विष्णु लक्ष्मी का राखी से क्या है संबंध नहीं जानते तो...पढ़ें ये कथा
punjabkesari.in Monday, Aug 08, 2022 - 12:48 PM (IST)
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रक्षा बंधन का त्यौहार एक ऐसा त्यौहार है जिससे भाई-बहन का अपार प्रेम और स्नेह झलकता है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती है और उसकी दीर्घायु की कामना करती है। यह एकमात्र ऐसा त्यौहार है जिसमें बहनों का महत्व पता चलता है। बता दें राखी के त्यौहार को भारत के प्रमुख पर्वों में से एक माना जाता है। लगभग देश के हर क्षेत्र में इसे विधि वत रूप से मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रक्षाबंधन के रक्षा का अर्थ है सुरक्षा करना और बंधन का अर्थ है एक पवित्र रिश्ता जैसे एक भाई-बहन का होता है। इस बार राखी का पर्व 11 अगस्त दिन गुरुवार को पड़ रहा है। अपनी वेबसाइट के माध्यम से इसके मुहूर्त आदि से जुड़ी जानकारी दे चुके हैं इसी बीच अब हम आपको बताने जा रहे हैं कि रक्षा बंधन से जुड़ी पौराणिक कथा, जिसका संबंध श्री हरि विष्णु. देवी लक्ष्मी के साथ-साथ नारद जी से है। तो आइए बिना देर किए हुए जानते हैं राखी पर्व से संबंधित ये कथा-
राजा बलि और भगवान विष्णु की कथा-
प्राचीन समय की बात है एक दैत्यराजा राजा थे जिनका नाम बलि था। वे भगवान विष्णु के परम भक्त थे। एक बार भगवान ने अपने भक्त की परीक्षा लेने का विचार किया और वामनावतार धारण कर उनके राज्य में पहुंच गए। बता दें वामन श्री हरि विष्णु के 5 वें तथा त्रेता युग के पहले अवतार थे। यह ऐसे अवतार थे जो मानव शरीर में बौने ब्राह्मण के रुप में प्रकट हुए थे। भगवान वामन ने इसी 52 अंगुल के रूप में राजा बलि के द्वार पर पहुंचे। राजा बलि ने उन्हें ब्राह्मण जान उनका सत्कार व सम्मान किया और जब भगवान वामन ने राजा से तीन पग भूमि दान की याचना की। तब राजा बलि वामन देव के छोटे रूप में देख कर भूमि दान करने के लिए सहर्ष राजी हो गए।
हालांकि गुरु शुक्राचार्य ने उन्हें काफी मना किया लेकिन वह नहीं माने, और उन्होंने जमीन पग के लिए गंगाजल का संकल्प लिया। जिसके बाद तब भगवान ने विशाल रूप धरकर दो पग में सारे लोक नाप दिया। तब राजा बलि को गलती का अहसास हुआ और वो समझ गए कि ये कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं और उन्होंने प्रभु के आगे अपना सिर झुका दिया और उनका एक पैर अपने माथे पर रख दिया तथा फिर उन्होनें भगवान विष्णु जी से निवेदन किया कि हे! प्रभु मेरा सब कुछ तो अब अपको समर्पित है मेरी एक विनती स्वीकार करें और मेरे साथ पाताल लोक में रहने चलें। विष्णु भगवान अपने भक्त की बात मान गए परंतु जब ये बात माता लक्ष्मी को पता चली तब उन्हें भगवान विष्णु जी की अत्यंत चिंता होने लगी।
देवी लक्ष्मी जी की यूं चितिंत देख नारद जी ने मां लक्ष्मी को सलाह देते हुए कहा कि आप रक्षा सूत्र बांधकर राजा बलि को अपना भाई बनालें और उपहार के रूप में नारायण जी को उनसे मांग लें। यह बात सुनकर लक्ष्मी माता खुश हो गई और पाताल लोक जाकर और राजा बलि के पास जाकर विलाप करने लगी,जब राजा ने बलि उनसे रोने का कारण पूछा तो लक्ष्मी माता ने उनसे कहा कि मेरा कोई भाई नहीं है। तो राजा बलि ने उनसे कहा कि आज से वे उनके भाई हैं जिसके बाद देवी लक्ष्मी ने उनहें रक्षा सूत्र बांधा। जब उपहार देने की बारी आई और राजा बलि ने देवी लक्ष्मी को उपहार मांगने को कहा तो उन्होंने भगवान विष्णु को मांग लिया। भाई का कर्तव्य निभाते हुए राजा बलि ने भगवान विष्णु को माता लक्ष्मी के साथ जाने दिया। कथाओं के अनुसार जाते-जाते भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह हर साल चार माह के लिए पाताल लोक में निवास करने आएंगे। बता दें यह चार मास चर्तुमास के रूप में विख्यात है जो हिंदू पंचांग के अनुसार देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठानी एकादशी तक होता है।