कुंभ राशि की असली पहचान: क्या कहते हैं ग्रह, नक्षत्र और भाग्य
punjabkesari.in Friday, Jun 20, 2025 - 04:14 PM (IST)
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Kumbh Rashi: यदि आपका नाम अंग्रेजी के अक्षर G, S, D से शुरू होता है और हिंदी में आपके नाम का पहला अक्षर गु,गे, गी, सा, सी, सु, से सु, द से है। कुंभ राशि का स्वामी शनि है और शनि कर्म का कारक ग्रह है। इसे अनुशासन बहुत पसंद है। इस राशि के जातक जिम्मेदार होने के साथ-साथ प्रैक्टिकल भी होते हैं। इनमें महत्वाकांक्षा भी बहुत होती है। इनके लिए कर्म ही जीवन होता है क्योंकि काल पुरुष की कुंडली में कुंभ राशि 11वें भाव में आ जाती है और 11वां भाव जीवन में कर्म के फल का भाव होता है। यह इच्छाओं का भाव होता है लिहाजा यह जातक जीवन में खूब तरक्की करते हैं। शनि की राशि होने के कारण इनमें धैर्य बहुत होता है और यह किसी भी कार्य में अपने मुताबिक परिणाम हासिल करने के लिए धैर्य के साथ काम करते हैं और उसमें सफल भी होते हैं। वायु तत्व की राशि होने के कारण इनकी कल्पना शक्ति अच्छी होती है लेकिन कई बार ऐसे जातक हवाई के लिए भी खूब बनाते हैं। कुंभ राशि स्थाई यानी कि फिक्स राशि है लिहाजा ऐसे जातक अपनी धारणा जल्दी नहीं बदलते। यह जातक किसी भी विषय अथवा व्यक्ति को लेकर यदि अपनी धारणा बना ले, तो इन्हें नुकसान भी हो जाता है। यह अपनी धारणा बदलने के लिए तैयार नहीं होते। सिर राशि होने के कारण ऐसे जातक अच्छे मित्र साबित होते हैं क्योंकि किसी भी मित्र के लिए स्टैंड लेने की इनमें क्षमता खूब होती है। यह अपने स्टैंड से पीछे भी नहीं हटते चाहे वह अपना दोस्त गलत ही क्यों न हो। इनकी यही खूबी इनके करियर में भी खूब मदद करती है क्योंकि स्थिर राशि होने के कारण यह एक ही स्थान पर लंबे समय तक टिक कर काम करते हैं और जीवन में नई ऊंचाई को प्राप्त करते हैं। स्थिर राशि के जातक होने के कारण ऐसे जातक अच्छे प्रेमी और प्रेमिका भी साबित होते हैं क्योंकि यह जिसके साथ इमोशनली अटैच होते हैं। उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं होते। यदि सामने वाला इन्हें छोड़ जाए तो उसके लिए इनके लिए इससे उभरना भी आसान नहीं होता। इनके स्थिर नेचर होने के कारण इन्हें मानसिक परेशानी कारण हो जाती है। यह इनका वीक पॉइंट साबित होता है।
कुंभ राशि का स्वामी शनि है जो क्रूर ग्रह है और यह मेल राशि है लिहाजा सामने वाले पर डोमिनेट करने की भी यह लोग कोशिश करते हैं। इस राशि की दिशा पश्चिम होने के कारण इस राशि के जातकों को अक्सर पश्चिम दिशा का घर और पश्चिम दिशा की यात्रा खूब रास आती है। कुंभ राशि क्योंकि दिन में बड़ी राशि है, तो इन्हें अक्सर आप दिन के समय ज्यादा एक्टिव पाएंगे यानी कि सूर्य उदय के दौरान इनकी बॉडी और माइंड ज्यादा एक्टिव रहते हैं।
करियर- कुंभ राशि के जातक मंगल के धनिष्ठा नक्षत्र के तीसरे और चौथे चरण में पैदा होते हैं। शतभिषा नक्षत्र के चारों चरणों में यह राहु का नक्षत्र है और पूर्व भाद्रपद नक्षत्र उसके पहले तीन चरणों में पैदा होते हैं। मंगल के धनिष्ठा नक्षत्र में पैदा होते हैं। उनको करियर की शुरुआत होते ही गुरु की दशा मिल जाती है जबकि राहु के नक्षत्र में जो पैदा होते हैं ऐसे जातकों को करियर वह गुरु की महादशा के दौरान अंत में मिलता है। गुरु की महादशा लगभग अंत में होती है। तब उनको उनका करियर शुरू होता है और इस राशि के अधिकतर जातकों के जो करियर है। उसके दौरान शनि और गुरु दोनों ही प्रभावी भूमिका में रहते हैं और यानी कि कुंडली में शनि और गुरु ठीक है, तो बहुत अच्छा रहता है। शनि इस राशि के जो जातक हैं उनके लिए राशि के स्वामी होने के अलावा जो कुंभ राशि है। उनके लिए राशि के स्वामी होने के अलावा 12वें भाव के भी स्वामी हो जाते हैं लिहाजा शनि की प्लेसमेंट कुंडली में आठवें और 12वें भाव में यदि न हो तो शनि की दिशा में इन्हें खूब तरक्की भी मिलती है और 40 साल की आयु के बाद यह जातक वित्तीय रूप से काफी सक्षम जो है वह हो जाते हैं जिंदगी में कितना धन आएगा और कितनी प्रतिष्ठा और तरक्की मिलेगी। यह आपकी कुंडली में गुरु और शनि की स्थिति पर भी निर्भर करता है यदि राशि के स्वामी शनि और आपकी कुंडली में आय और धन स्थान दोनों के स्वामी गुरु होते हैं। यदि यह कुंडली में ठीक हो तो आपके लिए स्थिति अच्छी रहती है। गुरु आपके लिए धन स्थान के स्वामी होते हैं। आय स्थान के भी क्योंकि वहां पर धनु राशि आ जाएगी और आगे मीन राशि आ जाएगी धन भाव में गुरु की स्थिति अच्छी है शनि की स्थिति अच्छी है यानी कि राशि का स्वामी अच्छा है। आय स्थान का स्वामी अच्छा है। धन स्थान का स्वामी अच्छा है, तो निश्चित तौर पर आपको खूब पैसा मिलता है। खूब पैसा आप बना लेते हैं यदि इनमें से कोई भी ग्रह कमजोर है।
रिलेशनशिप- उन राशियों के साथ कुंभ राशि के जातकों की ज्यादा बनती है जिनके स्वामी या तो शनि, शुक्र, बुध है यानी कि वृषभ राशि, मिथुन राशि, कन्या राशि, तुला राशि और मकर राशि के जातकों के साथ इनकी अच्छी अंडरस्टैंडिंग हो सकती है। कुंभ राशि के जातकों के सातवें भाव में यानी कि शादी वाले भाव में सिंह राशि आती है। इनका पार्टनर सूर्य से प्रभावित होता है और पार्टनर डोमिनेट करने वाला होता है। इनके पार्टनर के जन्म स्थान से पूर्व दिशा में मिलने की संभावना जो है वह ज्यादा रहती है।
हेल्थ- कुंभ राशि का स्वामी शनि है जो एक शीतल शुष्क और धीमी गति से चलने वाला ग्रह माना जाता है। जब चंद्रमा जो कि मन का कारक है और रक्त का कारक है। इस राशि में स्थित होता है, तो उसका प्रभाव मानसिक और शारीरिक संतुलन पर पड़ता है। ऐसे जातकों में ब्लड प्रेशर की समस्या नसों में खिंचाव वकोस वेंस और जो लो ब्लड प्रेशर है। ऐसी समस्याएं जल्दी आ जाती हैं। हाथ पैरों में सुन इनके जल्दी हो जाते हैं। शनि ठंडी प्रकृति के कारक हैं इसलिए ये लोग अक्सर ठंड से जुड़ी हुई बीमारियों जैसे सर्दी या जुकाम और जोड़ों में जकड़न के शिकार जल्दी हो जाते हैं। ऐसे लोगों को चंद्रमा और शनि से संबंधित उपाय करने चाहिए। जैसे चंद्रमा का मंत्र और ओम सोम सोमाए नमः का जाप किया जा सकता है। शनि देव को तेल अर्पित किया जा सकता है या फिर शनि के मंत्रों का जाप कर सकते हैं। अपने खाने में तेल का इस्तेमाल कम कर दें। ताकि आपका ब्लड सर्कुलेशन ठीक रहे। मेडिटेशन करने से आपके मानसिक स्थिति के लिए अच्छा रहेगा क्योंकि चंद्रमा ऐसे ग्रह की राशि में थोड़ा सा अच्छा नहीं है। मेडिटेशन आपको मानसिक तनाव से मुक्ति दिला सकता है।
उपाय- कुंभ राशि के जातकों के लिए शुक्र भाग्य स्थान के स्वामी बनते हैं जबकि बुध पंचम भाव के स्वामी हैं। अपने राशि स्वामी शनि के स्टोन नीलम के अलावा यह जातक शुक्र का हीरा और बुध का पन्ना धारण कर सकते हैं। कोई भी स्टोन धारण करने से पहले यह सुनिश्चित जरूर करें कि जिस ग्रह का स्टोन धारण कर रहे हैं। वह ग्रह कुंडली में छठे, आठवें और 12वें भाव में विराजमान न हो स्टोन नहीं धारण कर सकते। भाग्य स्थान के स्वामी शुक्र की रेमेडी के तौर पर आप शुक्रवार के दिन गौ की सेवा कर सकते हैं। शुक्रवार के दिन ही सफेद वस्तुओं, फूलों का दान कर सकते हैं। शुक्र का जो बीज मंत्र है ओम शुम शुष् शुक्राएय नमः का जप कर सकते हैं। इसके अलावा यदि आप रुद्राक्ष धारण करना चाहते हैं, तो कुंभ राशि के जातकों के लिए अष्टमुखी रुद्राक्ष जो है वह काफी फायदेमंद रहता है। अष्टमुखी रुद्राक्ष का संबंध वह भगवान गणेश जी से है। इसे धारण करने से व्यक्ति तेजस्वी बलशाली, बुद्धिमान बनता है। इसके साथ ही फेफड़े के रोग चर्म रोगों और सर्पदांश के भय से भी मुक्ति मिलती है। इसे धारण करने पर भगवान गणेश जी की कृपा आप पर हमेशा बनी रहती है।
नरेश कुमार
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