श्रीमद्भगवदगीता ज्ञान: शरीर में 2 प्रकार के कम्पन
punjabkesari.in Sunday, May 24, 2020 - 01:46 PM (IST)

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श्रीमद्भगवदगीता यथारूप
व्यख्याकार :
स्वामी प्रभुपाद
अध्याय 1
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का दाहरण भगवदगीता
श्लोक-
वेषथुश्च शरीरे मेरोमहर्षस्थ जायते।
गाण्डीवं स्नसते हस्तात्वक्रैव परिदह्यते ॥
अनुवाद : मेरा सारा शरीर कांप रहा है, मेरे रौंगटे खड़े हो रहे हैं, मेरा गांडीव धनुष मेरे हाथ से सरक रहा है और मेरी त्वचा जल रही है।
तात्पर्य : शरीर में दो प्रकार का कम्पन होता है और रौंगटे भी दो प्रकार हैं से खड़े होते हैं (ऐसा यातो आध्यात्मिक परमानंद के समय या भौतिक में अत्यधिक भय उत्पन्न होनो पर होता है जब कोई भय कह होता है। दिव्य साक्षात्कर में कोई भय नहीं होता।
इस अवस्था में अर्जुन के जो लक्षण वे भौतिक भय अर्थात अर्थात जीवन की हानि के कारण हैं। अन्य लक्षणों से भी यह स्पष्ट है, वह इतना अधीर हो गया कि उसका विख्यात धनुष गांडीव उसके हाथों से सरक रहा था और उसकी त्वचा में जलन उत्पन्न हो रही थी। ये सब लक्षण देहात्म बुद्धि से उपजे हैं। (क्रमश:)