कहां है रावणेश्वर तीर्थ, जानिए इससे जुड़ा रहस्य

punjabkesari.in Sunday, Jul 24, 2022 - 01:02 PM (IST)

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श्रावण मास में हर कोई शिव शंकर की उपासना करता है। कोई इसके लिए अपने घर का मंदिर, कोई शिवालय तो कोई देश में स्थित इनके ज्योतिर्लिंगों के दर्शन कर उनकी विधि वत पूजा करके इनकी कृपा प्राप्त करता है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि मुख्य रूप से श्रावण मास में ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने से देवों के देव महादेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है जिसके परिणाम स्वरूप जातक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। आज हम शिव जी के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक के बारे में आपको जानकारी देने जा रहे हैं, जिस शिव जी के साथ-साथ रावण के नाम से जाना जाता है। जी हां, आपको शायद ये जानकर हैरानी होगी परंतु ये हमारे देश में एक ऐसा ज्योतिर्लिंग मंदिर है, जिसे रावणेश्वर धाम के नाम से जाना जाता है। तो चलिए आपको बताते हैं आखिर कहां है ये रावणेश्वर धाम, क्या है इससे जुड़ा रहस्य तथा क्यों इसे रावणेश्वर धाम के नाम से जाना जाता है।

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दरअसल हम बात करें रहे हैं झारखंड के देवघर में स्थित बैद्यनाथ धाम की, जिसे लेकर मान्यताएं प्रचलित हैं कि यहां आने वाले सभी भक्तों की हर तरह की मनोकामना पूरी होती है। जिस कारण इस शिवलिंग को 'कामना लिंग' भी कहा जाता है। इससे संबंधित प्रचलित पौराणिक कथाओं के अनुसार ये शिवलिंग रावण की भक्ति का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है बैद्यनाथ देश का एक ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जिसे शक्तिपीठ भी माना जाता है।

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असल में ऐसी किंवदंति है कि यहां देवी सती का हृदय गिरा था, अतः कहा जाता है कि यहां बाबा माता सती के ह्दय में विराजमान हैं इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को हृदयापीठ भी कहा जाता है। 

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मंदिर को लेकर एक रहस्य ऐसा है जो कई वर्षों से आज भी यहां बरकरार है। इस रहस्य के अनुसार यहां भक्त मुरादें लेकर आते हैं लेकिन शिवलिंग को स्पर्श करते ही अपनी मनोकामना भूल जाते हैं। शिवधाम में त्रिशूल लगा होता है लेकिन बैद्यनाथ मंदिर में पंचशूल लगा है। कहते हैं ये पंचशूल सुरक्षा कवच है। मान्यता है कि इसके यहां रहते हुए कभी मंदिर पर कोई आपदा नहीं आ सकती। बैद्यनाथ मंदिर का ये पंचशूल मानव शरीर के पांच विकार काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह को नाश करने का प्रतीक है। 

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बाबा बैजनाथ धाम की कथा
दशानन रावण शिव जी का परम भक्त था। एक बार की बात है शंकर जी को प्रसन्न करने के लिए उसने घोर तपस्या की और एक-एक कर उसने अपने 9 सिर काटकर शिवलिंग पर चढ़ा दिए। जैसे ही दसवां सिर काटने की बारी आई तो महादेव ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए और वर मांगने को कहा तब रावण ने शिव जी  के लंका चलने का वरदान मांगा। महादेव ने उसकी इच्छा स्वीकार कर ली लेकिन एक शर्त रखी और कहा कि उन्होंने कहा कि रास्ते में उसने अगर कहीं भी शिवलिंग को रखा तो वो वहीं विराजमान हो जाएंगे। 

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रावण ने शर्त को स्वीकार। जब रावण देवघर के पास आकर रावण ने शिवलिंग नीचे रखा और वह वहीं जम गया। बाद में रावण ने शिवलिंग को उठाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह हिला तक नहीं। रावण प्रभू की लीला समझ गया और क्रोधित होकर उसने शिवलिंग पर अपना अंगूठा गढ़ा दिया। जिसके बाद देवताओं ने शिवलिंग की पूजा की, तब भगवान शिव ने वरदान दिया था कि इसकी पूजा करने वालों की हर मनोकामना पूरी होगी। अतः इसी वजह से इस तीर्थ रावणेश्वर धाम से भी प्रख्यात है।

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Content Writer

Jyoti

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