Muni Shri Tarun Sagar- बचपन में मां सबसे अच्छी लगती है, जवानी में पत्नी

punjabkesari.in Monday, Oct 20, 2025 - 02:00 PM (IST)

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जिस घर में बेटी न हो
कन्या भ्रूण हत्या एक कलंक है। इस कलंक को हटाने के लिए संत, समाज और सरकार को अपने-अपने स्तर पर प्रयास करने होंगे। सरकार तय करे कि जिसके घर बेटी हो, उसे ही चुनाव लड़ने के योग्य मानें अथवा उसे ही चुनाव में वरीयता दें। समाज निर्णय करे कि उन घरों में अपनी बेटी नहीं देंगे जिन घरों में बेटियां न हों और संत भी उन घरों का आहार करने के लिए अनदेखा करें, जिन घरों में बेटियां न हों।

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गुस्से में कोई कुछ कहे तो
घर में ड्राइंग रूम, किचन रूम, डाइनिंग रूम की तरह ही एक कंट्रोल रूम भी होना चाहिए, ताकि कभी कोई आऊट आफ कंट्रोल हो जाए तो उसमें जाकर बैठ जाए और सामान्य होने पर बाहर आ जाए। किसी ने गुस्से में आपको कह दिया कुत्ता और आप भौंकने लगे तो उसने गलत क्या कहा? सामने वाला गुस्से में हो तो आप चुप रहें। गुस्से में कोई कुछ कह दे तो उसे सच न मानें क्योंकि उसे खुद नहीं पता कि वह क्या कह रहा है?

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भगवान हर हाल में अच्छे
बचपन में मां सबसे अच्छी लगती है, जवानी में पत्नी सबसे अच्छी लगती है, बुढ़ापे में पोता सबसे अच्छा लगता है और मौत के समय?
मौत के समय भगवान सबसे अच्छे लगते हैं पर सिर्फ मौत के समय भगवान अच्छे लगें, यह कोई अच्छी बात नहीं है। भगवान तो हर हाल में अच्छे हैं, सच्चे हैं। वे हमारे पिता हैं और हम उनके बच्चे हैं, वे परिपक्व और हम सभी कच्चे हैं, भगवान तो हर हाल में अच्छे हैं, सच्चे हैं।

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चौकीदार और जमींदार
मुनिश्री एक तरफ तो आप कहते हैं कि सभी आत्माएं एक समान हैं फिर प्रवचन के दौरान आप ऊंची चौकी पर और हमें नीचे जमीन पर बैठाते हैं। इसका मतलब तो यही हुआ कि आप अपने को बड़ा और हमें छोटा समझते हैं। शाबास जिज्ञासु! चौकी पर बैठना मुनि तरुण सागर का शौक नहीं, मजबूरी है। एक व्यवस्था के तहत मुझे इस चौकी पर बैठना पड़ता है। बावजूद इसके एक अपेक्षा से मैं छोटा और आप बड़े हैं। कारण है कि मैं चौकी पर बैठा हूं तो मैं ‘चौकीदार’ हुआ और आप जमीन पर बैठे हैं तो आप ‘जमींदार’ हुए।

 


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Content Writer

Niyati Bhandari

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