Inspirational Context: सच से डर या झूठ की आदत? इंसान क्यों बनाता है झूठ को हथियार
punjabkesari.in Friday, May 09, 2025 - 01:31 PM (IST)

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Inspirational Context: सच और झूठ का खेल बड़ा निराला है। क्या हम में से किसी ने कभी चिन्तन किया है कि इंसान झूठ क्यों बोलता है और सच बोलने से इतना घबराता-कतराता क्यों है? आखिर ऐसी क्या मजबूरी है, जो झूठ बोलने को इतना प्रेरित करती है? क्यों समाज में झूठ को इतनी प्रतिष्ठा मिली हुई है? मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, जो है व जिसका अस्तित्व है, उसे सच कहते हैं और जो नहीं है व जिसके अस्तित्व को गढ़ा जाता है, वह झूठ है।
झूठ एक ऐसा आवरण है, जिसे ओढ़े रखने में बड़ी समस्या है पर जब वह हमारा संस्कार बन जाता है, तब वह बहुत आकर्षक लगने लगता है। आकर्षक इसलिए क्योंकि झूठ बोलने वाला व्यक्ति बड़ी ही अलंकारिक एवं चालाकी से अपनी बातों को अन्यों के समक्ष इस प्रकार से प्रस्तुत करता है, जैसे वह सच ही बोल रहा है, किन्तु ऐसा करने में वह यह भूल जाता है कि आखिरकार वह स्वयं को तथा अन्यों को धोखा दे रहा है। झूठ बोलने वाला व्यक्ति जिंदगी भर अपनी झूठी, मनगढ़ंत बातों को मनवाने के लिए अनेक प्रकार के यत्न करता है और इसी चक्कर में वह हर समय उलझा रहता है, जिसके परिणामस्वरूप उसकी बहुमूल्य ऊर्जा एवं शक्ति खत्म होती रहती है। अपने गुणों व शक्तियों को श्रेष्ठ कार्यों में लगाने की बजाय ऐसा व्यक्ति झूठी बातें करने और फैलाने में अपना समय बर्बाद करता रहता है।
झूठ आज हमारे जीवन का अनिवार्य अंग बन चुका है और यह हममें इतना अभ्यस्त और विकसित हो चुका है कि इसके बोले बगैर हमें चैन ही नहीं मिलता और इसलिए अमरीकी निबंधकार इमर्सन को यह कहना पड़ा कि ‘निस्संदेह सच बेहद खूबसूरत है, लेकिन झूठ के साथ भी कुछ ऐसा ही है।’ वस्तुत: देखा जाए तो आज के इन्सान के लिए झूठ बोलना एक मजबूरी-सी बन गई है और वह इसे आदत में शुमार कर चुका है। इस बात से कोई भी इंकार नहीं करेगा कि हम झूठ बोले बिना 1 घंटा भी व्यतीत नहीं कर सकते। हाल ही में अमरीका के एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन में यह पाया गया कि वहां पढऩे वाला प्रत्येक विद्यार्थी 10 मिनट में कम से कम 3 बार झूठ बोलता है। व्यवहार स्वभाव संबंधी वैज्ञानिकों (बिहेवियरल साइंटिस्ट) के अनुसार, झूठ हमारे अचेतन में प्रवेश कर गया है और अनजाने में ही हम झूठ बोलते चले जाते हैं।
केवल जब हम नया झूठ बोलने की योजना बनाते हैं, तब ही हमें एहसास होता है कि हम पिछली बार की ही तरह फिर से झूठ बोलने जा रहे हैं, अन्यथा हम प्रतिदिन न जाने कितने झूठ बोलते रहते हैं, पर हमें उसका जरा-सा भी एहसास नहीं होता। परन्तु, प्रश्न यह है कि झूठ बोलना इतना जरूरी क्यों है? क्या उसके बिना निर्वाह संभव नहीं? अनुभव से देखा गया है कि लोग प्राय: उन्हीं चीजों के बारे में झूठ बोलते हैं, जिनसे उन्हें कुछ प्राप्ति होती है व जिनसे वे कुछ अच्छा महसूस करना चाहते हैं। हम अक्सर इच्छित चीज को हर हाल में प्राप्त करने के लिए कूट-कपट और झूठ का सहारा लेने से चूकते नहीं हैं। किन्तु हम यह भूल जाते हैं कि हमारे भीतर छुपे लालच, भय, अस्वीकृति और आदत जैसे अवगुण हमें झूठ बोलने के लिए प्रेरित करते हैं। अत: हमें विद्वानों द्वारा दी गई शिक्षा का अनुसरण करते हुए अपने भीतर छुपी सत्यता की शक्ति को जाग्रत करके असत्यता का पूर्ण नाश करना चाहिए, तभी विश्व में राम राज्य की स्थापना होगी।