Kundli Tv- जानें, क्या है सबरीमाला मंदिर का सच

punjabkesari.in Thursday, Oct 25, 2018 - 04:09 PM (IST)

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केरल का सबरीमाला मंदिर आज कल खूब चर्चा में है, जिसकी वजह इस मंदिर के कपाट का करीबन 800 सालों के बाद महिलाओं के लिए खुलना है। इसका धार्मिक कारण यह बताया जाता था कि यहां के भगवान अयप्पा बाल ब्रह्मचारी हैं, इसलिए मासिक धर्म से गुजरने वाली महिलाएं यहां नहीं जा सकती। लेकिन यह सब बातें तो आजकल सुर्खियां बनी हुई हैं, जिसके चलते हर कोई इसके बारे में जानता ही होगा। इसलिए आज हम आपको इस मंदिर से जुड़ी कुछ एेसे अनकहे तथ्य बताने जा रहे हैं जिसकी जानकारी शायद उस मंदिर में जाने वाले श्रद्धालुओं को भी नहीं होगी।
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आपको बता दें कि सबरीमाला मंदिर के भगवान अयप्पा भोलेनाथ के पुत्र हैं। जिन्हें अयप्पा के नाम से जाना जाता है। दरअसल भगवान अयप्पा, भगवान शंकर और विष्णु के रूप मोहिनी के पुत्र थे। एक बार जब अमृत कलश पाने के लिए असुर और देवता समंद्र मंथन कर रहे थे। उसी दौरान भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप लिया था। भगवान का ये रूप इतना आकर्षक और सुंदर था कि उनके इस रूप से भोलेनाथ भी खुद को नहीं बचा पाए और उनका वीर्यपात हो गया। उनके वीर्य को पारद कहा गया है और उनके वीर्य से ही बाद में सस्तव नामक पुत्र का जन्म का हुआ। जिन्हें दक्षिण भारत में अयप्पा कहा गया। 

शिव और विष्णु के समागम से उत्पन्न होने की वजह से उनको 'हरिहरपुत्र' कहा जाता है। इसके अलावा भगवान अयप्पा को अयप्पन, शास्ता, मणिकांता नाम से भी जाना जाता है। इनके दक्षिण भारत में कई मंदिर हैं उन्हीं में से एक प्रमुख है सबरीमाला। इसे दक्षिण का तीर्थस्थल भी कहा जाता है।
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ऐसा कहा जाता है कि अयप्पा के जन्म के बाद भगवान ने उन्हें पंपा नदी के तट पर छोड़ दिया था। जिसके बाद पंडालम के राजा राजशेखर ने उन्हें गोद ले लिया और 12 सालों तक अपना पुत्र मानकर उनका पालन पोषण किया। बाद में अयप्पा ने अपनी मां के खातिर एक राक्षसी महिषी का भी वध किया था। लेकिन भगवान अयप्पा को ये गृहस्थ जीवन नहीं भा रहा था। तो उन्होंने महल छोड़कर जाने का फैसला किया और वैराग्य अपना लिया। 
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ये मंदिर अपने चमत्कारों के लिए भी देश भर में बहुत प्रसिद्ध है। सबरीमाला मंदिर के पास मकर संक्रांति की रात घने अंधेरे में रह-रहकर यहां एक ज्योति दिखाई देती है और इस ज्योति के दर्शन के लिए दुनियाभर से करोड़ों श्रद्धालु हर साल यहां आते हैं। बता दें कि सबरीमाला का नाम शबरी के नाम पर पड़ा है। वही शबरी जिसने भगवान राम को जूठे फल खिलाए थे और राम ने उसे नवधा-भक्ति का उपदेश दिया था। बताया जाता है कि जब-जब ये रोशनी दिखती है इसके साथ शोर भी सुनाई देता है। भक्तों का मानना है कि ये देव ज्योति है और भगवान इसे जलाते हैं। कहते हैं कि यहां पर अयप्पा ने शैव और वैष्णवों के बीच एकता कायम की थी और अपने लक्ष्य को पूरा किया था। 
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सबरीमाला में सालों से एक प्रथा प्रचलित है। हर साल मकर संक्रांति के अवसर पर पंडालम राजमहल से अय्यप्पा के आभूषणों को संदूकों में रखकर एक भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। जो 90 किलोमीटर की यात्रा तय करके तीन दिन में सबरीमाला पहुंचती है। कहा जाता है इसी दिन यहां की पहाड़ी की कांतामाला चोटी पर असाधारण चमक वाली ज्योति दिखलाई देती है। बता दें कि अयप्पा भगवान का ये विश्व प्रसिद्ध मंदिर चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है। ये मंदिर केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किलोमीटर दूर पहाड़ियों पर स्थित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 18 पावन सीढ़ियों को पार करना पड़ता है, जिनके अलग-अलग अर्थ भी बताए गए हैं।
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पहली पांच सीढ़ियों को मनुष्य की पांच इन्द्रियों से जोड़ा जाता है। इसके बाद वाली 8 सीढ़ियों को मानवीय भावनाओं से जोड़ा जाता है। अगली तीन सीढ़ियों को मानवीय गुण और आखिर दो सीढ़ियों को ज्ञान और अज्ञान का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा यहां आने वाले श्रद्धालु सिर पर पोटली रखकर पहुंचते हैं। वे पोटली नैवेद्य यानि भगवान को चढ़ाने वाले प्रसाद से भरी होती है। यहां मान्यता है कि तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर, व्रत रखकर और सिर पर नैवेद्य रखकर जो भी व्यक्ति आता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
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Jyoti

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