशता है, पापी हैं हम।

खैर, एक रात कुत्तों ने विचार किया कि अपना गुरु कितना समझाता है और अब उसका बुढ़ापा आ गया है, एक बार तो हम ऐसा करें कि एक रात तय कर लें चाहे कुछ हो जाए, कितनी ही उत्तेजनाएं आएं हम नहीं भौंकेंगे।

एक बार तो गुरु को यह भरोसा आ जाए कि हमने उसकी बात सुनी और मानी। गुरु शाम को निकला, जो उसका काम था कि कोई मिल जाए भौंकते हुए, ताकि वह पकड़े और उपदेश दे सके मगर उस दिन कोई न मिला, आधी रात हो गई, सन्नाटा छाया रहा। गुरु बड़ा दुखी हुआ। उसने कहा, गए कहां सबके सब कोई मिलता ही नहीं।

वह तो समझा-समझा कर अपनी भड़ास निकाल लेता था। आज समझाने को कोई न मिला। एकदम गले में खुजलाहट उठने लगी। जब कोई कुत्ता न दिखा तो पहली बार उसकी दृष्टि जवानों पर गई। काफी समय से दबा हुआ गुबार फूट पड़ा। बहुत रोका, बहुत संयम साधा, मगर कुछ काम न आया। नहीं रोक सका, एक गली में जाकर जोर से भौंक दिया।

उसका भौंकना था कि सारे गांव में खलबली मच गई, क्योंकि शेष कुत्तों ने सोचा कोई गद्दार दगा दे गया। जब एक ने दगा दे दिया तो हम क्यों पीछे रहें? हम बेकार ही दबे पड़े हैं। सारे कुत्ते भौंकने लगे। ऐसी भौंक जो पहले कभी नहीं सुनी थी। फिर क्या था, गुरु वापस लौट आया। उसने कहा, अरे कमबख्तो कितना समझाया मगर नहीं, तुम न मानोगे। तुम अपनी जात न बदलोगे। फिर भौंक रहे हो। आप स्वयं देखें उपदेश देना कितना सरल था पर स्वयं निभाना अत्यंत कठिन है। यह सद्गुरु नहीं होते यह गुरु घंटाल होते हैं। यह संस्कारों का अभाव होता है।     

 

 


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Content Writer

Niyati Bhandari

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