Inspirational Concept: जीभ के समान बने कोमल व सरल, दांतो से क्रूर व कठोर नहीं

punjabkesari.in Tuesday, Apr 20, 2021 - 12:20 PM (IST)

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कन्यूशियस चीन के विख्यात महात्मा और दार्शनिक हुए हैं। वह बड़े ज्ञानी, विद्वान और अनुभवी विचारक थे। धर्म और ज्ञान की अनेक बातें वे इस प्रकार सहज भाव से समझा दिया करते थे कि किसी के मन में शंका के लिए गुंजाइश नहीं रह जाती और उसका सहज समाधान हो जाता।

जब वह मृत्यु के निकट थे और प्राण निकलने में कुछ ही क्षण शेष थे तो उन्होंने अपने शिष्यों को पास बुलाकर अपने जीवन का अंतिम संदेश देने के उद्देश्य से धीरे-धीरे कहा- ‘‘मेरे प्यारे शिष्यो, जरा मेरे मुंह के भीतर झांककर देखो तो कि जीभ है या नहीं?’’

एक शिष्य ने झांककर देखा और बोला, ‘‘गुरुदेव, जीभ तो है।’’ इसके बाद उन्होंने एक अन्य शिष्य की ओर संकेत करते हुए दूसरा प्रश्र पूछा, ‘‘देखो तो मेरे मुंह में दांत हैं या नहीं?’’ 

उस शिष्य ने उत्तर दिया, ‘‘गुरुदेव आपके मुंह में दांत तो एक भी नहीं है।’’ महात्मा कन् यूशियस ने फिर पूछा, ‘‘पहले दांत का जन्म हुआ या जीभ का?’’ इस बार सब शिष्यों ने एक साथ उत्तर दिया, ‘‘गुरुदेव, जीभ का।’’

‘‘ठीक’’ कहकर महात्मा कन् यूशियस ने अपने शिष्यों से पुन: प्रश्र किया, ‘‘शिष्यो, जीभ जो दांत से उम्र में बड़ी है, अब भी मौजूद है किंतु दांत जो जीभ से उम्र में छोटे हैं, नष्ट क्यों हो गए?’’

इस प्रश्र को सुनकर सब शिष्य एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे। किसी से भी उत्तर देते न बना। तब गुरुदेव ने उन्हें समझाया, ‘‘सुनो, जीभ सरल और कोमल है, इसी से वह अभी तक मौजूद है। दांत क्रूर और कठोर थे इसी से शीघ्र नष्ट हो गए। तुम भी जीभ के समान सरल और कोमल बनो।’’ 

यह कहकर कन्यूशियस ने अपनी आंखें सदा के लिए मूंद लीं।
 


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Content Writer

Jyoti

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