Shrinathji Temple: जानें, वृंदावन से राजस्थान कैसे पहुंचा भगवान कृष्ण का साक्षात स्वरूप श्रीनाथ

punjabkesari.in Thursday, Aug 12, 2021 - 10:26 AM (IST)

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Shrinathji Temple: सोलह कला सम्पूर्ण भगवान श्री कृष्ण के देश भर में फैले हजारों मंदिरों में राजस्थान के नाथद्वारा में स्थित एक ऐसा मंदिर भी है जहां वह साक्षात रूप में ‘श्रीनाथ’ जी के रूप में विद्यमान हैं। भगवान श्री कृष्ण का पर्वत शिला पर अंकित यह वही वास्तविक स्वरूप है जिसे उन्होंने ‘द्वापर युग’ में वृंदावन वासियों की देवराज इंद्र से रक्षा के लिए धारण किया था। बाल कृष्ण ने गोकुल वासियों को देवराज इंद्र के डर से उनकी पूजा करने की बजाय गौ माता तथा अपने मान्य देव की पूजा करने की प्रेरणा दी।

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History Of Shreenathji Temple: इससे क्रुद्ध हो इंद्र ने सारे क्षेत्र में तेज बारिश की जिससे सारी गोकुल नगरी जलमग्न होने के कगार पर पहुंच गई। ऐसे में श्री कृष्ण ने अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाया और उसके नीचे सभी गोकुल वासियों ने शरण प्राप्त की। उस समय ‘तेज वश’ भगवान श्री कृष्ण की आकृति की छाप गोवर्धन पर्वत की शिला पर अंकित हो गई। सहस्त्रों वर्ष बीतने के बाद समय रहते वह शिला खंडित हो गई तथा मध्य युग के भक्तिकाल में पहले प्रभु की बाजू तथा चेहरा सदृश्य हुआ। फिर गोकुल में रहते कई-कई दिनों तक अपनी भक्ति में लीन रहने वाले ‘स्वामी वल्लभाचार्य’ की श्रद्धा देख प्रभु ने अपनी खंडित छवि सम्पूर्ण रूप में प्रकट की।

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Story of ShreeNathji: सत्रहवीं शताब्दी में जब मुगल सम्राट औरंगजेब ने हिन्दू मंदिर नष्ट करने शुरू किए तो स्थानीय भक्त ‘श्रीनाथ’ जी की पावन मूर्ति लेकर सुरक्षित क्षेत्र की खोज में निकलेे। ऐसे में भगवान की मूूर्ति मेवाड़ के ‘शिहाद’ गांव में एक गड्ढे में स्वयं धंस गई।

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जब भक्तों ने मेवाड़ के राणा वंशीय सम्राटों से शरण मांगी तो महाराणा संग्राम सिंह तथा राणा प्रताप के वंशजों ने 20,000 राजपूत सिपाहियों को मूूर्तिनुमा शिला की सुरक्षा के लिए तैयार कर लिया। उधर दिल्ली में मुगल सम्राट औरंगजेब ने भी अपने सैनिकों को वापसी का आदेश दे डाला। इस घटना के बाद श्रीनाथ जी का मंदिर उस समय चयनित स्थान पर ही स्थापित करने का निर्णय लिया गया।


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Shrinath Ji Darshan: श्रीनाथ जी का मंदिर दिन में 8 दर्शनों के लिए खोला जाता है। इसके पीछे भी एक विशेष कारण है। मान्यतानुसार बाल कृष्ण अपने बचपन में इतने आकर्षक एवं तेजस्वी थे कि उन्हें देखने की लालसा में आसपास की महिलाएं (गोपियां) नंद बाबा के घर बार-बार चक्कर लगाती रहती थीं।

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यशोदा माता को इस बात की परेशानी रहने लगी कि गोपाल के खान-पान तथा आराम में बाधा पैदा होगी। अत: उन्होंने बाल गोपाल से मिलने का समय तय कर दिया।

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इसी आधार पर मंदिर का द्वार भी दिन में तय समय पर ही खोला जाता है।

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भारत के अलावा श्रीनाथ जी के मंदिर रूस, मध्य एशियाई वोल्गा क्षेत्र में, पाकिस्तान में डेरा गाजी खान, भारत में गोवा तथा अमेरिका के न्यूजर्सी सहित आठ स्थानों पर विद्यमान हैं।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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