Pitru paksha 2019: पितृ ऋण से मुक्ति के लिए किए जाते हैं श्राद्ध

punjabkesari.in Sunday, Sep 15, 2019 - 08:34 AM (IST)

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गरुड़ पुराण के अनुसार समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दुखी नहीं रहता। पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीॢत, पुष्टिï, बल, श्री, पशु, सुख और धन-धान्य प्राप्त करता है। परिवार में किसी की अकाल मृत्यु होने से अपने माता-पिता आदि सम्माननीय जनों का अपमान करने से, मरने के बाद माता-पिता का उचित ढंग से क्रिया कर्म और श्राद्ध न करने से, उनके निमित वाॢषक श्राद्ध न करने से पितरों का दोष लगता है। इसके फलस्वरूप परिवार में अशांति, वंश वृद्धि में रुकावट, आकस्मिक बीमारी, संकट, धन में बरकत न होना, सारी सुख सुविधाएं होते हुए भी मन असंतुष्ट रहना आदि पितृ दोष का कारण हो सकता है।
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पितृ दोष कुंडली योग 
यदि किसी जातक की कुंडली में पितृ दोष होता है तो अनेक प्रकार की परेशानियां, हानियां उठानी पड़ती हैं। घर में कलह, अशांति रहती है। रोग-पीड़ाएं पीछा नहीं छोड़ती हैं। घर में आपसी मतभेद बने रहते हैं। कार्यों में अनेक प्रकार की बाधाएं उत्पन्न होती हैं। अकाल मृत्यु का भय बना रहता हैं। संकट, अनहोनियां, अमंगल की आशंका बनी रहती है। संतान की प्राप्ति में विलंब होता है। घर में धन का अभाव भी रहता है। अनेक प्रकार के महादुखों का सामना करना पड़ता है।

पितृदोष के लक्षण 
घर में आय की अपेक्षा खर्च बहुत अधिक होता है। घर में लोगों के विचार नहीं मिल पाते जिसके कारण घर में झगड़े होते रहते हैं। अच्छी आय होने पर भी घर में बरकत नहीं होती जिसके कारण धन एकत्रित नहीं हो पाता। संतान के विवाह में काफी परेशानियां और विलंब होता है। शुभ तथा मांगलिक कार्यों में काफी दिक्कतें उठानी पड़ती हैं। अधिक परिश्रम के बाद भी थोड़ा बहुत फल मिलता है। बने बनाए काम को बिगड़ते देर नहीं लगती।
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श्राद्ध के अधिकारी 
पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है। पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में संपिंडों को श्राद्ध करना चाहिए। एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करता है। पुत्री का पति एवं पुत्री का पुत्र भी श्राद्ध के अधिकारी हैं। पुत्र के न होने पर पौत्र या प्रपौत्र भी श्राद्ध कर सकते हैं। पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के न होने पर विधवा स्त्री श्राद्ध कर सकती है। पत्नी का श्राद्ध व्यक्ति तभी कर सकता है, जब कोई पुत्र न हो। पुत्र, पौत्र या पुत्री का पुत्र न होने पर भतीजा भी श्राद्ध कर सकता है। गोद लिया पुत्र भी श्राद्ध का अधिकारी है।

श्राद्ध में महत्वपूर्ण बातें : अपरान्ह का समय, कुशा, श्राद्धस्थली की स्वच्छता, उदारता से भोजन आदि की व्यवस्था और ब्राह्मïण की उपस्थिति। श्राद्ध के लिए उचित द्रव्य हैं-तिल, चावल, जौ, जल मूल (जड़ युक्त सब्जी) और फल। कुछ अन्न और खाद्य पदार्थ जो श्राद्ध में प्रयुक्त नहीं होते मसूर, राजमा, चना, अलसी, बासी भोजन और समुद्र जल से बना नमक। भैंस, हिरणी, ऊंटनी, भेड़ और एक खुर वाले पशु का दूध भी वर्जित है, पर भैंस का घी वर्जित नहीं है।

श्राद्ध में दूध, दही और घी पितरों के लिए विशेष तुष्टकारक माने जाते हैं। श्राद्ध किसी दूसरे के घर में, दूसरे की भूमि में कभी नहीं किया जाता है। जिस भूमि पर किसी का स्वामित्व न हो, सार्वजनिक हो, ऐसी भूमि पर श्राद्ध किया जा सकता है। 
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श्राद्ध विधि : सुबह उठकर स्नान कर देव स्थान पर पितृ स्थान को गाय के गोबर से लीपकर व गंगाजल से पवित्र करें। घर आंगन में रंगोली बनाएं। महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं। श्राद्ध के अधिकारी श्रेष्ठ ब्राह्मण (या कुल के अधिकारी जैसे दामाद, भतीजा आदि) को न्यौता देकर बुलाएं। ब्राह्मण से पितरों की पूजा एवं तर्पण आदि कराएं।

पितरों के निमित्त अग्रि से गाय का दूध, दही, घी एवं खीर अर्पित करें। गाय, कुत्ता, कौआ व अतिथि के लिए भोजन से चार ग्रास निकालें। ब्राह्मण को आदरपूर्वक भोजन कराएं, मुखशुद्धि वस्त्र, दक्षिणा आदि से सम्मान करें। ब्राह्मण स्वस्तिवाचन तथा वैदिक पाठ करें और गृहस्थ एवं पितर के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त करें। पितृ पक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी शक्ति सामथ्र्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं और घर, परिवार, व्यवसाय तथा आजीविका में हमेशा उन्नति होती है।     


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