उत्तराखंड में हैं कुल पंचकेदार मंदिर हैं, इंद्र से जुड़ा है एक का रहस्य
punjabkesari.in Friday, May 21, 2021 - 04:57 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
इससे पहले हमने आपको बताया था उत्तराखंड में स्थित सप्ती बद्री के बारे में, इसी बीच आज हम आपको बताने जा रहे हैं पंच केदारना के बारे में। जी हां, शास्त्रों में उत्तराखंड के सप्तबद्री, पंचकेदार और पंचप्रयाग की महिमा का वर्णन मिलता है। इसके अनुसार मुख्य केदारनाथ मंदिर के अलावा अन्य चार और ऐसे मंदिर है, जिन्हें केदारनाथ के नाम से जाना जाता है। आईए जानते हैं उन मंदिरों के बारे में कि ये कहां स्थित है व इनकी खासियत-
श्री केदारनाथ : इसके बारे में तो लगभग लोग जानते ही हैं कि यहां 11 वें ज्योर्तिलिंग के रूप में शिव जी की पूजा होती है। यह पावन धाम ऋषिकेश से 229 कि.मी दूरी पर स्थित है। जहां पहुंचने के लिए 16 किलोमीटर तक की पैदल यात्रा करनी पड़ती है। मान्यता है कि इस तीर्थ में गंगा, मधुवर्णा, क्षीरवर्णा, श्वेतवर्णा, सुचिवर्णा धाराओं में प्रवाहमान होती रही है। इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का आधा भाग यहां केदारनाथ में है और आधा नेपाल के पशुपतिनाथ में है।
मदमहेश्वर : दूसरा केदार मदमहेश्वर के नाम से जाना जाता है। लोक मत है कि शिव के मध्यभाग के दर्शन के कारण यह मदमहेश्वर के नाम से प्रख्यात है। इस मंदिर में मौजूद शिवलिंग की आकृति नाभि के समान है।
तुंगनाथ : तुंगनाथ पंच केदारों में तृतीय केदार माना जाता है। शिव का यहां नाभि से ऊपर और सिर से नीचे का भाग यानि धड़ प्रतिष्ठित माना जाता है। तुंगनाथ भगवान की पूजा ग्रीष्मकाल में की जाती है। शीतकाल में यहां की चल विग्रह मूर्ति मुक्कूमठ ले जाई जाती है और पूरे शीतकाल के दौरान यही इनकी पूजा की जाती है।
रुद्रनाथ : पंचकेदारों में चतुर्थ केदार के रूप में प्रसिद्ध है रुद्रनाथ, यहां भगवान शिव के मुखाकृति के दर्शन होते हैं। इस स्थान को पितरों का तर्पण करने वाले श्रेष्ठ तीर्थों में से मुख्य माना जाता है। इससे जुड़ी पौराणिक कथाओं के अनुसार रुद्रनाथ तीर्थ में ही देवर्षि नारद ने भगवान शंकर को कनखल (हरिद्वार) में दक्ष प्रजापति द्वारा यज्ञ कराने के दौरान देवी सती के दाह की सूचना दी थी। कहा जाता है भगवान रुद्रनाथ यहां गुफा में विराजमान रहते हैं।
कल्पेश्वर : आखिर में आता है कल्पेश्वर है, जिसके बारे लोक मान्यता है कि यहां महर्षि रूप में भगवान शिव का यहां जटाजूट प्रतिष्ठित हुआ। उर्गम गांव में हिरण्यावती नदी के पास यह तीर्थ स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस तीर्थ की उत्पत्ति देवराज इन्द्र को ऋषि दुर्वासा के श्राप से मुक्ति के लिए करवाई गई थी। कथाएं हैं कि शिव जी ने इंद्र के तप से प्रसन्न होकर इसी स्थान पर उसे कल्पवृक्ष दे दिया, जिस कारण इस स्थान को इसीलिए कल्पेश्वर के नाम से जाना जाता है।