Ramadan: इबादत का महीना शुरू, रोजे का महत्व लिखने में फरिश्ते भी हैं बेबस

punjabkesari.in Saturday, Mar 01, 2025 - 09:23 AM (IST)

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Ramadan 2025: फाका करना अच्छी बात है। तीन-चार दिन छोड़ कर एक वक्त भूखे रहना हाजमे को ठीक रखता है। यह मनुष्य को सेहतमंद रहने में मदद देता है। यदि भूख बर्दाश्त करने की आदत है तो हम किसी भी सफर में परेशान नहीं हो सकते। इसके अलावा भूख बर्दाश्त करने के साथ हमारे अंदर उन गरीबों के प्रति हमदर्दी पैदा होती है जो भूखे रहने के लिए मजबूर हैं क्योंकि भूख के साथ रूहानी ताजगी मिलती है और ईश्वर की याद में दिल लगता है। इस्लाम में इस आदत की बहुत तारीफ की गई है परन्तु जरूरी है कि यह सब कुछ ईश्वर के हुक्म और हजरत मोहम्मद (सल.) के तरीके मुताबिक हो।

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रोजा अपने आप को सच्चे ईश्वर के लिए हर चीज से अलग कर लेने और मुकम्मल तौर पर ईश्वर की तरफ मुड़ने का नाम है। इस्लाम में नमाज के बाद रोजे का ही स्थान है, जो अल्लाह ने मुसलमानों के लिए जरूरी (फर्ज) किए हैं। नमाज की तरह यह इबादत भी शुरू दिन से सभी पैगम्बरों के पैरोकारों पर फर्ज रही है। रोजा हर साल पूरे एक महीने के लिए ‘शरीयत-ए-मुहमदिया’ के अनुसार अपनी जिंदगी को गुजारने के मकसद के साथ प्रशिक्षण पीरियड लेकर आता है।

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पूरा महीना प्रात:काल सहरी के लिए उठो, तयशुदा समय पर खाना-पीना छोड़ दो, दिन भर काम कर सकते हो और शाम को फिर तयशुदा समय पर रोजा इफतार (खोलो) करो, फिर तरावीह (रमजान के महीने की खास नमाज) के लिए मस्जिद में जाओ आदि। मसला यह उठता है कि ईश्वर हमें भूखा क्यों रखना चाहता है और इसके बदले हमें क्या देना चाहता है। ईश्वर फरमाता है कि मैं मनुष्य को नेक और परहेजगार बनाना चाहता हूं। ईश्वर ने मनुष्य को रोजे के बदले बड़े-बड़े ईनाम देने का वायदा किया है।

ईश्वर कहता है कि हरेक नेक काम का सुकृत्य (बदला) दस गुणा होता है और इस से अधिक सात सौ गुणा तक हो सकता है परन्तु रोजा इससे अलग है। इसके सुकृत्य का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। कुछ इस तरह कहते हैं कि बंदा जब रोजा रखता है तो वह भूखा रहने के साथ-साथ कई तरह की शारीरिक चाहतों से भी दूर रहता है। इसके अलावा आम दिनों से ज्यादा नमाजें पढ़ता है, ईश्वर का जिक्र करता है, यानी इतना सुकृत्य कमाता है कि जिसको फरिश्ते लिखने से कासिर (बेबस) हो जाते हैं।

 

 


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Content Writer

Niyati Bhandari

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