Muni Shri Tarun Sagar: तुम भी तो भगवान के घर से आए हो न !

punjabkesari.in Friday, Jul 11, 2025 - 02:00 PM (IST)

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संत और संसारी
चलते रहना संत जीवन की चर्या है। संत कहीं से चलता है और कहीं पहुंच जाता है मगर इस चलने और पहुंचने में एक घटना घटती है जो संत के महत्व को दर्शाती है और वह घटना है कि संत जहां से चल देता है वहां सब ‘सूना-सूना’ हो जाता है और जहां पहुंच जाता है वहां सब ‘सोना-सोना’ हो जाता है। संत और संसारी में इतना ही तो फर्क होता है कि संसारी का मन कहीं नहीं टिकता और संत के पैर कहीं नहीं टिकते। बहता हुआ जल और चलता-फिरता संत हमेशा पवित्र होता है।

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सज्जन और दुर्जन
दुनिया में सज्जन और दुर्जन दो तरह के मनुष्य होते हैं। दोनों जीते हैं मगर दोनों में फर्क केवल इतना होता है कि सज्जन दूसरों को हंसाकर और दुर्जन रुलाकर जीता है और जब दोनों दुनिया से विदा लेते हैं तो सज्जन लोगों को रुलाकर और दुर्जन हंसाकर जाता है। जीवन ऐसा जीना कि जब तुम दुनिया से जाओ तो लोग तुम्हारे लिए रोएं, तुम्हें याद करें। ऐसा जीवन मत जीना कि लोग कहें कि अच्छा हुआ, एक और पाप कटा। दुनिया से जाओ तो लोगों के दिलों में मीठी यादें और आंखों में प्यार के आंसू छोड़कर जाना।

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एक परदेसी हो तुम
तुम एक परदेसी हो। एक दिन तुम्हें अपने देश वापस लौटना है। अभी तुम यहां पर्यटन पर आए हुए हो। पर्यटक संभल-संभल कर रहता है। वह किसी से झगड़ता नहीं है। सबकी मीठी-यादें साथ रखता है क्योंकि उसे पता है कि उसे वापस जाना है और हां, वह सुबह-शाम अपने घर फोन जरूर करता है, घर-परिवार के समाचार जरूर ले लेता है। तुम भी तो भगवान के घर से आए हो न! जरा सुबह-शाम फोन करके अपने घर के समाचार लेते रहना। सुबह-शाम प्रभु की प्रार्थना करना, फोन करके अपने घर के हाल-चाल पूछने जैसा है।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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