​​​​​​​Religious places in Rajgir: आईए करें पावन स्थल ‘राजगृह’ की यात्रा

punjabkesari.in Friday, Jun 17, 2022 - 09:16 AM (IST)

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Rajgir Tourist Places Bihar: हिंदू, बौद्ध तथा जैन-तीनों धर्मों का ही तीर्थ है राजगृह। पटना से पहले मगध की राजधानी राजगृह ही थी। आज भी राजगृह पावन तीर्थ भूमि है, जहां बहुत अधिक यात्री पहुंचते हैं। पटना जंक्शन से 29 मील पूर्व बख्तियारपुर जंक्शन स्टेशन है। यहां से राजगृह के लिए मोटर-बस चलती है। बख्तियारपुर से राजगृह 33 मील है। राजगृह के प्रमुख दर्शनीय स्थल इस प्रकार हैं-

ब्रह्मकुंड
राजगृह बस्ती से लगभग 1 मील दूर ब्रह्मकुंड है। वैभार पर्वत पर प्राची सरस्वती के पास बहुत से कुंड हैं। यहां का मुख्य कुंड ब्रह्मकुंड है। ब्रह्मकुंड के नैऋत्य कोण में हंसतीर्थ है। इसके ऊपर कई देव मूर्तियां हैं। ब्रह्मकुंड से उत्तर 20 गज पर यक्षिणी चैत्य है। ब्रह्मकुंड से पूर्व पंचनद तीर्थ है। इसमें 5 गर्म जल के झरने हैं। इनके अलावा मार्कंडेय-कुंड, व्यास कुंड, गंगा-यमुना कुंड, अनंत-कुंड, सप्तर्षि-धारा और काशीधारा यहां हैं।

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इनमें से गंगा-यमुना कुंड में एक धारा शीतल तथा दूसरी उष्ण (गर्म) है। दूसरे सब कुंड गर्म झरनों के हैं। सप्तर्षि-धारा एक बावली है, इसकी पश्चिमी दीवार में 5 और दक्षिण में 2 झरने हैं। बावली के किनारे सप्तर्षियों की मूर्तियां हैं।

मार्कंडेय-कुंड से दक्षिण कामाक्षा देवी का मंदिर है। ब्रह्मकुंड से दक्षिण एक शिव मंदिर है और सप्तर्षि धारा के उत्तरी किनारे पर एक शिव मंदिर है। सप्तर्षि-धारा के पास ही ब्रह्मकुंड है। सप्तर्षि धारा से पश्चिम दत्तात्रेय मंडप है। जल के पास ब्रह्मा, लक्ष्मी तथा गणेश की मूर्तियां हैं। ब्रह्मकुंड के पूर्व में वराह मंदिर है। पहाड़ी की ढाल पर संध्या देवी का मंदिर है और उसके पास ही केदार-कुंड है। यहीं एक मंदिर में भगवान विष्णु के चरण चिन्ह हैं।

केदारकुंड
ब्रह्मकुंड से 200 गज की दूरी पर केदार-कुंड है, जिसे जियतकुंड भी कहा जाता है। वहां से 200 गज पर विष्णुपद है, उसके पास ही संध्या देवी हैं। यहां से 2 मील पश्चिम पर्वत पर सोमनाथ मंदिर है।

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सीता कुंड
ब्रह्मकुंड से नीचे सरस्वती से 200  गज पूर्व 5 कुंड हैं-सीताकुंड, सूर्यकुंड, चंद्रकुंड,  गणेशकुंड और रामकुंड। इनमें से रामकुंड में 2 झरने हैं-एक शीतल, दूसरा उष्ण। शेष चारों कुंडों में गर्म झरने का जल है। सीता कुंड से पूर्व विपुलाचल पर्वत की जड़ में ठंडे पानी का झरना है। वहीं पास में शृंगी कुंड है, जिसमें एक गर्म और एक ठंडे पानी का झरना गिरता है।

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वैतरणी
सरस्वती-कुंड से आधा मील उत्तर सरस्वती नदी को वैतरणी कहा जाता है। वहां नदी के दोनों तटों पर पक्के घाट हैं। दक्षिण तट पर लोग पिंडदान और गोदान करते हैं। बाएं तट पर माधव भगवान का मंदिर है। वैतरणी से लगभग 400 गज उत्तर सरस्वती को ही शालिग्राम-कुंड कहा जाता है। वहां घाट बना है। यहां से पूर्व धर्मेश्वर महादेव का मंदिर है और उससे पूर्व भरत कूप है।

वानरी कुंड
ब्रह्मकुंड के नीचे सरस्वती कुंड से दक्षिण नदी के बाएं किनारे वानरी तरण कुंड है। इस कुंड से थोड़ी दूर दक्षिण गोदावरी नामक छोटी धारा सरस्वती में मिलती है। इस संगम से दक्षिण पूर्व पहाड़ी टीले पर जरा देवी का मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि जरासंध को जीवन देने वाली जरा राक्षसी का ही यह स्मारक है।

सोनभंडार
सरस्वती-गोदावरी संगम से पश्चिम, ब्रह्मकुंड से लगभग 1 मील दूर वैभार पर्वत के दक्षिण में सोना भंडार नामक गुफा है। यह स्थान बौद्ध तीर्थ है, यहां तथागत की उपस्थिति में बौद्धों की प्रथम सभा हुई थी।

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पंच पर्वत
राजगृह में 5 पर्वत पवित्र माने जाते हैं। सभी तीर्थ इनके ऊपर या इनके मध्य में आ जाते हैं। इन पर्वतों के नाम हैं- वैभार, विपुलाचल (चेतक), रत्नागिरी (ऋषिगिरि), उदयगिरि और स्वर्णगिरि (श्रमणगिरि)।

वैभार पर्वतों के गणना-क्रम में पांचवां पर्वत है। इसी के पास ब्रह्मकुंड है। पर्वत पर 1 मील चढ़ाई के बाद एक प्राचीन मंदिर में सोमनाथ और सिद्धनाथ-2 शिवलिंग हैं। वहीं आसपास 5 जैन मंदिर हैं। विपुलाचल पर्वत प्रथम पर्वत है। यह सीता कुंड से पूर्व में है। इस पर 4 जैन मंदिर और श्रीवीरप्रभु की चरण पादुकाएं हैं। इससे दक्षिण की पहाड़ी पर गणेश जी का मंदिर है। यह मंदिर बहुत प्रतिष्ठित है।

शांति स्तूप : यह एक प्रमुख बौद्ध तीर्थ स्थल है। यहां तक आसानी से पहुंचने के लिए जापान सरकार की मदद से रोप-वे बनाई गई है। इससे होकर अक्षय रज्जू मार्ग से शांति स्तूप तक पहुंचने में केवल 7 मिनट लगते हैं।

घोड़ा कटोरा झील
यह झील सर्दियों के दौरान साइबेरिया और मध्य एशिया से प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करती है। झील का आकार घोड़े जैसा है और यह 3 तरफ से पहाड़ों से घिरी हुई है। इसके बीच में एक विशाल बुद्ध प्रतिमा बनाई गई है।

नौलखा मंदिर
शहर के मध्य में श्री जैन श्वेतांबर भंडार तीर्थ धर्मशाला प्रांगण में स्थित जैन धर्म के 20वें तीर्थंकर भगवान श्री मुनि सुब्रत नाथ स्वामी जी महाराज का यह भव्य मंदिर देश-दुनिया के जैन धर्मावलंबियों और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। मंदिर स्थापत्य कला का एक बेजोड़ नमूना है। इस भव्य मंदिर की विशिष्टता है कि इसमें कहीं भी लौह धातु का उपयोग नहीं किया गया है। इसका निर्माण ईंट, सीमेंट और बलुआ पत्थर से हुआ है।

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बैकुंठ तीर्थ
ब्रह्मकुंड से 6 मील पूर्व वैकुंठ नामक नदी है। यहीं वैकुंठ पद तीर्थ है। यह स्थान ऋष्यशृंग (शृंगी कुंड) से 2 कोस पूर्व है। यहां शिवनाथ महादेव हैं। वैकुंठ से 2 मील उत्तर कंठेश्वर महादेव हैं।

बाणगंगा
ब्रह्मकुंड से लगभग 4 मील दक्षिण बाणगंगा नामक नदी है, जिसे अत्यंत पवित्र माना जाता है। यहीं पास में रंगभूमि है। ऐसी मान्यता है कि भीमसेन और जरासंध का युद्ध यहीं हुआ था और यहीं भगवान श्रीकृष्ण की उपस्थिति में भीमसेन ने उसके शरीर को चीर डाला था। यहां पत्थर पर बहुत से रगड़ लगने के चिन्ह हैं।

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बौद्ध तीर्थ
राजगृह बौद्ध प्रधान तीर्थ है। तथागत प्राय: वर्षा के 4 महीने यहीं व्यतीत करते थे। यहीं नोजभंडार में उनकी उपस्थिति में प्रथम बौद्ध सभा हुई थी। यहां बौद्धों के 18 विहार थे। यह एक बौद्ध गुफा भी है।

जैन तीर्थ
 इक्कीसवे तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ का जन्म यहीं हुआ था। यहीं उन्होंने तप किया था और नीलवन के चंपक वृक्ष के नीचे केवल ज्ञानी हुए थे। मुनिराज धनदत्त और महावीर के कई गणधर भी इस स्थान से मोक्ष गए हैं।


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Content Writer

Niyati Bhandari

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