Shani Sade Sati: इसके प्रभाव से भिखारी भी बन सकता है राजा

punjabkesari.in Saturday, Dec 07, 2019 - 07:28 AM (IST)

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शनि की साढ़ेसाती का नाम सुनते ही लोग डर के मारे थर-थर कांपने लगते हैं। ऐसा नहीं है की ये हमेशा लाइफ में अशुभता ही लाती है बल्कि मंद बड़े भाग्य के द्वार भी खोल सकती है। भिखारी को महलों का राजा तक बना सकती है। शनि की साढ़ेसाती किन राशियों पर भारी रहने वाली है, इसकी सही गणना तो जन्मकुंडली देखकर ही की जा सकती है। इस लेख में हम आपको बताएंगे जब साढ़ेसाती आती है तो 12 राशियों पर कैसा शुभ-अशुभ प्रभाव रहता है-

PunjabKesari Shani sade sati 2020

मेष शनि के मीन राशि में प्रवेश करते ही मेष राशि वाले जातक पर साढ़ेसाती के प्रभाव की शुरूआत हो जाती है। जातक के कार्य व्यवहार में परिवर्तन झलकने लगता है। बुद्धिमान होता हुआ भी वह बुद्धि का दुश्मन बन जाता है। बार-बार समझाने पर भी वह अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरने लगता है। ऐसा जातक रोग, शोक में घिर जाता है। दुख और विपत्तियां कनखजूरे की तरह चिपट जाती हैं। ज्यों-ज्यों जातक छूटने की कोशिश करता है, वे उससे अधिक चिपटती जाती हैं। मेष राशि तक शनि के पहुंचते जातक संभलने की भरसक चेष्टताएं करता है लेकिन उसके निर्णय, विवेकहीन सिद्ध होते हैं। मेष राशि वाले व्यक्तियों को परिस्थितियों की कड़वाहट झेलनी पड़ती है। वृष राशि में शनि के पहुंचते-पहुंचते जातक दुखों की लपटें झेलता हुआ इतना शुद्ध हो जाता है कि उसे मिश्रित फल प्राप्त होने लगते हैं।

वृष मेष राशि में शनि के प्रविष्ट होते ही साढ़ेसाती का प्रादुर्भाव हो जाता है। इस कारण जातक पर कुसंगत का भूत सवार हो जाता है। सदाचरण हाथ खींच लेते हैं। कार्यशैली बिगड़ जाती है। वह झूठ, कपट के सहारे आगे बढ़ जाना चाहता है। ‘क्या करूं’ ‘कहां जाऊं’ आदि-आदि सोचते-सोचते पांच वर्ष बीत जाते हैं। जातक अथक प्रयास से भी असफलता ही कमाता है और शेष समय भी झुंझलाहट एवं अर्थाभाव में बीत जाता है।

मिथुन वृष राशि में शनि के प्रविष्ट होते ही जातक बुद्धि का शत्रु बन जाता है। उसकी सोच बिगड़ जाती है। वह झूठ, कपट के सहारे आगे बढऩा चाहता है। उसका हर प्रयास उसे असफलता की ओर ले जाता है। वह रोगों से घिर जाता है। उसकी काम वेदना उसका धन, सम्मान समाप्त करने में सहायक बनती है। वह वेश्याओं के तलवे चाटता है। अनेक परेशानियां सहते-सहते ऐसे व्यक्ति की स्थिति धीरे-धीरे संभलने लगती है। चोट आदि लगने का भय बना रहता है। अढ़ाई वर्ष समाप्त होने के बाद पांच वर्षों तक उसे मिश्रित फल प्राप्त होता है।

कर्क मिथुन राशि पर शनि के आते ही जातक को बीमारियां घेरने लगती हैं। अर्थव्यवस्था बिगड़ जाती है। बने-बनाए कार्य बिगड़ने लगते हैं। जातक के आचरण की सभ्यता समाप्त हो जाती है। साढ़े सात वर्षों तक दुख में कमी नहीं आ पाती। जातक का मन टूट जाता है। दुर्घटना आदि का भय बना रहता है। वह निराशा और हताशा महसूस करता है।

सिंह कर्क राशि पर शनि के प्रविष्ट होते ही जातक दोनों हाथों से अपने घर की दौलत लुटाने लगता है। छुटपुट रोगों से घिरा रहता है। ऐसा जातक चालाक प्रकृति का होता है। दुख-सुख झेलता हुआ अपना दिल छोटा नहीं करता। साढ़ेसाती के समय को अपने गुणों के सहारे धकेलता हुआ निकाल देता है। उसकी आस्था और आत्मविश्वास उसे सहारा देते हैं।

कन्या जब शनि सिंह राशि में प्रविष्ट होता है तब शुभ प्रभाव युक्त शनि होने से जातक धार्मिक आस्था वाला होता है। परिवार, संतान, स्त्री आदि के कष्ट उसे अधिक पीड़ित करते हैं। जातक बुद्धि का धनी होता है। उसकी चतुराई और बुद्धिमता उसे कार्यों में एकाग्र बनाती है। वह अपने कार्यों के प्रति निष्ठावान होता हुआ, परिश्रम के सहारे मिश्रित फल प्राप्त करता हुआ साढ़ेसाती का काल पूरा कर लेता है।

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तुला जब शनि कन्या राशि में प्रविष्ट होता है तब इस राशि वालों का साढ़ेसाती का समय दुख, परेशानियों में ही बीतता है। कई रोगों से पीड़ित होता हुआ जातक संघर्षशील जीवन बिताता है। बीच के अंतराल में उसे कुछ सफलताएं मिलती हैं और नवीन कार्यों से सुख प्राप्त होता है। उसके बावजूद वह अपनी असफलताओं से दुखी रहता है।

वृश्चिक उच्च राशि तुला में प्रविष्ट होने से साढ़ेसाती का समय इस राशि वाले जातक को अधिकतर अच्छे प्रभावों से युक्त करता है। ‘अति सर्वत्र वर्जयेत’ वाली कहावत चरितार्थ करता हुआ जातक किसी भी कार्य की अति से दुख भोगता है। वैसे सामाजिक प्रतिष्ठा, समाज में उसकी गुणवत्ता में कोई कमी नहीं आती। जातक का यह समय सुखकर फलयुक्त व्यतीत होता है।

धनु वृश्चिक राशि में शनि के प्रविष्ट होने से इस राशि वाले को साढ़ेसाती का समय सुखकर नहीं रहता। साढ़ेसाती के प्रारंभ होते ही जातक की शारीरिक क्षमता और मानसिकता असंतुलित होने लगते हैं। जीवन के विरोधाभास सामने आने लगते हैं। जातक के गुणों की चमक और उसकी धार्मिक आस्था उसे मिश्रित फलों तक ले आती है। जातक उन्नति और अवनति, सुख और दुख दोनों अनुभव करता हुआ साढ़ेसाती का समय निकाल लेता है।

मकर धनु राशि में शनि के प्रविष्ट होते ही इस राशि वालों की साढ़ेसाती तन को रोग, मन को क्षोभ देती है। रोग ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान’ बनकर शरीर में प्रविष्ट हो जाते हैं। धनाधिक्य, सुख, सम्पत्ति होते हुए भी जातक धन का अभाव महसूस करता है। ऐसे व्यक्ति के परिश्रम और लगन सहयोगी होते हैं। धार्मिक आस्था वाले होने के कारण जातक अपनी शारीरिक और मानसिक स्थिति सुदृढ़ करने में सफल होता है। दुखों में भी सुख मानता हुआ ऐसा जातक साढ़ेसाती का समय निकाल लेता है।

कुंभ मकर राशि में प्रविष्ट होने से स्वगृही शनि स्वयं इस राशि का स्वामी होते हुए जातक को अधिक पीड़ित नहीं करता। ऐसा जातक धार्मिक आस्थावान, अल्प दुख देखता हुआ सुखी रहता है। उसकी धार्मिक मान्यताएं उसके सुखों में सहयोग करती हैं। जातक का समय सफलतापूर्वक सुख भोगने व परोपकार में बीतता है।

मीन कुंभ राशि में शनि के प्रविष्ट होने पर धार्मिक प्रवृत्ति जातक में शुभ गुणों का समावेश करती है। जातक शुभ संकल्प युक्त, एकाग्र व धार्मिक होने से सफलता प्राप्त करता है। साढ़ेसाती का समय उसे थोड़ा-बहुत दुख देता है। अल्प दुख प्राप्त करता हुआ अपने सब कार्य सम्पन्न कर लेता है। छुटपुट रोगों से जातक को सावधानी बरतनी पड़ती है। शरीर पर चोट आदि लगने का भय भी बना रहता है। 

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Niyati Bhandari

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